सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों पर कार्यबल की रिपोर्ट कार्यकारी सार अधोलिखित है-
देश के आर्थिक और सामाजिक विकास में सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्योगों की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण रही है। एमएसएमई क्षेत्र उद्यमिता की पौधशाला सरीखा है। प्राय: यह क्षेत्र व्यक्तिगत रचनात्मकता और सृजनशीलता के बल पर आगे बढत़ा है । यह क्षेत्र देश के सफल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8 प्रतिशत, विनिर्माण क्षेत्र के कुल उत्पादन का 45 प्रतिशत और 40 प्रतिशत इसके आयात में योगदान देता है। एमएसएमई क्षेत्र के 2 करोड़ 60 लाख उद्यमों के जरिये करीब 6 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। एमएसएमई इकाइयों में पूंजी और श्रम के बीच अनुपात और इस क्षेत्र में समग्र विकास, बड़े उद्योगों की तुलना में कहीं अधिक है। एमएसएमई इकाइयों का भौगोलिक वितरण भी अपेक्षाकृत अधिक समान रूप से हुआ है। इस प्रकार, एमएसएमई इकाइयां समान और समावेशी विकास के राष्ट्रीय लक्ष्यों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
भारत में एमएसएमई क्षेत्र में उद्यमों के आकार उत्पादों और सेवाओं के प्रकार और अपनाई गई प्रविधि के स्तर के लिहाज से काफी विविधता है। एमएसएमई के संसार का एक छोर जहां अध्याधिक नवोन्मेषी और उच्च विकास वाले उद्यमों से जुड़ा है, वहीं अधिकांश, यानी करीब 94 प्रतिशत एमएसएमई इकाइयां गैर पंजीकृत हैं और इनमें से बहुत सारी अनौपचारिक और असंगठित क्षेत्र में लगी हुई हैं। इस क्षेत्र की विकास संभावनाओं और विनिर्माण एवं मूल्य ‚ श्रृंखलाओं में इसकी निर्णायक भूमिका के अलावा भारतीय एमएसएमई इकाइयों का विषय रूप और असंगठित प्रकृति, वे महत्त्वपूर्ण पहलू हैं जिनको नीति तैयार करते समय और कार्यक्रम पर अमल करते समय ध्यान में रखे जाने की जरूरत है।
एमएसएमई के बारे में अपनी चिन्ताओं और समस्याओं के बारे में जानकारी देने के लिए 19 प्रमुख एमएसएमई संगठनों के प्रतिनिधि 26 अगस्त, 2009 को प्रधानमंत्री से मिले। प्रधानमंत्री ने संघों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर विचार करने और सभी संबंधित पक्षों के साथ विचार-विमर्श के बाद तीन माह के भीतर कार्रवाई का एजेंडा तैयार करने हेतु एक कार्यबल (टास्क फोर्स) गठित करने की घोषणा की। तद्नुसार, एमएसएमई क्षेत्र की समस्याओं के निराकरण के लिए प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव की अध्यक्षता में कार्यबल का गठन किया गया।
एमएसएमई क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे
यद्यपि भारतीय एमएसएमई इकाइयां एक सर्वथा अलग और विषम समूह है, उनकी कुछ साझी समस्यायें हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
· पर्याप्त और समय पर त्रऽण का अभाव,
· त्रऽण की उच्च लागत,
· प्रतिभूति की आवश्यकताएं,
· शेयर पूंजी की सीमित सुलभता,
· सरकारी विभागों और एजेंसियों को आपूर्ति में समस्यायें,
· प्रतिस्पर्धी मूल्य पर कच्चे माल का उपार्जन,
· भंडारण, डिजाइनिंग, पैकेजिंग और उत्पाद प्रदर्शन की समस्याएं,
· अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचने में समस्या, विद्युत, जल, सड़कों आदि सहित अपर्याप्त अधोसंरचनायें,
· निम्न प्रविधि स्तर और आधुनिक प्रविधि प्राप्त करने में समस्यायें,
