2012 में उन्होंने समाजवादी पार्टी के हाथों अपनी सत्ता गंवा दी थी। उसे फिर से प्राप्त करने के लिए उन्होंने अपनी रणनीति बदल डाली है।
पहले मायावती बड़ी बड़ी रैलियों के द्वारा अपनी राजनैतिक ताकत का अहसास कराती थीं और उसी के बूते अपनी राजनीति करती थीं। उनके अनेक रैलियों मुलायम सिंह और मोदी की रैलियों से भी बड़ी साबित हुई हैं।
मायावती पहले मीडिया को महत्व नहीं देती थीं और उससे दूर रहने की ही कोशिश करती थीं। सत्ता में रहने के कारण जब मीडिया से मुखातिब होना अनिवार्य हो जाता था, तब भी वे मीडिया वालों के सवालों का जवाब नहीं देती थीं। अपनी बात कहकर वे प्रेस कान्फ्रेंस समाप्त कर देती थीं और वहां से चली जाती थीं।
लेकिन अब मायावती ने अपनी रणनीति बदल डाली है। अब वे मीडिया द्वारा अपनी बात लोगों तक पहुंचाने की कोशिश में लग गई है। वे मीडिया वालों से सिर्फ अपनी बात ही नहीं कहतीं, बल्कि उनके सवालों का जवाब भी देने लगी हैं।
पिछले संसद सत्र में उन्होंने वहां भी अपनी मुखरता दिखाई। पहले वह संसद की गतिविधियों में भी बहुत रुची नहीं लिया करती थीं। लेकिन पिछला सत्र अपवाद था। सदन के अंदर और सदन के बाहर वह मीडिया का इस्तेमाल करते हुए केन्द्र सरकार पर हमला करती रहीं।
मायावती ने एक रणनीति के तहत समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों को बारी बारी से निशाना बनाना शुरू कर दिया है। जब वे दिल्ली में होती हैं, तो उनका हमला सबसे ज्यादा केन्द्र सरकार और नरेन्द्र मोदी पर होता है। जब वे दिल्ली में रहती हैं, तो अखिलेश सरकार की जमकर खिंचाई करती हैं।
वे अखिलेश यादव को बबुआ कहकर संबोधित करती हैं। वह अखिलेश यादव के जवाब में ऐसा कहती हैं। श्री यादव उन्हें बुआ कहते हैं। इसलिए जवाब में वे उन्हें बबुआ कहती है।
मायावती महसूस कर रही हैं कि उनका मुख्य मुकाबला समाजवादी पार्टी से ही है, क्योंकि नोटबंदी के कारण भारतीय जनता पार्टी आम लोगों के गुस्से की शिकार हो गई हैं और उसके अपने मतदाता वर्ग भी उसके खिलाफ हो गया है। भाजपा को और कमजोर करने के लिए वह नोटबंदी पर हमला करती हैं। सच तो यह है कि नोटबंदी की वह सबसे बड़ी विरोधी है।
भारतीय जनता पार्टी पर हमला तेज कर मायावती मुसलमानों को भी अपनी ओर करने की कोशिश कर रही है। उन्हें पता है कि मुस्लिम कट्टर भाजपा विरोधी हैं और वे जितना भाजपा के खिलाफ बोलेंगी, मुसलमानों में उनका समर्थन उतना ही मजबूत होता जाएगा।
उधर मुसलमानो का एक विकल्प समाजवादी पार्टी भी है। उनके वोटों का जितना बंटवारा होगा, भाजपा उतनी मजबूत होती, इसका अहसास कराने मे मायावती देर नहीं करती। मुस्ल्मि समर्थन को बढ़ाने के लिए उन्होंने 130 मुसलमानों को अपनी पार्टी का टिकट दे दिया है। प्रदेश में मुसलमानों की संख्या प्रदेश की कुल आबादी का 18 फीसदी है और दलितों की संख्या 22 फीसदी है। मायावती मुसलमानों को याद दिलाती रहती हैं कि यदि मुस्लिम और दलित एक हो गए, तो फिर जीत पक्की है।
वे यह भी कहती हैं कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मुसलमानों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करती हैं, जबकि वे मुसलमानों को सत्ता में भागीदारी देती हैं।
प्रदेश के राजनैतिक पर्यवेक्षकों को भी यही लगता है कि मायावती का असली मुकाबला समाजवादी पार्टी के साथ ही होना है और नोटबंदी के कारण भारतीय जनता पार्टी चुनावी दौड़ में पिछड़ चुकी है। (संवाद)
जीत के लिए मायावती की नई रणनीति
भाजपा को नहीं मानती मुख्य प्रतिद्वंद्वी
प्रदीप कपूर - 2016-12-26 11:50
लखनऊः बसपा प्रमुख मायावती उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। वे चार बार पहले भी प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। थोड़े थोड़े समय के लिए वे तीन बार भाजपा के समर्थन से इस पद पर रही हैं और एक बार पांच साल का पूरा कार्यकाल अपनी पार्टी की बहुमत सरकार का नेतृत्व करती हुई इस पद पर रही हैं।