लेकिन इसके प्रावधानों में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसे ऐतिहासिक कहा जा सके। नोटबंदी ऐतिहासिक घटना के बाद अरुण जेटली अपना यह बजट पेश कर रहे थे। बजट पर उस नोटबंदी की छाप जरूर है, लेकिन उसके कारण जो समस्याएं पैदा हुई हैं, उन्हें दूर करने का कोई प्रयास इस बजट मे नहीं दिख रहा है। इसका कारण शायद यह है कि वित्त मंत्री यह संदेश नहीं देना चाहते कि नोटबंदी से कोई समस्या भी पैदा हुई है।

वैसे पिछले 31 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत सारी घोषणाएं कर दी थीं और एक तरह से नोटबंदी ने देश की अर्थव्यवस्था और इसके लोगों को जो घाव दिए थे, उसपर मरहम लगाने की कोशिश की थी, लेकिन जख्म इतना गहरा है कि वे कोशिशें नाकाफी थीं। उम्मीद की जा रही थी कि वित्त मंत्री कुछ ऐसे कदम उठाएंगे, जिनसे वास्तव में जिन लोगों को क्षति पहुंची है, उनको कुछ राहत मिले।

यह सच है कि काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जंग के रूप में पेश की गई नोटबंदी ने उन लोगों को ही अपना सबसे बड़ा शिकार बनाया है, जो गरीब हैं और जिनका धन काले धन की श्रेणी में नहीं आता और जिनके पास भ्रष्टाचार की कमाई नहीं होती। सच तो यह है कि नोटबंदी के शुरुआती दिनों मे कस्बों और गांवों के अनेक लोगों को अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई के पुराने नोट को बदलवाने के लिए भी रिश्वत चुकानी पड़ी थी। यानी भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाई गई जंग में वे भ्रष्टाचार के दानव के ही शिकार हुए।

उम्मीद की जा रही थी कि केन्द्र सरकार वैसे गरीब लोगों के खाते में कुछ रुपये डालेगी। पहले माना जा रहा था कि नोटबंदी के कारण करीब 3 लाख करोड़ रुपये का कोष सरकार के पास आ जाएगा, क्योंकि करीब इतनी रकम भ्रष्ट लोग बैंकों मे जमा नहीं कर पाएंगे और वे रुपये रद्दी में तब्दील हो जाएंगे। फिर उतनी रकम छापकर केन्द्र सरकार गरीबों में बांट देगी। पर लगता है कि 3 लाख करोड़ रुपये तो रद्दी में तब्दील नहीं हुए, लेकिन इसके बावजूद केन्द्र सरकार के पास कुछ पैसे तो थे ही जो गरीबों को दिए जा सकते थे।

नोटबंदी के पहले सरकार ने आय घोषणा कार्यक्रम शुरू किया था, जिसके तहत 65 हजार करोड़ रुपये की घोषणा की गई थी। उसके कारण सरकार को करीब 30 करोड़ रुपये का आयकर राजस्व हासिल हुआ है। वित्तमंत्री दावा कर रहे हैं कि उसके बाद भी नोटबंदी के कारण लोगों ने आयकर जमा किए हैं। करीब 50 हजार करोड़ रुपया नोटबंदी के बाद बैंकों में नहीं आये हैं। इसका मतलब है कि केन्द्र सरकार के पास एक लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त हैं, जिसे वह गरीबो के जनधन खाते में डाल सकती थी। इसी उम्मीद से वे लोग भी सरकार की नोटबंदी का विरोध कर रहे थे, जिन्हें इसके कारण भारी नुकसान उठाना पड़ रहा था। उन्हें कुछ अच्छा होने की उम्मीद थी। खासकर गरीब लोगों को लग रहा था कि कुछ न कुछ पैसा तो उनके खाते में आ ही जाएगा, लेकिन इस बजट के कारण उनको भारी निराशा का सामना करना पड़ रहा है।

नोटबंदी के बाद किसानों को भारी समस्या का सामना करना पड़ा है। बुआई के समय ही इसकी घोषणा की गई थी। सर्दी के मौसम की शुरुआत के साथ खेत में सब्जियों का भी अंबार लगता है। किसानों को नई फसल की बुआई के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़े और तैयार फसलों का सही दाम भी उन्हें नहीं मिला। यानी उनपर दूनी मार पड़ रही थी। खासकर सब्जी उगाने वाले किसानों का तो यह सीजन ही खराब हो गया। इसलिए वित्तमंत्री से उम्मीद की जा रही थी कि वे किसानों को राहत देने के लिए कोई कदम उठाएंगे, लेकिन किसी ठोस कदम के बदले अरुण जेटली ने किसानो को घोषणाएं दी और आंकड़े दे डाले। घोषणा कर दी कि आगामी पांच साल में किसानो की आमदनी दुगनी कर दी जाएगी।

इस तरह का भाषण बजट भाषण नहीं चुनावी भाषण होता है, जिसे देश के लोग गंभीरता से नहीं लेते। आंकड़ो के रूप में वित्त मंत्री ने कह दिया कि किसानों को 10 लाख करोड़ रुपये का ऋण दिया जाएगा। यह 10 लाख करोड़ रुपये के इस बड़े आंकड़े से किसानों को क्या लाभ होगा, यह तो वित्त मंत्री ही जानें, लेकिन किसानों को आज अपनी फसल की सही कीमत चाहिए। यदि सही कीमत उन्हें नहीं मिलती है, तो उन्हें मिले रियायती कर्ज भी उनके लिए मौत का कारण बन जाते हैं। आज किसानों की आत्महत्याओं की मूल वजह कर्ज नहीं चुका पाना है। वे कर्ज नहीं चुका पाते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी फसलों का अच्छा मूल्य नहीं मिल पाता। इसके लिए इस बजट में कुछ नहीं किया गया है। न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने की बात तक नहीं की गई है।

नोटबंदी के कारण असंगठित क्षेत्र में करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं। छोटे छोटे काम धंधे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। उन लोगों को सरकार ने अपनी हालत पर छोड़ दिया है। उम्मीद की जा रही थी कि उनके लिए सरकार कोई गंभीर प्रयास करती दिखाई पड़ेगी। वित्त मंत्री का बजट भाषण इस पर पूरी तरह मौन है। बेरोजगारी आज देश की सबसे बड़ी समस्या है। नोटबंदी ने इस समस्या और और भी भयावह रूप दे डाला है। उससे अर्थव्यवस्था को निजात दिलाने के लिए उनके पास करने के लिए क्या है, शायद जेटली जीे को खुद भी नहीं पता।

कर देने वाले मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग के लोगों को कुछ राहत जेटली जीे ने जरूर दी है, लेकिन भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाने का संकल्प उनके भाषण से गायब है। लगता है कि सरकार नोटबंदी जैसे कोई साहसपूर्ण कदम उठाने से अब डर रही है। (संवाद)