विपक्षी पार्टियों के नेता और निष्पक्ष राजनैतिक विश्लेषक ही नहीं, बल्कि भाजपा के कुछ नेता भी दबे स्वर में यह कह रहे थे कि पार्टी का नुकसान हो जाएगा, क्योंकि बिना खास तैयार के यह घोषणा कर दी गई है और इससे पैदा स्थिति को संभालने में प्रशासन और बैंक विफल हो रहे हैं। पुराने नोटों को बदलवाने और जमा करने व बैंकों और एटीएम से अपनी जमाराशि निकालने के लिए लाइनों में खड़ै लोगों की मौत की घटनाएं सामने आ रही थीं। अस्पतालों में मरीजों की इलाज या दवा की कमी के कारण मरने की खबर भी आ रही थी। इतना ही नहीं, काम का बोझ बढ़ने के कारण कुछ बैंककर्मियों के मरने की खबर भी इस बीच आई। लोग दिन दिन भी कतारों में खड़े रहते थे और उनमें से कुछ को तो निराश होकर वापस भी जाना पड़ रहा था।
देश के अनेक हिस्सों में स्थिति अब भी नहीं सुधरी है। जाहिर है, इसके कारण भाजपा को नुकसान की संभावना भी व्यक्त की जा रही थी। लेकिन भाजपा के अधिकांश नेता आशान्वित थे कि उन्हें सरकार के इस कदम से फायदा होने वाला है। हकीकत जानने के लिए उपचुनावों के नतीजे इसलिए ज्यादा सहायक हो सकते हैं कि उनके लिए मतदान 19 नवंबर को हुआ और उसके आसपास स्थिति सबसे ज्यादा बिगड़ी हुई थी।
लेकिन इन चुनावों मे भारतीय जनता पार्टी को कोई नुकसान नहीं हुआ, उल्टे उसे कुछ फायदा ही हो गया। मध्यप्रदेश उसके लिए सबसे ज्यादा निर्णायक साबित होने वाला था। भारतीय जनता पार्टी का यह प्रदेश गढ़ रहा है। पिछले 14 सालों से वहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और जिन दो क्षेत्रों के लिए वहां चुनाव हो रहा था, वे दोनो सीटें भाजपा के विधायक और सांसद की मौत के कारण ही खाली हुई थी। यदि उनमें से एक में भी भाजपा की हार हो जाती, तो माना जाता कि नोटबंदी की यह घोषणा उसके लिए खतरनाक साबित हुई है और आने वाले दिनों मे ंभी उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। पर दोनों जगह भाजपा के उम्मीदवारों की जीत हो गई और यह साबित हो गया कि नोटबंदी के कारण होने वाली परेशानियों के बावजूद लोग इसका स्वागत कर रहे हैं।
मध्यप्रदेश के अलावा असम एक ऐसा प्रदेश है, जहां अब भाजपा की स्थिति बेहतर हो गई है। वहां भी उपचुनाव हो रहे थे। एक सीट पर तो खुद मुख्यमंत्री ही चुनाव लड़ रहे थे, जबकि दूसरी सीट उनके द्वारा इस्तीफा दिए जाने के कारण खाली हुई थी। दोनों सीटो पर भाजपा की जीत नोटबंदी के बावजूद तय मानी जा रही थी। सिर्फ यह देखना था कि जीत का मार्जिन कैसा रहता है। और जब नतीजे सामने आए, तो पता चला कि जीत का मार्जिन बहुत ज्यादा है। यानी वहां भी नोटबंदी की परेशानियों के बावजूद भाजपा जीती।
पश्चिम बंगाल में दो लोकसभा सीटों के लिए उपचुनाव हो रहे थे। दोनों सीटों पर पहले तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार थे। तृणमूल कांग्रेस की जीत के प्रति भी किसी को कोई संदेह नहीं था। भारतीय जनता पार्टी के लिए वहां कुछ दांव पर नहीं था, लेकिन कूच बिहार लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने दूसरा स्थान प्राप्त कर यह साबित कर दिया कि वह वहां कांग्रेस और वामपंथियों से ज्यादा लोकप्रिय है। त्रिपुरा में भी उम्मीद के मुताबिक सीपीएम के दोनों उम्मीदवार ही जीते, लेकिन वहां भी भारतीय जनता पार्टी के वोटों में काफी वृद्धि आई।
