अनेक लोग मानते हैं कि यदि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की जीत हो गई, तो नरेन्द्र मोदी 2019 का चुनाव जीतकर एक बार फिर प्रधानमंत्री बन जाएंगे। अलग बात है कि किसी एक प्रदेश की जीत देश भर में जीत की कोई गारंटी नहीं होती। नरेन्द्र मोदी ने खुद कई बार साफ किया है कि वे प्रधानमंत्री के पद पर एक बार और आसीन होना चाहेंगे। कभी कभी तो वे तीसरी बार भी प्रधानमंत्री का दावा करते देखे जा सकते हैं। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि उत्तर प्रदेश का यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कामकाज पर एक जनमतसंग्रह है।
इसके साथ ही भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह की किस्मत भी जुड़ी हुई है। 2014 में उत्तर प्रदेश में भाजपा के बेहतर प्रदर्शन का श्रेय उन्हें ही दिया गया था। अब इस चुनाव में वे वह प्रदर्शन दुहरा सकते हैं या नहीं, इसका पता नतीजे आने के बाद लगेगा। यदि पार्टी की हार हुई, तो अमित शाह का पार्टी के अंदर रुतबा घट जाएगा। चुनाव में पार्टी ने किसी को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार पेश नहीं किया है और नरेन्द्र मोदी के चेहरे को आगे कर ही पार्टी लोगों का वोट मांग रही है। अपने परंपरागत जनाधार के अलावा पार्टी गैर यादव ओबीसी मतों को लुभाने की कोशिश भी कर रही है। पार्टी का खराब प्रदर्शन न केवल विपक्ष के हौसले को बुलंद करेगा, बल्कि भाजपा के जो नेता दरकिनार कर दिए गए हैं, वे भी दोनों केन्द्रीय नेताओं के खिलाफ मुखर हो सकते हैं।
समाजवादी पार्टी भी इस चुनाव को लेकर बहुत चिंतित है। अंदरूनी कलह में जीत हासिल कर अखिलेश यादव ने पार्टी को पूरी तरह से अपने कब्जे में कर लिया है और मुख्यमंत्री पद पर फिर आसीन होने को सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने कांगे्रेस के साथ गठबंधन भी कर लिया है। यदि वे एक बार और मुख्यमंत्री बन जाते हैं, तो राष्ट्रीय राजनीति में भी उनका कद ऊंचा हो जाएगा और वे इसे भी प्रभावित करने की कोशिश करेंगे।
कांग्रेस और उसके उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी यह बहुत ही निर्णायक चुनाव साबित होने वाला है। अपनी पार्टी को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए उन्होंने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर लिया है। पिछले चुनाव में उनकी पार्टी को 28 सीटें मिली थीं। इस बार उनकी पार्टी 105 सीटों पर लड़ रही हैं। यदि 28 से ज्यादा सीटों पर पार्टी जीतती है और समाजवादी पार्टी के साथ सरकार में आती है, तो राहुल गांधी की जीत मानी जाएगी और उसके बाद हो सकता है सोनिया गांधी उन्हें पार्टी का अध्यक्ष पद सौंप दें।
प्रियंका गांधी ने भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच तालमेल कराने में भूमिका निभाई और राजनीति में उनकी सक्रियता का एक नया चेहरा देखने को मिला। सक्रिय राजनीति में आने के लिए वह मौके का तलाश कर रही है और इसके लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश और सपा के साथ गठबंधन के मौके को चुना है। देखना होगा कि आगे अब वे क्या करती हैं।
मायावती अपने दलित आधार को अपने साथ बनाए रखने के लिए हर संभव कोशिश कर रही हैं। दलितों के साथ साथ वह मुस्लिमों और अगड़ी जातियों के एक हिस्से पर अपनी जीत के लिए निर्भर है। पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी का एक सीट भी नहीं मिली थी, हालांकि उनकी पार्टी को करीब 20 फीसदी मत मिले थे। अब देखना होगा कि मुस्लिम कितने तादाद में उनका साथ देते हैं और अगड़ी जातियां उनके साथ जुड़ती हैं अथवा नहीं।
पश्चिम उत्तर प्रदेश में अजित सिंह का भी राजनैतिक आधार है। पिछले चुनाव में वे और उनके बेटे चुनाव हार गए थे। विधानसभा चुनाव में उनके इस समय 9 विधायक हैं। विधायकों की संख्या बढ़ाकर वे प्रदेश की राजनीति में अपने को प्रासंगिक बनाकर रखना चाहेंगे। देखना है कि वे इसमें सफल हो पाते हैं या राजनीति में अप्रासंगिक हो जाते हैं। (संवाद)
मोदी का 2019 का सपना यूपी चुनाव से जुड़ा है
बस मायावती और अमित शाह की किस्मत का फैसला भी यही चुनाव करेगा
कल्याणी शंकर - 2017-02-01 12:03
इस विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में जितने नेताओं और पार्टियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है, उतना पहले कभी नहीं लगी थी। यहां दो क्षेत्रीय दल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। कांग्रेस उत्तर प्रदेश और देश में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने का संघर्ष कर रही है, तो यह भारतीय जनता पार्टी के दोनों बड़े नेता- नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के लिए अपने आपको साबित करने का प्रश्न बना हुआ है। इस चुनाव के बाद मुलायम सिंह यादव का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो सकता है, तो मायावती और अजित के लिए भी यह अस्तित्व संकट का सवाल बनकर खड़ा है।