पूरे प्रदेश में कांग्रेस के हरीश रावत और भारतीय जनता पार्टी के नरेन्द्र मोदी के बीच में मुकाबला चल रहा है। कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ हरीश रावत पर निर्भर है, तो भारतीय जनता पार्टी सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी के जादू पर। भाजपा ने मुख्यमंत्री का अपना कोई चेहरा पेश नहीं किया है।
भारतीय जनता पार्टी के अंदर असंतोष अपने चरम पर है। टिकट बंटवारे के कारण अनेक नेता गुस्से में हैं। उन्हें लगता है कि उनके साथ पार्टी ने अन्याय किया है। पार्टी ने कांग्रेस से दल बदल कर पिछले साल शामिल कराए गए सभी नेताओं को टिकट दे दिया है।
कुछ दिन पहले भी कुछ कांग्रेसियों का दल बदल कराया गया और उन्हें टिकट दिए गए। इसके कारण भारतीय जनता पार्टी के अनेक वरिष्ठ नेताओं के टिकट कट गए हैं। पिछले पांच साल से अनेक नेता अपने क्षेत्र में काम कर रहे थे और पार्टी से टिकट पाने की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन कांग्रेसी दलबदलुओं के कारण उन्हें निराशा ही हाथ लगी है।
भाजपा के इन नेताओं को यह समझ में नहीं आ रहा है कि वे करें तो क्या करें। यदि भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आ जाती है, तो उनका भविष्य क्या होगा, इसे लेकर वे बहुत ही चिंतित हैं। यही कारण है कि चुनाव प्रचार के दौरान वे शांत रहे और भारतीय जनता पार्टी का चुनावी अभियान जिस जोश खरोश के लिए जाना जाता है, वह इस बार देखने को नहीं मिला।
दूसरी तरफ हरीश रावत पूरे जोश में हैं। कांग्रेस के उनके विरोधी पार्टी छोड़ चुके हैं। इसके कारण उनका चुनौती देने वाले नेता अब प्रदेश में नहीं बचे हैं। वे कुछ मजबूत निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ भी संपर्क बनाए हुए हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर उनका समर्थन लिया जाय और उनके समर्थन का इस्तेमाल कर कांग्रेस आलाकमान को भी प्रभावित किया जा सके।
कांग्रेस की स्थिति कुमाऊं में बेहतर है, जहां से हरीश रावत खुद आते हैं। इसलिए उनका ज्यादा जोर गढ़वाल में हैं। वे 32 से 34 सीटों पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। वे ’माटी के लाल’ की अपनी छवि पेश कर रहे हैं।
दूसरी ओर भारतीज जनता पार्टी में मुख्यमंत्री के दावेदारों की भरमार है। कोशियारी, निशंक, प्रकाश पंत, सतपाल महाराज और विजय बहुगुणा एक दूसरे पर अपनी बढ़त बनाने के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी इन दिनों अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए मोदी के जादू पर निर्भर करती है। उत्तराखंड में भी ऐसा ही हो रहा है। वैसे बिहार और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में मोदी का जादू नहीं चला। पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और पुदुचेरी में भी भाजपा को उतने मत नहीं मिले, जितने 2014 के लोकसभा चुनाव में मिले थे। असम में उसकी सरकार जरूर बनी, लेकिन उसके लिए वहां के मुख्यमंत्री उम्मीदवार को श्रेय दिया जाता है, जिसके चेहरे पर वहां भारतीय जनता पार्टी अपना चुनाव लड़ी थी। कांग्रेस के एक मजबूत नेता हेमंत बिस्वाल ने भी भाजपा में शामिल होकर उसे जीत दिलाने मे योगदान किया था।
नरेन्द्र मोदी के नाम पर भाजपा वोट मांग रही है और पाकिस्तान के अंदर जाकर किए गए सर्जिकल स्ट्राइक को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया जा रहा है। उत्तराखंड के लाखों परिवारों के लोग या तो सेना में हैं या सेना में रह चुके हैं। उन पर सर्जिकल स्ट्राइक की चुनावी रणनीति का असर पड़ भी रहा है। उसके कारण भारतीय जनता पार्टी काफी आशान्वित नजर आ रही है।
दूसरी तरफ कांग्रेस नोटबंदी को भाजपा और नरेन्द्र मोदी के खिलाफ इस्तेमाल कर रही है। इसके कारण लोगों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ा था। छोटे छोटे कारोबारियों का धंधा चैपट हो गया था। अब धीरे धीरे जिंदगी पटरी पर आ रही है और कैश की किल्लत भी समाप्त हो रही है, लेकिन अभी लोग इससे उपजी समस्या से पूरी तरह उबरे नहीं हैं। इसके कारण भारतीयी जनता पार्टी को नुकसान होता दिखाई पड़ रहा है।
नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा कि यहां कांग्रेस के हरीश रावत की जीत होती है या भारतीय जनता पार्टी के नरेन्द्र मोदी का। (संवाद)
उत्तराखंड में मोदी बनाम रावत
कांग्रेस और भाजपा को अंदर से भी मिल रही है चुनौतियां
मृगांक एम भौमिक - 2017-02-10 17:17
देहरादूनः उत्तराखंड के चुनावी नतीजे क्या होंगे, इसे लेकर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों अभी अंधेरे में हैं। सोशल मीडिया पर भी सिर्फ कयास ही लगाए जा रहे हैं कि कौन पार्टी आगे रहेगी। या सच भी है, क्योंकि दोनों पार्टी मे से किसी को पता नहीं है कि वह चुनाव जीत ही लेगी। बस दोनों जीत की उम्मीद ही कर रही है।