नोटबंदी के शुरुआती दिन बीत गए। दो या तीन क्या, चार सप्ताह बीत गए। सरकारी घोषणाओं को सच मानें तो एटीएम मशीनों में 90 फीसदी नये नोटों के अनुकूल भी बना दिए गए। लेकिन इसके बावजूद कैश की समस्या जस की तस बनी हुई है। खबरें आती हैं कि 90 फीसदी एटीएम मशीनें नये नोटों के अनुकूल बना दी गई हैं। खबर यह भी आती है कि सिर्फ 35 फीसदी एटीएम मशीनों मे ही कैश डाला जा रहा है। पर सच्चाई यह है कि 10 फीसदी एटीएम मशीनों से भी रुपये नहीं निकल रहे हैं। मशीनें नहीं हों, तो लोग बैंक की शाखाओं से भी काम चला सकते हैं, लेकिन लोगों को बैंकों से भी पैसे नहीं मिल रहे हैं। घोषणा की जाती है कि एक बार में कोई व्यक्ति 24 हजार रुपये निकाल सकता है और वह चाहे तो एक सप्ताह के बाद भी 24 हजार निकाल सकता है, लेकिन सच्चाई यह है कि अधिकांश बैंक उस घोषणा का भी पालन नहीं कर रहे हैं।

जिस नोटबंदी को शुरुआत में लोग काले धन के खिलाफ एक बहुत बड़ा हमला समझ रहे थे, अब वह नोटबंदी लोगों की तबाही और बर्बादी का सबब बन गया है। इसका एकमात्र कारण है कि पुराने नोटों को बद करने के पहले सरकार ने उन्हें बदलने के लिए नये नोट छपवाकर ही नहीं रखे थे। यदि एक सप्ताह या 10 दिन में पर्याप्त रुपया बाजार में आ जाता और बैंकों तथा एटीएम के रुपये निकालने की सीमा हटा दी जाती और बैंक मांग के मुताबिक रूपये की आपूर्ति कर पाता, तो कोई समस्या नहीं होती। 10 दिनों का यह झटका लोग भी बर्दाश्त कर लेते और बाजार भी इसे बर्दाश्त कर उबर जाता, लेकिन यह झटका लंबा खिंचता जा रहा है और बर्बादी व तबाही का मंजर चौतरफा देखा जा सकता है।

अब सरकार कैशलेस भुगतान की बात कर रही है। वह कैशलेस के पहले लेस कैश वाली अर्थव्यवस्था बनाने की बात कर रही है, लेकिन ऐसा होने में समय लगता है और समय का इंतजार न तो बाजार कर सकता है और न ही अर्थव्यवस्था। कैश होने की बात सरकार इस तरह से कर ही है मानों लगी हुई आग को बुझाने के लिए वह लोगों को कुंआ खोदने को कह रही हो। कुआं भी खोदने के लिए कुदाल फावड़ा और टोकरी की जरूरत पड़ती है, लेकिन जब लोगों के पास ये भी नहीं हो, तो क्या वे अपने नाखूनों से कुआं खोदेंगे? कैशलेस होने की सरकार की पुकार बिल्कुल ऐसी ही है कि आग से निबटने के लिए लोगों को कुआं खोदने के लिए कहा जाय और वह भी अपने नाखूनों से।

नोटबंदी को भारतीय जनता पार्टी के नेता काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक कह रहे थे, लेकिन यह तो देश के बाजार और उसकी अर्थव्यवस्था पर कार्पेट बमबारी साबित हुई है, जिसके कारण चारों तरफ लोग बेहाल हो गए हैं। ऐसा कोई बाजार नहीं है, जो इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ हो। किसानों की फसलें नहीं बिक रही हैं। सब्जियां या तो खेतों में सड़ रही हैं अथवा खेतों की मिट्टी से भी कम कीमत पर बेचने के लिए किसान मजबूर हो रहे हैं। किसानों को अगली फसल लगाने के लिए बीज और खाद तक नहीं मिल पा रहे हैं। व्यापारी भी बाप बाप कर रहे हैं, क्योंकि उनके पास नोट नहीं है, जिससे वे किसानों के माल खरीद सकें। छोटे छोट उद्योग धंधा करने वाले लोग बर्बाद हो गए हैं, क्योंकि वे उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले मालो की खरीद नहीे कर सकते और मजदूरों को मजदूरी या तनख्वाह नहीं दे सकते। काम के अभाव में मजदूर बेरोजगार हो गए हैं।

देश में एक विचित्र किस्म का अकाल पड़ गया है। यह अकाल न तो सूखे के कारण है और न ही वर्षा के कारण और न ही किसी अभाव के कारण। हमारी सरकार की नासमझ भरे एक फैसले का खामियाजा देश की जनता भुगत रही है। सरकार ने यह फैसला यह कहते हुए किया था कि इससे भ्रष्टाचार और काला धन समाप्त होगा। इससे भ्रष्टाचार समाप्त होगा, ऐसा तो किसी को लगा नहीं था, लेकिन यह जरूर लग रहा था कि जिन लोगों ने बहुत सारा पैसा काली कमाई करके अपने पास रखा हुआ है, उनका वह पैसा बर्बाद हो जाएगा। लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ। 14 लाख करोड़ रुपए के नोटों को सरकार ने रद्द किया था। उनमे से 12 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा बैंकों में वापस आ चुके हैं। 30 दिसंबर तक और वापस आएंगे ?

यानी सारी रकम सफेद होकर बैंकों में आ जाएगी। और इस पूरी कसरत में केन्द्र सरकार ने अपनी तरफ से एक लाख करोड़ रुपया खर्च कर दिया है। यानी जिस उद्देश्य के लिए नोटबंदी की गई वह पूरी तरह पराजित होती दिखाई पड़ रही है और इसके लिए भी केन्द्र सरकार की नासमझी ही जिम्मेदार है। भाजपा के नेता और खुद प्रधानमंत्री ही लोगों को काला धन को सफेद करने की कला यह कहते हुए सिखा रहे थे कि ढाई लाख रुपये की राशि यदि किसी खाते में जमा होती है, तो सरकार खाताधारक से पूछताछ नहीं करेगी। इस घोषणा का लाभ उठाकर काला धन के स्वामियों ने अपने पैसे उन लोगों के खातों में जमा करवा दिए, जिनके खाते में कम पैसा होता है।

हमला काले धन पर था, लेकिन नये नोट की कमी और संकट के लंबा खींचने का नतीजा यह हुआ कि नोटबंदी की यह स्कीम खुद काला धन पैदा कर रही है। बैंक के मैेनेजरों पर आरोप लग रहा है कि वे कमीशन खाकर नये नोटों से पुराना नोट बदल रहे हैं और नये नये एकाउंट खुलवाकर भी काले धन को सफेद करने का धंधा कर रहे हैं। यह सच है कि अधिकांश बैंक स्टाफ तो खुद इस नोटबंदी की मार से पीड़ित हैं और अनेक तो इसके तनाव के कारण अपनी जान तक गंवा बैठे हैं, लेकिन कुछ मैनेजरों की चांदी तो हो ही रही है और काला धन समाप्त करने वाला यह फैसला खुद काला धन पैदा करने का कारण बन रहा है। (संवाद)