· विनिर्माण, सेवाओं, विपणन आदि के लिए कुशल जनशक्ति का अभाव,
· अनेक प्रकार के श्रम कानून और इन कानूनों के अनुपालन से जुड़ी जटिल प्रक्रियायें,
· ऐसी उपयुक्त व्यवस्था का अभाव जो व्यवहारिक रूप से पुनर्जीवन योग्य बीमार उद्यमों की तेजी से उबरने में और अव्यवहारिक इकाइयों को यथाशीघ्र बंद करने के लिए मदद करे, और
· प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कराधान प्रणालियों से जुड़े मुद्दे और उनकी प्रक्रियायें।
अतीत में, अनेक समितियों अध्ययन समूहों ने एमएसएमई इकाइयों से जुड़े मुद्दों पर विचार किया है। इनमें (1) तत्कालीन उप गवर्नर श्री पी.आर नायक की अध्यक्षता में लघु उद्योग क्षेत्र (एमएसआई) को संस्थागत त्रऽण की पर्याप्तता के परीक्षण के लिए समिति (1991), (2) योजना आयोग के पूर्व सदस्य श्री आबिद हुसैन की अध्यक्षता में लघु उद्यमों पर विशेषज्ञ समिति, (1995, (3) भारत सरकार के पूर्व सचिव (एसएसआई और एआरआई) तथा औद्योंगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (बीआईएफआर) के सदस्य श्री एस.एल. कपूर की अध्यक्षता में एसएसआई को त्रऽण पर उच्च स्तरीय समिति (1998), (4) योजना आयोग के तत्कालीन सदस्य डॉ0 एस.वी. गुप्ता की अध्यक्षता में लघु उद्योगों के विकास पर अध्ययन समूह (1999), (5) डॉ0 ए.एस. गांगुली की अध्यक्षता में एसएसआई क्षेत्र को त्रऽण प्रवाह पर कार्य समूह (2003) और (6) पंजाब नेशनल बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, डॉ0 के.सी. चर्कबर्ती की अध्यक्षता में बीमार एसएमई इकाइयों के पुनर्वास पर कार्य समूह (2007) शामिल हैं। सरकार ने सितम्बर 2004 में असंगठित क्षेत्र के उद्यमों की समस्याओं के अध्ययन और उन्हें तकनीकी, विपणन और त्रऽण सहायता प्रदान करने के लिए उचित सिफारिशें करने के वास्ते राष्ट्रीय असंगठित क्षेत्र उद्यम आयोग (एनसीईयूएस) का गठन भी किया था। एनसीईयूएस ने ग्यारह रिपोर्टें पेश की हैं।
कार्यबल ने संर्वसामान्य समस्याओं को विषयवस्तु के आधार पर 6 मुख्य क्षेत्रों में वर्गीकृत कर विस्तृत परीक्षण के लिए अलग-अलग उप-समूहों का गठन किया। इस विषय पर उन क्षेत्रों में (1) त्रऽण, (2) विपणन, (3)पुनर्वास और विकास नीति, (4) श्रम, (5) अधोसंरचना, प्रविधि और कौशल विकास और (6) कराधान- शामिल हैं। एक पृथक उप-समूह पूर्वोत्तर क्षेत्र और जम्मू एवं कश्मीर में एमएसएमई इकाइयों के विकास पर विचार करने के लिए भी गठित किया गया। प्रत्येक उप-समूह ने अनेक बैठकों में विशिष्ट मुद्दों और समस्याओं पर विचार किया और एमएसएमई के संघों सहित, विभिन्न पक्षों से विस्तृत विचार-विमर्श के बाद अपनी-अपनी रिपोर्ट कार्यबल को दी। वर्तमान संदर्भ में जिन समितियों, कार्य समूहों और अध्ययन दलों की सिफारिशें प्रासंगिक पाई गर्इं उन पर भी कार्यबल और उसके उप समूहों ने गौर किया।
सिफारिशों का सार
एमएसएमई क्षेत्र को राहत और स्थायित्व प्रदान करने, विशेषत: मौजूदा आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप, निम्नलिखित उपाय सुझाए गए हैं--
(क) तुरन्त कार्रवाई के उपाय
1. सरकार को प्रोत्साहन पैकेज में विशेष रूप से एमएसएमई के लिए दी गई सुविधाओं को 31 मार्च, 2010 के बाद एक वर्ष की अवधि के लिए और बढा़ देना चाहिए।
