बजट को पहली फरवरी को ही पेश कर दिए जाने के पीछे का कारण यह है कि अब सरकार चाहती है कि इसे आगामी वित्तीय वर्ष, जिसकी शुरुआत 1 अप्रैल से होनी है, के पहले ही बजट पारित कर दिया जाय। अबतक बजट वित्तीय वर्ष शुरू होने के बाद ही पास हो पाता था और 1 अप्रैल के बाद बजट पारित होने के पहले के सरकारी खर्च को संवैधानिक इजाजत दिलाने के लिए लेखानुदान पेश और पास किया जाता था। इस तरह दो आम बजट पेश होता था। एक आम बजट लेखानुदान के रूप में पारित कराया जाता था और दूसरा पूर्ण बजट।

लेकिन मोदी सरकार ने बजट 1 फरवरी को पेश कर 31 मार्च से पहले पास कराने का फैसला करके लेखानुदान को समाप्त करने का निर्णय लिया है। साल शुरू होने के पहले ही बजट पास कर दिए जाने का विचार एक अच्छा विचार है, हालांकि ऐसा करते समय चालू वित्तीय वर्ष मे अर्थव्यवस्था की पूरी तस्वीर की जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाती, इसलिए अनेक बजट अनुमान के गलत होने जाने की आशंका बनी रहेगी, लेकिन बजट अनुमान तो 28 फरवरी को पेश होने वाले बजट के मामले में भी प्रायः गलत ही साबित हुआ करते थे, इसलिए यह कोई बड़ा मसला नहीं है। असली मसला यह है कि वित्तीय वर्ष शुरू होने के पहले ही उस वर्ष का बजट अस्तित्व में आ जाए, ताकि सरकार अपनी राजकोषीय गतिविधियों को 1 अप्रैल से ही प्रस्तावित रूप देने लगे।

पर सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार 1 फरवरी को बजट पेश भी कर पाएगी? यह सवाल इसलिए खड़ा होता है, क्योंकि विपक्षी पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि देश के 5 राज्यांे में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। निर्वाचन आयोग ने चुनावों के कार्यक्रम भी घोषित कर दिए हैं। कार्यक्रमों की घोषणा के साथ साथ ही आदर्श चुनावी आचार संहिता अस्तित्व में आ जाती है और जब आचार संहिता अस्तित्व में आ गई है, तो केन्द्र या राज्य सरकारों के ऊपर यह जिम्मेदारी आ जाती हे कि वह ऐसा कोई निर्णय नहीं ले, जिससे मतदाताओं को लुभाने वाला असर पड़े।

यही कारण है कि 1 फरवरी को बजट पेश किए जाने का विरोध किया जा रहा है। बजट में सरकार अपनी आय और खर्च का प्रस्ताव करती है। वह बताती है कि रुपया उसके पास कहां से आएगा और उन रुपयों को कहां खर्च किया जाएगा। रुपया उगाहने और उसे खर्च करने का असर लोगों पर पड़ता है और उसके कारण किसी वर्ग में सरकार अलोकप्रिय होती है, तो किसी वर्ग में वह अपनी लोकप्रियता खो देती है। बजट का इस्तेमाल कर कोई भी सरकार मतदाताओं को लुभा सकती है। वे कर में रियायतें देकर उन्हें खुश कर सकती है और लोकप्रिय कार्यक्रमों अथवा सब्सिडी देकर भी उन्हें खुश किया जा सकता है। स्थान विशेष पर परियोजनाओं की घोषणा कर या पुरानी परियोजनाओं को फिर से शुरू करने की घोषणा कर भी वह स्थान विशेष के लोगों को खुश कर सकती हैं। उन्हें मतदाता चुनावी उपहार समझ सकते हैं।

इसी डर के कारण विपक्षी पार्टियां कह रही हैं कि बजट पेश करने की तारीख बदली जाय और 8 मार्च को मतदान पूरी तरह खत्म हो जाने के बाद ही बजट पेश किया जाय। पहला मतदान 4 फरवरी को होगा और उसके बाद कुछ कुछ दिनों के अंतराल पर 8 मार्च तक मतदान होते रहेंगे। और बजट पेश होगा 1 फरवरी को। उस रोज सरकार ने यदि कोई लोकलुभावन घोषणाएं कर दीं, तो उसका फायदा केन्द्र की सत्तारूढ़ पार्टियों को हो ही जाएगा। विरोध का असली कारण यही है।

बजट घोषणाओं द्वारा आर्दश चुनावी आचार संहिता के उल्लंधन का मसला उठाकर विपक्षी पार्टियां निर्वाचन आयोग का दरवाजा खटखटा चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट मे भी गुहार लगा दी गई है और राष्ट्रपति को भी इसके खिलाफ ज्ञापन देकर उनसे हस्तक्षेप की मांग की जा रही है। यानी बजट को एक फरवरी को पेश किए जाने को रोकने के लिए जिस किसी भी दरवाजे को खटखटाया जा सकता है, उन दरवाजे को खटखटाया जा रहा है।

उधर सरकार अपनी बात पर अड़ी हुई है और उसने साफ कर दिया है कि बजट 1 फरवरी को ही पेश होगा। निर्वाचन आयोग भी विपक्ष की बात मानने के लिए ज्यादा उत्सुक नहीं है। जिस दिन उसने चुनाव की तारीखों की घोषणा की, उस दिन उसे पता था कि केन्द्र सरकार 1 फरवरी को अपना बजट पेश करेगी। इसलिए इसकी संभावना बहुत कम है कि निर्वाचन आयोग बजट पेशी पर रोक लगाए, हालांकि ऐसा करने मे ंवह पूरी तरह सक्षम है। टीएन शेषन ने जो रास्ता दिखाया है, उसे अपनाते हुए निर्वाचन आयोग सरकार को अपनी बात मानने के लिए बाध्य कर सकता है। वह रास्ता यह है कि यदि सरकार बजट पेश करने की तारीख बदलने से इनकार कर दे, तो निर्वाचन आयोग मतदान कराने से ही इनकार कर दे। शेषण इसी तरीके को अपनाते थे और सरकार उनकी बात मानने के लिए बाध्य हो जाती थी। पर इस बार निर्वाचन आयोग बजट की तारीख बदलने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा।

सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मसले पर फौरी सुनवाई करने से इनकार कर दिया है और कहा है कि इसे बाद में देख जाएगा। लेकिन अभी भी तीन सप्ताह से ज्यादा का समय है और इस बीच सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो सकती है। आदर्श चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन एक कानून मामला है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट का निर्णय कुछ भी हो सकता है। लेकिन फिलहाल सरकार 1 फरवरी को बजट पेश करने की तैयारी में व्यस्त है। (संवाद)