जहां जम्मू में लगभग दो मास से जनता ने किसी न किसी भेदभाव के विषय को लेकर प्रदर्शन, जुलूस, धरना, गोष्ठी का आयोजन किया है वहीं सुदूर लेह (लद्‌दाख) की जनता ने लद्‌दाख को केंद्र शासित (यूटी) का देर्जा प्राप्त करने हेतु संघर्ष को तेज किया। यहां तक कि लद्‌दाख यूनियन टेरिटेरी फ्रंट के पदाधिकारियों तथा अन्य सदस्यों ने दिल्ली जाकर, राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया और जम्मू में भी राजभवन के बाहर एक दिन का धरना दिया तथा राज्यपाल को भेदभाव के विरुद्ध तथा केंद्र शासित क्षेत्र के लिए ज्ञापन दिया। जम्मू के कई संगठनों ने भी इस धरने में भाग लिया, साथ ही फ्रंट के अध्यक्ष ने पत्रकार वार्ता में आगामी संघर्ष के लिये और संगठनों से भी सहायता हेतु आह्‌वान किया।

जम्मू-कश्मीर में प्रतिदिन कहीं न कहीं कोई न कोई आतंकी घटना हो रही है। २०१० के पहले सप्ताह में ही कश्मीर घाटी में दो स्थानों पर आत्मघाती हमले हुए और आतंकियों के साथ सुरक्षा बलों की झड़पें हो रही हैं, वहीं सेना के अधिकारियों ने तथा अन्य ने माना कि पाकिस्तान के साथ लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा तथा नियंत्रण रेखा पर उधर से कई आतंकियों का जमावड़ा लगा है जो कि सीमा पार करने की फिराक में हैं। सीमा पार से कई बार इस ओर आरडीएक्स फेंका गया है। जिसमें सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी भी शहीद हो गये, साथ ही पाकिस्तान की ओर से कई स्थानों पर तार काटने की घटनाएं हो रही हैं। यहां तक कि गणतंत्र दिवस पर भी पाकिस्तानी सैनिकों की ओर से बधाई देने के बदले गोलीबारी की गई। उस पर केंद्र की ओर से आतंकियों के साथ पर्दे के पीछे बातचीत पर जम्मू, लद्‌दाख तथा राष्ट्रवादी ताकतों ने इसका विरोध किया। उस पर प्रधानमंत्री द्वारा गठित पांचवें वर्किंग ग्रुप से केंद्र-राज्य संबंधों पर अपनी रिपोर्ट देनी थी, जिसके अध्यक्ष के नाते पूर्व न्यायाधीश शगीर अहमद हैं, की रिपोर्ट जो कि ग्रुप के सचिव ने प्रधानमंत्री को देने के बजाए जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री को सौंपी, जिसमें सिफारिश की गई कि जम्मू-कश्मीर को स्वायता दी जाए तथा जम्मू व लद्‌दाख के साथ कोई भेदभाव नहीं है एवं विधानसभा के सीटों के परिसीमन की कोई आवश्यकता नहीं है, ने जम्मू के मानस में उठी ज्वाला में घी का काम किया।

चारों ओर लोग सड़कों पर आये तथा न्यायमूर्ति शगीर अहमद की रिपोर्ट को खारिज करते हुए एक स्वर में कहा कि यह तो नेशनल कांफ्रेंस का ऐजेंडा है। जम्मू-कश्मीर पीपुल्स फोरम के तत्वा धान में आयोजित एक गोष्ठी जिसमें सभी सदस्यों जो कि शगीर अहमद कमेटी के सदस्य थे, नेशनल कांफें स, कांग्रेस और पीडीपी को छोड़ अन्य सभी इस गोष्ठी में उपस्थित थे तथा सभी ने एक स्वर में इस रिपोर्ट को नकारा तथा यह भी कहा कि २७ माह के अंतराल के पश्चात यह रिपोर्ट दी गर्इ। यह भी कहा कि उनमें किसी ने भी इस पर हस्ताक्षर नहीं किये जबकि इन को कहा गया था कि २००७ की मई मास के बाद एक बैठक होगी जिसमें रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जायेगा परंतु वह बैठक कभी हुई ही नहीं।

जम्मू में आजकल आये दिन किसी न किसी संगठन द्वारा भेदभाव, अपने अधिकारों तथा सगीर कमेटी की रिपोर्ट के विरुद्ध जनता का आक्रोश किसी ने किसी रूप में प्रकट हो रहा है, और ऐसा लगता है कि जम्मू तथा लद्‌दाख की जनता आगे अमरनाथ भूमि जैसे संघर्ष के लिए प्रस्तावना लिख रही है। (नवोत्थान लेख सेवा, हिन्दुस्थान समाचार)