2. सरकार को वाणिज्यिक बैंकों पर सूक्ष्म उद्यमों के लिए निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने (सूक्ष्म और लघु उद्योगों को त्रऽणों में 20 प्रतिशत वर्ष दर वर्ष के साथ सूक्ष्म क्षेत्र के लिए 60 प्रतिशत तक हिस्सा तय करने) के निर्देश को सख्ती से पालन करने पर जोर देना होगा।
3. यदि वाणिज्यिक बैंकों द्वारा एमएसई को दिए जाने वाले त्रऽण के लक्ष्यों को हासिल करने में कोई कमी रह गई हो तो उसको पूरा करने के लिए सिडबी (एसआईडीवीआई) के पास एक पृथक कोष बनाया जा सकता है। सूक्ष्म उद्यमों हेतु विशेष कोष नाम के इस कोष का उपयोग केवल सूक्ष्म उद्यमों को त्रऽण देने के लिए ही किया जाना चाहिए।
4. सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यम विकास अधिनियम, 2006 में किए गए प्रावधान के अनुसार, एमएसएमई क्षेत्र के लिए एक सार्वजनिक उपार्जन नीति, यथाशीघ्र लागू की जानी चाहिए। इस नीति में सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के लिए यह लक्ष्य निर्धारित करने की व्यवस्था की जा सकती है कि वे अपनी वार्षिक खरीदी की कम से कम 20 प्रतिशत मात्रा की सामग्री लघु और सूक्ष्म उद्यमों (एसएमई) से खरीदें। इसका विवरण अपनी वार्षिक रिपोर्ट में आवश्यक रूप से देने के लिए उन्हें निर्देश दिया जा सकता है।
5. सरकार की क्षतिपूर्ति नीति में, विशेषकर रक्षा और विमानन क्षेत्रों में, एमएसएमई को प्राथमिकता देनी चाहिए (संदर्भ- अध्याय 13, पैरा 6 (क))। इस आशय के लिए रक्षा उत्पादन, एमएसएमई और विमानन विभागों के सचिवों, रक्षा संबंधित सार्वजनिक उपक्रमों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को लेकर रक्षा उत्पादन राज्य मंत्री के अधीन एक स्थायी मार्गदर्शन व्यवस्था बनाए जाने पर विचार किया जाना चाहिए।
6. सरकार को मौजूदा अधोसंरचनात्मक और संस्थागत व्यवस्था में खामियों को विशेष रूप से लक्षित करके अगले 3 से 5 वर्षों के लिए 50 से 55 अरब रुपए के सार्वजनिक व्यय का आबंटन अलग से करना चाहिए। इन कोषों का उपयोग (क) संभाव्य बीमार इकाइयों के पुनर्जीवन के लिए राज्यों में पुनर्वास कोष की स्थापना में सहायता, (ख) एमएसएमई क्षेत्र को आधुनिक स्वच्छ प्रविधियों के अपनाने के साथ-साथ प्रविधि बैंकों और उत्पाद विशेष हेतु प्रविधि विकास केन्द्रों के निर्माण , (ग) प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थाओं में उद्योग जगत की भागेदारी संवर्धन, (घ) संपोषणीय शहरी अभिशासन व्यवस्था के साथ, एमएसएमई के वर्तमान औद्योगिक क्षेत्रों के पुनरुद्धार और नए मूलभूत ढांचों के विकास, (च) जिला उद्योग केन्द्रों को फिर से सक्रिय करने, सुदृढ ब़नाने और सजीव बनाने के लिए ताकि वे एमएसएमई इकाइयों के क्षमता विकास और हिमायत में और अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकें, और उपयुक्त हो तो उनके पुनर्वास, (छ) एमएसएमई इकाइयों को विस्तारित बाजार समर्थन हेतु एमएसआईसी के इक्विटी आधार को सुदृढ ब़नाने, और (ज) एमएसएमई क्षेत्र को लक्षित उद्यमिता और कौशल विकास के वर्तमान कार्यक्रमों का स्तर ऊंचा उठाने के लिए, किया जा सकता है। आगे, यह भी सिफारिश की जाती है कि जब तक और परीक्षण के आधार पर योजनाओं का विवरण तैयार किया जाता है, इन योजनाओं के अमल में प्रक्रिया संबंधी विलम्ब को दूर करने के लिए एमएसएमई मंत्रालय की वर्ष 2010-11 की योजना में एक पंक्ति की प्रविष्टि की जानी चाहिए।
