इस समय सत्तारूढ़ पार्टी के लिए अपने आपको किसान हितैषी और गरीब समर्थक दिखाने की निहायत ही जरूरत है। इसलिए ऐसा दिखने की कोशिश इस बजट में की गई है। प्रत्यक्ष कर के मोर्चे पर थोड़ी बहुत राहत भी दी गई है। राजकोषीय समझदारी भी दिखाई गई है और सरकारी निवेश बढ़ाने के भी कुछ उपाय किए गए हैं, लेकिन इससे निजी निवेश में वृद्धि की शायद ही कोई संभावना है।

5 लाख रुपये तक की आय वालों के लिए आयकर दर को 10 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया गया है। इससे उपभोक्ता खर्च कुछ बढ़ेंगे और मांग पक्ष कुछ मजबूत हो सकता है, जो कि नोटबंदी के कारण थम सा गया है। नोटबंदी के कारण छोटे और मझोले काॅपौरेट फर्म को भी राहत दी गई है। उन पर लगने वाला काॅपोर्रेट टैक्स 30 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी कर दिया गया है। गौरतलब हो कि नोटबंदी के ये भी शिकार हुए थे।

लेकिन आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को देख जाय, तो इसमें ज्यादा कुछ नहीं किया गया है। इन्हें आने वाले दिनों के लिए छोड़ दिया गया है। आज बैकिंग व्यवस्था का जिस तरह से पतन हो रहा है और आर्थिक पतन भी देखने को मिल रहा है। ऐसे माहौल में वित्तमंत्री ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकते थे।

बजट पेश करने के पहले जो आर्थिक सर्वे पेश किया गया था, उसने भी अर्थव्यवस्था की एक खराब तस्वीर ही पेश की थी। पिछले साल 7 दशमलव 6 फीसदी की विकास दर रही थी, लेकिन इस बार पौने सात से सवा छह फीसदी विकास दर का अनुमान लगाया गया है और आगामी वित्त वर्ष में थोड़ा विकास दिखाते हुए साढ़े सात प्रतिशत तक विकास की इस दर को प्राप्त करने का अनुमान लगाया गया है।

वित्तमंत्री ने आगामी वित्तीय वर्ष के लिए अपने बजट अनुमान का निर्धारण यह मानते हुए किया है चालू कीमतों पर आर्थिक विकास दर 11 फीसदी हो सकती है। यदि मुद्रास्फीति को 5 फीसदी तक सीमित कर दिया जाय, तो वास्तविक विकास दर 7 से साढ़े सात फीसदी के बीच कुछ भी हो सकती है। आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय आर्थिक माहौल खराब रहने की आशंका है। ऐसे माहौल में इस लक्ष्य का हासिल करना भी आसान नहीं है।

अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने के आसार हैं। वे बढ़ भी रही हैं और उसके साथ डाॅलर मजबूत हो रहा है। इसके कारण भारत जैसे विकासशील देशों से पूंजी का प्रवाह अमेरिका की ओर हो सकता है।

सर्वे में यह कहा गया है कि भारत की विकास दर निर्यात में वृद्धि के साथ होगी। लेकिन यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां भारत का रिकाॅर्ड खराब रहा है। भारत ही नहीं अन्य अनेक विकासशील देशों का रिकाॅर्ड भी निर्यात के मामले में कमजोर ही है।

राजकोषीय घाटे के मोर्चे पर वित्तमंत्री जेटली बहुत ही आशावादी दिखाई पड़ते हैं और उन्होंने इसके लिए 3 फीसदी राजकोषीय घाटे को प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है, हालांकि यह लक्ष्य अगले साल नहीं हासिल किया जाएगा। उसने आने वाले समय के लिए टाल दिया गया है।

टैक्स राजस्व सकल घरेलू उत्पाद का 11 दशमलव 3 फीसदी रहने का अनुमान है। 2007-8 के बाद यह पहला मौका होगा, जब यह अनुपात 11 फीदी से जयादा होगा। अगले दो साल में उसके 12 फीसदी हो जाने का अनुमान व्यक्त किया गया है। (संवाद)