7 दिसंबर को भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल यह बताने में विफल रहे कि कब तक हालात सामान्य हो जाएंगे। उन्होंने बस सामान्य सी बात कही कि स्थिति धीरे धीरे बेहतर हो रही है। दूसरी तरफ वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा कि सरकार में बैठे लोगों को भी लग रहा है कि अगले छह महीने में भी स्थिति सामान्य नहीं होने वाली है। पूर्व वित्तमंत्री ने कहा कि काला धन समाप्त करने का उद्देश्य पूरी तरह पराजित हो जाएगा और काले धन के नये रास्ते खुल जाएंगे।
वे सवाल पूछ रहे हैं कि नोटबंदी की इस घोषणा से कौन सा उद्देश्य हासिल होने वाला है? लेकिन हमें इस बात को समझना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी बेवकूफ नहीं हैं। उनके इस पागलपन मे भी कुछ समझ की बातें हैं। उन्होंने कुछ गणना की होगी और उसके बाद ही इस दिशा में कदम बढ़ाया होगा। अब वे कैशलेस समाज की बात कर रहे हैं। अब वे काले धन की चर्चा नहीं करते। उनकी नजर उत्तर प्रदेश व उसके साथ कुछ अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर है। उन चुनावों में वे नोटबंदी का एक बड़ा मुद्दा बनाएंगे और उसके साथ साथ ही एक फरवरी को पेश किए जाने वाले बजट में भी कुछ ऐसे प्रावधान करेंगे, जिससे लोगों को नोटबंदी का फायदा दिखाया जा सके।
एक चर्चा तो यह है कि नरेन्द्र मोदी ने जनधन योजना के तहत जो 28 करोड़ रुपये से ज्यादा बैंक अकाउंट खुलवाए हैं, उनमें वे सरकार की ओर से पैसे डालेंगे। हो सकता है कि प्रत्येक खाते में 30 हजार से 40 हजार रुपये डालें और कहें कि नोटबंदी से समाप्त हुए काला धन को ही जनधन खातों में डाला जा रहा है। इस तरह नोटबंदी को कारगर बताते हुए प्रधानमंत्री जनता को उसका लाभ दिखाते हुए उससे वोट मांगेंगे। यह उनका मास्टर स्ट्रोक होगा और इसके कारण उनके विरोधियों के लिए उनका सामना करना अत्यंत ही कठिन हो जाएगा।
प्रधानमंत्री से जुड़े लोगों का ऐसा मानना है कि एक बार इस नोटबंदी के कारण हो रही परेशानियांे को समाप्त हो जाने के बाद मोदी को गरीबों के मसीहा के रूप में प्रोजेक्ट किया जा सकता है और कहा जा सकता है कि काले धन को समाप्त करने की इच्छा रखने वाले वे एकमात्र नेता हैं। उनके इस चेहरे के साथ ही भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश का चुनाव लड़ेगी। उन्हें यह भी लग रहा है कि उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा और कांग्रेस काले धन की सहायता से ही अपना चुनाव अभियान पूरे तौर पर चला पाएगी और नोटबंदी ने उसकी अब कमर तोड़कर रख दी है।
यदि जनधन योजना के खाताधारक अच्छी रकम हासिल कर लेते हैं, तो नरेन्द्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी का काम आसान हो जाएगा। तब नरेन्द्र मोदी इन चुनावों को कालेधन पर एक जनमत संग्रह के तौर पर पेश करेंगे। वे कहेंगे कि नोटबंदी तो सिर्फ शुरुआत थी, उनका मकसद एक कैशलेस समाज बनाना है, जिसमें भ्रष्टाचार और कालाधन के लिए कोई स्थान ही नहीं रह जाएगा। इस तरह नरेन्द्र मोदी नोटबंदी को अपना चुनावी मुद्दा बनाएंगे और अपने विरोधियों को मात देने की कोशिश करेंगे।(संवाद)
विमुद्रीकरण की पहली परीक्षा उत्तर प्रदेश चुनाव में
बजट प्रावधानों के द्वारा मतदाताओं को लुभा सकते हैं मोदी
नित्य चक्रबर्ती - 2016-12-11 03:48
प्रधानमंत्री नरेन्द्र द्वारा नोटबंदी की घोषणा के एक महीने से भी ज्यादा हो गया है। विपक्षी पार्टियां उसके बाद से संसद नहीं चलने दे रही हैं। लाखों लोग बैंकों और एटीएम मशीनों के सामने कतार में खड़े हैं और अनेक लोगांे को पैसे मिल भी नहीं पा रहे। पूरी बैंकिग व्यवस्था ही लकवाग्रस्त हो गई है और लोग बैंकों में जमा अपने पैसे भी हासिल नहीं कर पा रहे हैं। अधिकांश अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि नोटबंदी का यह फैसला गलत था और इससे काले धन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। वे कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा कर एक बहुत बड़ी गलती की है। यदि उन्हें यह घोषणा करनी ही थी, तो उसके पहले पर्याप्त तैयारी भी होनी चाहिए थी।