7. सरकार को उपयुक्त कानूनी और राजकोषीय उपायों का उपयोग करते हुए एमएसएमई इकाइयों को असंगठित क्षेत्र से संगठित क्षेत्र में ले जाने को प्रात्साहित करने के लिए एक अनुकूल वातावरण तैयार करने के वास्ते कदम उठाने चाहिए, साथ ही इन इकाइयों को कार्पोरेट स्वरूप हासिल करने में मदद करनी चाहए। सरकार को नवाचारी और ज्ञान आधारित उद्यमों के साथ-साथ उद्योग और शैक्षिक संस्थाओं की अधिकाधिक सहभागिता के जरिए अनुसंधान और विकास के लिए अधिक निवेश को प्रोत्साहित करना चाहिए।
8. नयी प्रत्यक्ष कर संहिता और जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) को लागू करने की जो प्रक्रिया इस समय चल रही है, उसमें क्रमिक कम्पनी कर ढांचे, ऐंजिल और बेंचर पूंजी कोषों के लिए कर पास और अनुसंधान एवं विकास के लिए उपयुक्त प्रावधानों के जरिये इन नीतिगत लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
(ख) मध्यम-कालिक संस्थागत उपाय
ऊपर जो दृष्टिकोण सुझाया गया है, उसके साथ-साथ संस्थागत परिवर्तनों और कार्यक्रमों का विवरण, एकाध वर्ष के भीतर ही हासिल करना होगा। इनमें शामिल हैं--
1. एमएसएमई के संवर्धन और विकास के लिए सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वतंत्र निकाय का गठन करना चाहिए। यह संस्था निजी क्षेत्र की भागीदारी में औद्योगिक क्षेत्रों सर्व-सामान्य सुविधाओं की स्थापना के लिए वित्तीय और प्रबंधकीय सहायता प्रदान कर सकती है, असंगठित क्षेत्र के लिए बाजार की सुविधा दिलाने में मदद कर सकती है और एमएसएमई इकाइयों से संबंद्ध सूचना के प्रसार और समन्वय में सहायता कर सकती हैं। वर्तमान में, विकास आयुक्त (एमएसएमई) ही सभी नीति संबंधी मामलों, संवर्धनात्मक और वैकासिक योजनाओं के साथ-साथ एमएसएमई क्षेत्र के लिए कतिपय प्रोत्साहनों और अनुदानों के निर्धारण के लिए केन्द्र बिन्दु है तथा भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) एमएसएमई क्षेत्र के वित्त पोषण एवं संबंधित संवर्धनात्मक और वैकासिक कार्यों हेतु प्रमुख वित्तीय संस्था है, जबकि राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एनएसआईसी) की स्थापना एमएसएमई क्षेत्र को कच्चे माल की खरीदी और उनके उत्पादों को बाजार सुलभ कराने में सहायता के लिए की गई है। इसके अलावा, सरकार के विभिन्न मंत्रालयोंविभागों की अपने-अपने विशिष्ट क्षेत्रों में एमएसएमई इकाइयों के प्रोत्साहन और विकास की योजनायें भी हैं। प्रस्तावित स्वतंत्र निकाय उपर्युक्त संगठनों के मौजूदा ढांचों को उनके घोषणा पत्र और अधिदेश में उपयुक्त परिवर्तन के साथ उपयोग कर सकता है। राष्ट्रीय स्तर की इस संस्था के अधिदेश और संरचना के बारे में निर्णय लेते समय अन्य देशों की ऐसी संस्थाओं (यथा संयुक्त राज्य अमरीका में स्माल बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन) के अनुभवों का लाभ उठाया जा सकता है।
2. चूंकि किसी संस्था का पुननिर्माण एक जटिल कार्य है, हमारा सुझाव है कि किसी विशेषज्ञ समूह को इस पर विचार करना चाहए और तीन माह की समय सीमा में इस निकाय के गठन और अधिदेश (मैन्डेट) के बारे में उचित सिफारिशें देनी चाहए। इन सिफारिशों को प्रधानमंत्री को सौंपा जाएगा। विशेषज्ञ समूह का गठन योजना आयोग के सदस्य की अध्यक्षता में किया जा सकता है और इसमें रिजर्व बैंक के उप गवर्नर, सचिव (एमएसएमई), सचिव (डीएफएस), डीसी (एमएसएमई), सीएमडी (सिडबी) और सीएमडी एनएसआईसी को सम्मिलित किया जा सकता है।
