इस बीच राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने जांच शुरू कर दी है। वे जेल अधिकारियों से पूछताछ कर रहे हैं। उन्होंने यह जानना चाहा कि 28 फीट ऊंची दीवार पार कर कोई कैसे जेल से भाग सकता है। वे यह भी जानना चाह रहे हैं कि अलग अलग सेल में रहने वाले कैदी कैसे एक साथ इकट्ठा हुए और उन्होने उतने सारे ताले को कैसे तोड़ा या खोला। उन्होंने पूछा है कि जब हेड कांस्टेबल की हत्या उन आतंकवादियों ने कर दी, तो उस समय अन्य गार्ड कहां थे और उन लोगों ने अलार्म क्यों नहीं बजाया? उन्होंने यह भी जानना चाहा कि क्या स्पेशल आम्र्ड फोर्स के जवान उस समय जेल में सो रहे थे?
एनआईए के अधिकारियों को पता लगा है कि जब जब वे आतंकवादी नमाज के लिए ले जाए जा रहे थे, तो उन लोगों ने आपस में बातचीत की थी। उन्हें यह भी पता चला कि सुशोभन बनर्जी की सिफारिशों को जेल के अधिकारियों ने नजरअंदाज कर रखा था। उदाहरण के लिए उन्होंने कहा था कि तालों को समय समय पर लगातार बदलते रहना चाहिए और कैदियों के सेल भी लगातार बदले जाने चाहिए। बनर्जी की एक सिफारिश थी कि जेल की चहारदिवारी के बाहर भी पहरेदार होने चाहिए।
अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि कैदियों की पहरेदारी करने के लिए सिर्फ दो ही पहरेदार क्यों रखे गए थे और स्पेशल आम्र्ड फोर्स के किसी जवान को यह पता क्यों नहीं चला कि आतंकी भाग रहे हैं। यह भी पता चला है कि 8 बजे शाम से 2 बजे रात तक जिस पहरेदार को उस ब्लाॅक मे ड्यूटी पर लगाया गया था, वह उनके सेल के नजदीक गया ही नहीं था। ड्यूटी बदलने के बाद जब नया पहरेदार वहां यह देखने को गया कि सबकुछ ठीक है या नहीं, तो आतंकियों ने उसे संभलने का मौका दिए बिना ही मार डाला।
निलंबित अधिकारी एमआर पटेल कहते हैं कि वहां कर्मचारियांे की भारी कमी है। इसके साथ वे यह भी कहते हैं कि स्पेशल आम्र्ड फोर्स को फिर भी यह पता हो जाना चाहिए था कि वहां गड़बड़ी हो रही है।
उस रोज जेल में 2900 कैदी थे। जेल की क्षमता 1600 कैदियों को वहां रखने की है। उस जेल के लिए 50 हेड कांस्टेबल के पद सैंक्शन किए गए हैं, जबकि 40 हेड कांस्टेबल ही वहां नियुक्त हैं। 250 कांस्टेबल की जगह मात्र 120 कांस्टेबल से ही जेल काम चला रहा है।
जेल में सीसीटीवी कैमरे भी लगे हुए हैं, लेकिन उनमें से कुछ कैमरे खराब हैं और भागने वाले आतंकवादियों को इसकी पूरी जानकारी थी कि कौन कौन कैमरे खराब थे। जो कैमरे ठीक थे, उनसे वे बचते हुए निकले ताकि उनकी रेज में वे नहीं आ सकें।
यह तो भागने को लेकर बना हुआ रहस्य है, मुठभेड़ से जुड़ा रहस्य तो ओर भी खतरनाक है। अलग अलग बातें की जा रही हैं। पुलिस तो मुठभेड़ की बात ही कर रहे हैं, लेकिन जिस गांव में वह कथित मुठभेड़ हुई, उसके लोग अलग अलग तरह की बातें कर रहे हैं। कोई कह रहा है कि आतंकवादियों के पास पिस्तौल और बंदूक नहीं थे और वे पत्थरों से ही पुलिस पर हमले कर रहे थे, तो कुछ ग्रामीणों का कहना है कि आतंकवादी भी गोली चला रहे थे।
अब रहस्य से पर्दा जांच के बाद ही उठेगा। (संवाद)
भोपाल मुठभेड़ का रहस्य गहराया
अलग अलग के बयान पुलिस पर संदेह पैदा करते हैं
एल एस हरदेनिया - 2016-11-03 11:48
भोपालः एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान विपक्षी नेताओं पर हमला करते हुए कह रहे हैं कि उन्हें आतंकवादियो के लिए आंसू बहाते हुए शर्म नहीं आ रही है और दूसरी ओर जिन परिस्थितियों में आतंकवादी जेल से फरार हुए और जिस तरह से उनकी मौत हुई, उसने पुलिस की मुठभेड़ की कहानी पर संदेह पैदा कर दिए हैं।