इसका नतीजा यह हुआ कि विधानसभा और लोकसभा के कुछ उपचुनावों में उन्होंने परेशानियों के बावजूद भाजपा का साथ दिया और भाजपा के उम्मीदवार अनेक क्षेत्रों में जीत गए। नोटबंदी से लोग इतने खुश थे कि 27 नवंबर को महाराष्ट्र के नगर निकायों के चुनावों में भी उन्होंने भाजपा को जिता दिया, जबकि नोटबंदी के कारण उन्हें काफी परेशानी हो रही थी। देश की जनता ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस आग्रह को स्वीकार कर लिया था कि वे 30 दिसंबर तक कष्ट सह लें और उसके बाद देखें कि सरकार काली कमाई करने वालों का क्या हाल करती है।

देश की जनता तो 50 दिनों तक कष्ट सहने को तैयार थी और विपक्ष द्वारा 28 नवंबर को किए गए विरोध प्रदर्शन में उन लोगों ने हिस्सा नहीं लिया, लेकिन सरकार खुद 20 दिनों में ही फिसल गई और काली कमाई करने वालों के लिए एक और स्कीम ले आई ताकि वे काले धन को सफेद कर सकें। नई स्कीम के तहत काले धन के मालिक बैंकों में अपना पूरा धन जमा कर सकेंगे। बस उन्हें 50 फीसदी टैक्स देना होगा और बैंकों में जो उनका शेष 50 फीसदी बच जाएगा उनमें से आधा वे अभी निकाल सकते हैं और आधा चार साल के बाद। यानी काले धन के लोगों को रुलाने का दावा करते हुए प्रधानमंत्री ईमानदार लोगांे को रुलाते रहे। ये रोने वाले लोग बाहर से हसते रहे, क्योंकि वे काले धन वालों को रोते हुए देखना चाहते थे, लेकिन मोदी जी ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया। अब काले धन वाले और काली कमाई करने वाले हंसेंगे और जो ईमानदार है, उनके चेहरे से मुस्कान गायब हो जाएगी और वे अब अन्दर से ही नहीं, बल्कि बाहर से भी रोएंगे।

इस तरह देश की जनता एक बार फिर छली गई है। मोदीजी ने वायदा किया था कि वे विदेशों में जमा काला धन लाकर वे देश के लोगों में बांट देंगे, लेकिन बांटना तो दूर वे विदेशों से पैसा वापस ही नहीं ला पाए। नोटबंदी के फैसले के साथ उन्होंने लोगों में उम्मीद जगाई कि अब देश के अंदर के काले धन को तो काली तिजौरियों में ही दफन कर देंगे। लोगो को लगा कि पूरा नही ंतो आधा ही सही, कुछ तो करो। आर्थिक विशेषज्ञ कह रहे थे कि देश के अंदर जो काला धन है, उसका सिर्फ 6 फीसदी हिस्सा ही नोटों में है, बाकी 94 फीसदी रियल इस्टेट, सोना, विदेशी मुद्रा और विदेशी बैंकों मे है। लोगों ने कहा कि 6 प्रतिशत काला ध नही सही, उसे तो मोदीजी को समाप्त करने दो।

लेकिन यह क्या, मोदीजी ने तो चकमा दे दिया। अब वे 6 फीसदे काले धन को भी सफेद करने में जुट गए हैं। जब काले धन को सफेद करने की उन्होंने पिछली मुहिम चलाई थी, तब कहा था कि 45 फीसदी काला धन दे दो और 55 अपने पास रख लो। हम यह नहीं पूछेंगे कि वह काली कमाई कहां से की, किसके घर को लूटा। और वे लूटेरे कौन हैं, इसे भी गुप्त रखने की गारंटी मोदीजी ने दी थी। अब उसी स्कीम को दुबारा लागू कर दिया है उन्होंने। बस टैक्स 45 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया है। और काली कमाई करने वालों का नाम गुप्त रखने का एक बार फिर भरोसा दे दिया है।

सवाल उठता है कि आखिर मोदीजी ने ऐसा किया क्यों? क्या वास्तव में उनकी जान पर खतरा था और वे डर गए या उनकी कुर्सी पर खतरा पैदा हो गया था, जिसके कारण उन्होंने पलटी मार दी? प्रधानमंत्री की कुर्सी से तो उन्हें उनकी पार्टी के सांसद ही हटा सकते हैं, तो क्या भाजपा के अंदर मोदीजी का विरोध हो रहा था और उस विरोध से बचने के लिए उन्होंने अपने पहले दिए गए सभी बयानों को गलतबयानी साबित कर दिया?

विदेशों से काला धन लाने के वायदे को अमित शाह ने नरेन्द्र मोदी की जुमलेबाजी करार दिया था। अभी कुछ दिन पहले वे बोल रहे थे कि काला धन रखने वाले रोएंगे। तो क्या यह एक नई जुमलेबाजी थी? क्या देश जुमलेबाजियों से चलती है? उन्होंने एक शगूफा भी छोड़ा है, जिसके तहत भाजपा के विधायकों और सांसदों को 8 नवंबर से 30 दिसंबर तक के अपने बैंक अकाउंट की प्रविष्टियों को दिखाने को कहा गया है। क्या देश की जनता को मोदी जी इतना बेवकूफ समझते हैं कि वे इस शगूफे के चक्कर में फंसें? अमित शाह भाजपा के अध्यक्ष हैं। वे क्यों नहीं जुलाई और उसके बाद के भाजपा के सभी एकाउंट को जनता के सामने सार्वजनिक करते हैं, जिससे पता चले कि भाजपा ने कितने नोट खाते में डाले और जमीन की कितनी खरीददारी की। खबर आ रही है कि बिहार और उड़ीसा सहित देश के अनेक हिस्सों में भाजपा ने जमीन खरीदी है। अमित शाह यह भी बता सकते हैं कि 8 नवंबर को हुई नोटबंदी के बाद जमीन के कितने टुकड़े खरीदने से पार्टी वंचित हो गई।

यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि कहीं उन्होंने जो 50-50 की योजना चलाई है, इसकी तैयारी पहले से ही तो नहीं थी। यदि ऐसा है, तो नोटबंदी का यह तांडव क्यों किया गया? इसके पीछे मोदी जी का उद्देश्य क्या था? क्या वे देश के खुदरा व्यापारियों को तबाह करना चाहते हैं और खुदरा व्यापार को देशी और विदेशी संगठित क्षेत्रों के हाथों में थमा देना चाहते हैं? इन सवालों का जवाब मोदी सरकार और उनकी पार्टी को देना ही पड़ेगा, क्योंकि अब वे यह नहीं कह सकते कि उन्होंने नोटबंदी काला धन को समाप्त करने और काले धन वाले नोटों को रद्दी में तब्दील करने के लिए किया था। (संवाद)