3. सदस्य (योजना आयोग) के अधीन एक स्थायी समीक्षा समिति का गठन किया जाना चाहिए जो एमएसएमई क्षेत्र को और सूक्ष्म उद्यमों तथा असंगठित क्षेत्र जैसे अधिक कमजोर वर्गों में त्रऽण आबंटन की निगरानी करेगा।
4. सरकार को सूक्ष्म वित्त संस्थाओं (एमएफआई) को स्व-सहायता समूहों के गठन और बिना बैंक वाले चिन्हित वंचित ग्रामीणउपनगरीय क्षेत्रों में सूक्ष्म उद्यमों को उचित दरों पर त्रऽण उपलब्ध कराने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। बैंकों को गैर संस्थागत रुाोतों साहूकारों से एमएसई इकाइयों द्वारा लिए गए कर्ज के पुनर्वित्त हेतु योजनायें तैयार करने के वास्ते प्रोत्साहित किया जा सकता है। वित्तीय उपलब्धता असंगठित क्षेत्र को औपचारिक (संगठित) रूप प्रदान करने में प्रभावी भूमिका निभा सकती है। सूक्ष्म वित्त संस्थाओं को कर रियायतों सहित समुचित प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए ताकि वे सूक्ष्म उद्यमों की सेवा के लिए बैंकों के व्यापार संवाददाता औ व्यापार प्रतिनिधि के रूप में काम कर सकें।
5. जिला उद्योग केन्द्रों को आधुनिक आईटी जनित संचार सुविधाएं प्रदान कर और उनके पास उपलब्ध कर्मचारियों (मानव संसाधनों) को पुन:प्रशिक्षण देकर सुदृढ बनाया जाना चाहिए। चूंकि जिला उद्योग केन्द्र एमएसएमई के संवर्धन की आधारशिला के रूप में काम करते हैं, उनको तत्काल पुनर्जीवन प्रदान कर सुदृढ ब़नाना चाहिए और उनमें ऐसा परिवर्तन लाना चाहिए ताकि वे संभावित और वर्तमान उद्यमियों की हिमायत और क्षमता विकास में और अधिक सक्रिय भूमिका निभा सके। जहां भी संभव हो, डीआईसी नेटवर्क के पुनर्गठन के लिए निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी के बारे में विचार किया जाना चाहिए।डीआईसीज़ की इस तरह की पुनर्रचना (रि-इंजीनियरिंग) को केन्द्र सरकार को समर्थन देना चाहिए।
6. केन्द्र सरकार को पुनर्वास कोष स्थापित करने और अपरिहार्य कारणों से अस्थायी रूप से बीमार पड़ गई इकाइयों के पुनर्वास हेतु उपयुक्त योजनायें चलाने के लिए राज्यों की सहायता करनी चाहिए। यह सिफारिश की जाती है कि राज्य सरकारें जिला स्तर पर, जिला उद्योग केन्द्रों में, ऐसी व्यवस्था कायम करे जो बैंकों के साथ मिलकर बीमार इकाइयों के पुनरुद्धार की संभावना का पुनर्परीक्षण करें और समयबद्ध ढंग से पुनर्वास पैकेज पर अमल करें।
7. यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि पुनर्वास पैकेज बैंकों और वित्तीय संस्थाओं सहित सभी संबंधित पक्षों पर बाध्यकारी हो। आरबीआई वित्त मंत्रालय को इस संबंध में आवश्यक आदेश जारी करने चाहिए ताकि निचले स्तर पर विवेक, चाहे वह क्षेत्रीय संगठनों की ओर से हो या बैंकों की ओर से, के अधिकार की संभावना ही नहीं रहे। हमारी मान्यता है कि आंध्र प्रदेश प्रादर्श इस पद्धति के लिए एक अच्छा उदाहरण बन सकती है (अध्याय 9, संलग्नक बी) और इस योजना की रूपरेखा तैयार करते समय उस पर विचार किया जा सकता है।
8. सरकार को उन औद्योगिक क्षेत्रों में जो इस समय पतन और उपेक्षा की स्थिति में हैं, जान फूँकने के लिए और पूंजी देनी चाहिए तथा उनको औद्योगिक नगरों (इंडस्ट्रियल टाउनशिप) के रूप में उन्नत बनाना चाहिए। इस विचार को संवैधानिक स्वीकार्यता प्राप्त है। इससे प्रभावी नगरपालिका प्रशासन का रास्ता साफ होगा और नगरपालिका सेवायें प्रदान करने के लिए एकल खिड़की व्यवस्था कायम की जा सकेगी।