अरुणाचल प्रदेश में एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री की मौत के कारण एक विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव हो रहा था। वहां भारतीय जनता पार्टी की जीत हो गई। जाहिर है, वहां भाजपा फायदे में रही। तमिलनाडु में जयललिता की पार्टी और पुदुचेरी में कांग्रेस के उम्मीदवार, जो इस समय वहां के मुख्यमंत्री भी हैं, जीत गए। भाजपा का उन दोनो राज्यों मे कोई खास उपस्थिति नहीं है। इसलिए वहां उसका कुछ भी दांव पर नहीं लगा हुए था।
जाहिर है कि नोटबंदी के बाद की पहली चुनावी लड़ाई मोदी के नाम लिख दी गई है। भारतीय जनता पार्टी को इसका फायदा उस समय भी हो रहा है, जब लोग नोटबंदी से परेशान हैं और जब आने वाले समय में लोग इन परेशानियों को भूलने लगेंगे और उन्हें लगेगा कि सरकार ने इस कदम के द्वारा काला धन के एक बड़े हिस्से को समाप्त कर दिया, तो जनता में उसकी पैठ और भी बढ़ेगी।
उपचुनावों मे बेहतर प्रदर्शन के कारण भारतीय जनता पार्टी मे निश्चय ही विश्वास बढ़ेगा और उत्तर प्रदेश, पंजाब और गोवा मे हाने जा रहे विधानसभा चुनावों में पार्टी पूरे आत्मविश्वास के साथ उतरेगी। यदि काले धन के खिलाफ सरकार ने एक या दो कदम और उठा लिए और काले धन व भ्रष्ट लोगो को परेशान होते हुए जनता ने देखा, तो भाजपा की स्थिति और भी बेहतर हो सकती है, क्योकि लोग ऐसी सरकार चाहते हैं, जो भ्रष्टाचार पर लगाम लगाए और भ्रष्टाचारियों को सजा दे।
नोटबंदी के खिलाफ सरकार के खिलाफ लामबंद हुई विपक्षी पार्टियों का इन चुनावी नतीजों से सबक लेना चाहिए। यदि लोगों में यह संदेश गया कि वे नोटबंदी का विरोध इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि वे भ्रष्टाचार के पक्षधर है, तो इससे उनका ही नुकसान होगा, वैसे उनके बारे में लोगों को पहले से ही पता है कि भ्रष्टाचार से संबंधित उनका रवैया कैसा रहा है। इसलिए जिन पार्टियों की छवि भ्रष्टाचार को लेकर कुछ बेहतर है, उन्हें उन पार्टियों के साथ मिलकर साझा संघर्ष भी नहीं करना चाहिए, जिनकी छवि इस मामले में बहुत खराब है।(संवाद)
विमुद्रीकरण और उसके बाद
लड़ाई का पहला दौर मोदी के नाम
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-11-23 10:36
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा के बाद 19 नंवबर को देश के 6 राज्यों और एक केन्द्रशासित प्रदेश में 4 लोकसभा और 8 विधानसभाओं के लिए उपचुनाव हुए उपचुनावों के नतीजों का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था, क्योंकि इससे पता चलता कि लोगो पर इसका कैसा असर पड़ा है। इसमें कोई दो मत नहीं कि प्रधानमंत्री की घोषणा का देश के लोगों ने खुला स्वागत किया था और कुछ समय तक वे इससे पैदा हुई परेशानी को सहने के लिए भी तैयार थे, लेकिन परेशानी की मियाद लंबी खिंच गई। इसके कारण यह शक स्वाभाविक रूप से पैदा हो गया था कि कहीं यह घोषणा भारतीय जनता पार्टी के लिए नुकसानदेह न साबित हो जाय।