एक और मायने में यह साल ऐतिहासिक साबित होने वाला है। इस साल बजट सत्र की अवधि बदलने वाली है। यह सत्र फरवरी से शुरु होकर अप्रैल- मई महीने तक चलता था और बजट को 28 या 29 फरवरी को पेश किया जाता था। बजट अगले वित्तीय साल में यानी अप्रैल या उसके बाद ही पास हो पाता था। इसलिए एक अप्रैल के बाद सरकारी खर्च चलाने के लिए लेखानुदान पास करवाना पड़ता था। लेकिन अब बजट फरवरी के शुरुआती दिनों में ही पेश कर दिया जाएगा और इसी वित्तीय वर्ष में यानी 31 मार्च के पहले ही पास कर दिया जाएगा। इसके कारण लेखानुदान पास करने की विवशता समाप्त हो जाएगी।
एक तीसरे कारण से भी यह साल ऐतिहासिक होगा और वह है रेल बजट का समाप्त हो जाना। 1920 के दशक से ही रेल बजट अलग से पेश किया जाता रहा है। आजादी के बाद भी यह परंपरा जारी रही। बीच बीच में इसकी आवश्यकता पर जरूर सवाल उठे, लेकिन इसे समाप्त करने का श्रेय मोदी सरकार को ही जाता है। 2017 में पहली बार रेल बजट अलग से पेश नहीं किया जाएगा, बल्कि यह आम बजट का ही हिस्सा होगा। रेल से संबंधित प्रावधान आम बजट में ही समेट लिए जाएंगे।
आर्थिक दृष्टि से यह साल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि 2016 में लिए गए नोटबंदी के फैसले का पूरा असर इसी साल दिखाई पड़ेगा। तात्कालिक रूप से नोटबंदी देश की अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित हो रही है। इससे करोड़ों लोग बेरोजगार हो चुके हैं और बाजार में मंदी का माहौल बना हुआ है। यह मंदी लघुकालिक साबित होती है या यह और लंबा खिंचती है, इसका पता अगले साल चलेगा। केन्द्र सरकार कैशलेस भुगतान को बढ़ावा देने के लिए पूरा जोर लगा रही है। इस तरह के भुगतान बढ़ भी रहे हैं, लेकिन लंबी अवधि के लिए यह कितना सफल होगा, इसका भी पता इसी साल लगेगा। कैशलेस समाज की स्थापना के लिए यह नया साल प्रयोग का साल होगा। देखना होगा कि देश की जनता कितनी तेजी से इसे अपनाती है अथवा इसके कारण होने वाली दिक्कतो से इसे ठुकरा देती है।
आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह साल राजनैतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। साल की शुरुआत में ही पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने जा रहे हैं। उन राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश भी है। वहां के चुनाव नतीजे देश की राजनीति की दिशा तय करने वाले हैं। 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की दशा क्या होगी, उसका कुछ अंदाजा उत्तर प्रदेश चुनाव के नतीजों की दिशा से लग जाएगा। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव को जीतने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा रही है। समाजवादी पार्टी का भविष्य भी इस साल तय हो जाएगा।
एक के बाद एक चुनावों में पराजित हो रही कांग्रेस के लिए यह साल शायद उसे अंतिम बार मौका दे रहा है कि वह अपनी हार के क्रम को रोके। उत्तर प्रदेश में तो उसके लिए कोई संभावना नहीं दिखती, लेकिन उत्तराखंड में वह दोबारा सरकार बनाने की सोच सकती है। मणिपुर में भी वह फिर से सत्ता में आने की संभावना पाल सकती है। पंजाब और गोवा में वे अभी मुख्य विपक्षी पार्टी है। इसलिए वह वहां भी सरकार बनाने के सपने पाल सकती है। यदि इन राज्यों में भी कांग्रेस की हार का सिलसिला जारी रहता है, तो मानना पड़ेगा कि वह देश की राजनीति में लगातार हाशिए पर न केवल धकेली जा रही है, बल्कि वह हाशिए से बाहर जाने की ओर भी अग्रसर है। कहने की जरूरत नहीं कि कांग्रेस के लिए यह साल ’’करो या मरो’’ का साल है।
नोटबंदी को देश की जनता ने स्वीकार किया है, या उसे एक बुरा सपना माना है, इसका पता भी चुनावी नतीजो से ही चलेगा। नोटबंदी के बाद होने वाले चंद नगर निकायों के चुनावों में भाजपा की जीत होती रही है, हालांकि जीत का अंतर कम हो गया है। इससे तो यही लगता है कि तमाम परेशानियों के बावजूद उसके समर्थक उसके साथ बने हुए हैं, लेकिन उसकी असली परीक्षा विधानसभा चुनावों में होने वाली है, जहां नोटबंदी के कारण सबसे बुरा असर पड़ रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए भी यह साल खास मायने रखता है। नोटबंदी ने उनको एक साथ ही महानायक और खलनायक बना डाला है। कुछ लोगों को लगता है कि उन्होंने कुछ वैसा कर दिया है, जिसे करने की हिम्मत किसी में नहीं थी। उन्हें लगता है कि मोदी देश को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे और काला धन व भ्रष्टाचार का तो खात्मा ही कर देंगे, पर कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें लगता है कि नोटबंदी का मोदी का फैसला तुगलकी फैसला था। चुनावी नतीजे तय करेंगे कि ज्यादातार लोग क्या सोचते हैं। इसी साल गुजरात विधानसभा का चुनाव भी होना है। उसमें मोदी जी की निजी प्रतिष्ठा दांव पर होगी।
इसी साल राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव भी होना है। उपराष्ट्रपति तो वही होगा, जिसे भाजपा चाहेगी, लेकिन राष्ट्रपति के चुनाव पर अभी अनिश्चय का बादल मंडरा रहा है, क्योंकि उसका निर्वाचक मंडल विस्तृत है और भाजपा को अपनी पसंद के उम्मीदवार का जीत दिलाने के लिए विपक्षी खेमे से भी कुछ के समर्थन की जरूरत पड़ सकती है। विधानसभा के चुनावी नतीजे यदि भाजपा के पक्ष में नहीं गए, तो उसके लिए अपनी पसंद के व्यक्ति को राष्ट्रपति पद पर बैठाना और कठिन हो जाएगा। (संवाद)
अनेक मायनों में ऐतिहासिक होगा नया साल
2019 लोकसभा चुनाव की भूमिका भी तैयारी हो जाएगी
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-12-31 11:15
वर्ष 2016 देश के इतिहास में कथित नोटबंदी के लिए जाना जाएगा, तो वर्ष 2017 भी कोई कम ऐतिहासिक साल नहीं होने जा रहा है। देश के आर्थिक इतिहास में यह साल मील का पत्थर साबित होने वाला है। इसी साल वस्तु और सेवा कर की व्यवस्था लागू हो जाएगी। कहने को तो केन्द्र सरकार कह रही है कि नये वित्तीय वर्ष के पहले दिन यानी एक अप्रैल से ही यह व्यवस्था लागू कर दी जाएगी। पर यह शायद संभव नहीं है, क्योंकि अभी भी कुछ तकनीकी और नीतिगत बाधाओं से मुक्ति पाना बाकी है। इसके अलावा वस्तु और सेवा कर के लिए प्रशासन का ढांचा तैयार नहीं हुआ है, फिर भी इसे किसी भी हालत मे सितंबर महीने से अस्तित्व में आनी ही होगा, क्योंकि संविधान के अनुसार पुरानी व्यवस्था तबतक समाप्त हो चुकी होगी।