9. सूक्ष्म और लघु उद्यमों को क्रमिक रूप से संगठित करने की नीति के अनुसार नियोजित विकास और उन्नति की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु एमएसई इकाइयों के लिए नए संकुलों (क्लस्टर्स) का विकास किया जाना चाहिए। एमएसएमई क्षेत्र के लिए नए आधारभूत ढांचे के विकास में सरकार के पर्याप्त सहयोग की दरकार होगी ताकि उनकी आवश्यकता के अनुसार साधनों के अभाव को पूरा किया जा सके और जिससे निजी क्षेत्र को भागीदारी हेतु प्रोत्साहित किया जा सके।
10. सरकार को एमएसएमई इकाइयों के मांग पक्ष को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ पूर्व वर्णित वरीय उपार्जन और परिमाण अनुबंधों के लिए एनएसआईसी के इक्विटी आधार को मजबूत बनाना चाहिए। इससे कच्चे माल के उपार्जन की बाधायें दूर करने में मदद मिलेगी और बाजार समर्थन में भी वृद्धि होगी। (अध्याय-13, पैरा 6 (बी) से 6 (डी)) साथ ही, इस क्षेत्र के आगे पीछे बेहतर सम्पर्क विकसित होंगे।
11. सरकार को राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (एनएपीसीसी) के विशेष संदर्भ में, एमएसएमई विकास में शामिल विभिन्न मंत्रालयों की स्वच्छ प्रविधि प्रयासों को समर्थन देने हेतु उपर्युक्त क (6) में प्रस्तावित विस्तारित निवेश पैकेज के भीतर 15 अरब रुपए की राशि का प्रावधान अलग से करने पर विचार करना चाहिए। इस राशि का उपयोग मौजूदा योजनाओं को उन्नत बनाने अथवा नई योजनायें तैयार करने में किया जाना चाहिए ताकि मौजूदा एमएसएमई इकाइयों को आधुनिक स्वच्छ प्रविधि के अर्जक, अनुकूलन और नव प्रवर्तन में सहायता दी जा सके और साथ ही प्रविधि बैंक उत्पाद विशेष केन्द्रित प्राविधिक केन्द्रों का विकास किया जा सके ताकि मूल्य श्रृंखला में ऊपर उठने में उनकी मदद की जा सके।
12. प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थाओं में उद्योग जगत की भागेदारी की अवधारणा को उपर्युक्त क (6) में वर्णित समग्र पैकेज के भीतर 10 अरब रुपए का प्रावधान कर, प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। हमने देखा है कि देश की प्रमुख प्रबंधन संस्थाओं में वर्तमान में विद्यमान ऐसी भागेदारी ने नए उद्यमों और अभिनव विचारों को जन्म दिया है।
(ग)वैधानिक और नियामक संरचनायें
एमएसएमई क्षेत्र को प्रभावित करने वाले जिन वैधानिक और नियामक संरचनाओं तथा प्रावधानों की मध्यम अवधि (1-3 वर्ष) में व्यवस्था की जानी है, वे इस प्रकार हैं—
1. सरकार को पहले से ही विचाराधीन एसएमई एक्सचेंज की स्थापना में तेजी करनी चाहिए।
2. व्यवसाय हेतु लिए जाने वाले त्रऽण की प्रतिभूति व्यवस्था (जमानतदारी) के विकास और फैक्टरिंग सेवाओं के उन्नयन के लिए व्यवहार्य वैधानिक विकल्प तैयार किए जाने चाहिए।
3. सीमित दायित्व सहभागिताओं और एकल व्यक्ति कम्पनियों जैसे नए प्रारूपों (फर्मेट) का व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए। ये एमएसएमई इकाइयों को अनौपचारिक से औपचारिक अर्थव्यवस्था की ओर जाने में अंतरिम समाधान प्रदान करते हैं।
4. अन्तर्राष्ट्रीय बाजार की हकीकत को स्वीकार करते हुए दीवालिया कानून की व्यापक समीक्षा की जानी चाहिए। वैश्विक बाजार में उद्यम लगातार बनते-बिगड़ते रहते हैं।
