भारतीय जनता पार्टी संसदीय दल को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि काले धन के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी और उन्होंने अभी जो किया वह अंत नहीं है, बल्कि शुरुआत थी। प्रधानमंत्री ने आश्वस्त किया कि अगला साल नया साल और नया भारत होगा।
उन्होंने कहा कि 30 दिसंबर के बाद सबकुछ सामान्य हो जाएगा, लेकिन वे यह कहना चाहेंगे कि इस कार्यक्रम की समाप्ति के बाद आगे भी कुछ किया जाएगा ताकि उस तरह के लोगों से व्यवस्था को छुटकारा मिल सके।
प्रधानमंत्री की इस घोषणा से उन लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है, जो सोच रहे थे कि इस विमुद्रीकरण योजना के पूरा हो जाने के बाद सबकुछ सामान्य हो जाएगा और जैसा पहले चल रहा था, वैसा आगे भी चलता रहेगा।
सरकार का अगला कदम विदेशी बैंकों मे जमा किए गए धन को वापस लाना हो सकता है। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले नरेन्द्र मोदी ने यही वायदा किया था। उसके लिए सरकार प्रयास भी कर रही है, लेकिन अभी तक नतीजा नहीं निकल रहा है।
उससे भी ज्यादा कारगर कदम सोना और जमीन जायदाद के रूप में इकट्ठा किए गए काले धन को निकालना हो सकता है। बेनामी संपत्ति के रूप में अरबों की संपत्ति जमा की गई है।
गोवा की अपनी सभा में मोदी ने कहा था कि वे बेनामी संपत्ति के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। उन्होंने कहा था कि इससे भ्रष्टाचार और काला धन को रोकने में बहुत सहायता मिलेगी।
बेनामी संपत्ति की समस्या से निबटने के लिए पहले से ही हमारे देश में एक कानून है। उस कानून को मोदी की सरकार ने अब कड़ा कर दिया है। बदला हुआ यह कानून 1 नवंबर से अस्तित्व में आ गया है।
विमुद्रीकरण से अपने आपमें कोई फायदा नहीं होने वाला है। इसका फायदा स्थायी हो और भविष्य में काला धन सृजित नहीं हो, इसके लिए जरूरी है कि कर प्रणाली में सुधार किया जाए। इसके लिए वित्तीय सुधार की सख्त जरूरत है।
चर्चा तो यह भी हो रही है कि केन्द्र सरकार आयकर को ही समाप्त करने वाली है और उसकी जगह बैंक ट्रांजैक्शन टैक्स लगाया जा सकता है। इसके कारण अनेक लोग एक अलग किस्म के टैक्स नेट में आ जाएंगे। एक प्रस्ताव तो व्ययकर शुरू करने का भी है।
और सबसे महत्वपूर्ण चुनाव सुधार भी है। बिना चुनाव सुधार किए हुए काले धन की समस्या से नहीं निबटा जा सकता है। चुनाव में काले धन का नंगा नाच होता है। चुनावों के समय करोड़ों रुपये निर्वाचन आयोग के प्रयासों में जब्त किया जाता है। इसलिए यह जरूरी है कि पार्टियों को फंड देने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाय। राजनैतिक पार्टियों को आरटीआई के दायरे में भी लाया जाना चाहिए।
वे सब कदम को बाद में उठाए जाएंगे, लेकिन विमुद्रीकरण के कदम ने जो अव्यवस्था पैदा कर रखी है और जो कोहराम हो रहा है, उसका निदान किया जाना चाहिए। इसमे कोई शक नहीं है कि सरकार ने विमुद्रीकरण के निर्णय के बाद पैदा होने वाली परिस्थितियों से निबटने की तैयारी नहीं की थी।
विमुद्रीकरण के फैसले को गुप्त रखा जाना जरूरी था, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक इसे गुप्त रखते हुए भी तैयारी तो कर ही सकता था। बैंक नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं थे। सवाल उठता है कि क्या प्रधानमंत्री द्वारा मांगे गए 50 दिनों मंे बाजार में मुद्रा की आपूर्ति संतोषजनक स्तर प्राप्त कर लेगी? विशेषज्ञ तो कहते हैं कि इसमें और भी ज्यादा दिन लगेंगे।
विमुद्रीकरण की घोषणा के बाद मची अफरातफरी के सबक यह है कि प्रधानमंत्री को कोई भी कदम उठाने के पहले उससे पैदा परिस्थितियों को संभालने की तैयारी भी कर लेनी चाहिए। (संवाद)
विमुद्रीकरण अंतिम अस्त्र नहीं
मोदी करना चाहते हैं और भी कदम
कल्याणी शंकर - 2016-11-25 10:06
आठ नवंबर को घोषित किए गए विमुद्रीकरण के निर्णय ने जमाखोरों, मुनाफाखोरों और कालाबाजारियों को हिला कर रख दिया है। भ्रष्ट राजनीतिज्ञ भी इससे तिलमिला गए हैं। सवाल पूछा जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी आगे क्या करेंगे?