5. श्रम कानूनों, विशेष रूप से एमएसएमई क्षेत्र से संबंधित कानूनों को सरल बनाया जाना चाहिए, क्योंकि इन नियमों के अनुपालन के लिए व्यावहारिक लागत इन इकाइयों के आकार के अनुपात से कहीं अधिक है।
यद्यपि श्रम मंत्रालय ने इस संबंध में कुछ कदम उठाए हैं, हमारी सिफारिश है कि 40 कामगारों वाले एमएसई इकाइयों के लिए एकल और व्यापक कानून बनाया जाना चाहिए। इसी के साथ-साथ एमएसएमई इकाइयों में असंगठित क्षेत्र के विशाल आकार को देखते हुए, इस क्षेत्र के श्रम से जुड़े मुद्दों को कल्याणकारी उपायों पर अधिक केन्द्रित करना चाहिए। इस संबंध में हाल ही में लागू किए गए असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 का उपयोग किया जाना चाहिए।
(घ) पूर्वोत्तर राज्य तथा जम्मू-कश्मीर
हालांकि सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों तथा जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष पैकेज शुरू किए हैं, इनके उपयोग में अन्तर-राज्यीय और अन्तर-क्षेत्रीय असमानताएं पाई गई हैं, जिनके बारे में संबंधित राज्य सरकारों को विचार करने की जरूरत है। इसके अतिरिक्त-
1. पूंजीगत अनुदान योजना में कुछ संशोधन किये जाने चाहिए ताकि एमएसएमई इकाइयों को अपने विस्तार के लिए अनुदान की सुविधा मिल सके।
2. इन योजनाओं के अंतर्गत अनुदान दावों को पूरा करने में अपर्याप्त बजटीय प्रावधानों को पूरा करने के लिए बजट में और अनुपूरक व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि एमएसई इकाइयों के सभी लम्बित दावों का निपटारा 31 मार्च, 2010 तक किया जा सके।
3. जम्मू और कश्मीर सरकार मांग करती रही है कि राज्य के एमएसएमई इकाइयों को पूर्वोत्तर क्षेत्र के उसी प्रकार के प्रोत्साहन (इन्सेटिव) दिए जाने चाहिए जो पूर्वोत्तर क्षेत्र के एनईआईआईपीपी में दिए गए हैं। इस मांग में कुछ दम है। जम्मू-कश्मीर पैकेज में विस्तार कर इसे पूर्वोत्तर राज्यों के एमएसएमई के संशोधित एनईआईआईपीपी के समान बनाया जाना चाहिए।
4. समग्र कोष में से एक अरब रुपए की राशि, जम्मू और कश्मीर की चिन्हित बीमार इकाइयों के आसान शर्तों पर विशेष पुनर्वास पैकेज पर अमल करने के लिए अलग से रखी जानी चाहिए।
उपसंहार
इनमें से कोई भी उपाय तब तक ठीक से काम नहीं करेंगे जब तक उनके क्रियान्वयन पर उच्चतम स्तर पर नियमित निगरानी नहीं की जाती। ये मुद्दे इतने भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं कि उनको एक मंत्रालय नहीं संभाल सकता। तद्नुसार कार्यबल की संस्तुति है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में सूक्ष्म और लघु उद्यमों पर प्रधानमंत्री परिषद का गठन किया जाए, जो अद्र्धवार्षिक आधार पर इन सिफारिशों के अमल पर नजर रखे। एमएसएमई मंत्रालय इस परिषद की सेवा- भुजा के रूप में काम करेगा।
भारत
सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों के विकास पर कार्यबल की रिपोर्ट
विशेष संवाददाता - 2010-02-11 12:38
एमएसएमई पर कार्यबल की रिपोर्ट में सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों (एमएसएमई) के विकास और संवर्धन की रूपरेखा दी गई है। कार्यबल के अध्यक्ष श्री टी.के.ए. नायर ने प्रधानमंत्री को यह रिपोर्ट सौपी। इस अवसर पर सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यमों के मंत्री श्री दिनशा पटेल, सचिव (एमएसएमई), श्री दिनेश राय, सचिव योजना आयोग श्री अरूण मैत्रा और कार्यबल के सदस्य उपस्थित थे।