मोदी सरकार अपना 1000वां दिन 19 फरीवरी को पूरा कर लेगी। 11 मार्च को पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के नतीजे भी आ जाएंगे। उसके बाद राष्ट्रपति चुनाव की गहमागहमी शुरू हो जाएगी। उपराष्ट्रपति का चुनाव भी होना है, लेकिन उसके लिए मोदी या उनकी पार्टी को ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत नहीं, क्योंकि सांसद ही उनका चुनाव करते हैं और दोनों सदनों के सांसदों की कुल संख्या में भारतीय जनता पार्टी उसके एनडीए सहयोगी को बहुमत प्राप्त है। लेकिन राष्ट्रपति के चुनाव के लिए इन पांचों राज्यों में हो रहे चुनावों के नतीजों का असर पड़ेगा।

राष्ट्रपति चुनाव के बाद गुजरात के चुनाव की सरगर्मी भी शुरू हो जाएगी। वह चुनाव इसी साल के अंत में होना है। फिर 2018 में अनेक राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होंगे। यही कारण है कि 2018 का बजट केन्द्र सरकार का चुनावी बजट होगा। उस बजट से 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को भी साधने की कोशिश की जाएगी। इस साल के बजट में अरुण जेटली ने लोकप्रियतावाद और सरकार की राजकोषीय जरूरतों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है, लेकिन अगला बजट लोकप्रियतावादी ही होगा। उसमें यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार राजकोषीय संतुलन को कैसे बनाए रखती है।

इस साल के बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई बहस का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर जबर्दस्त हमला बोला। पार्टी की बात करें, तो उन्होंने अपना हमला कांग्रेस पर ही केन्द्रित रखा और अन्य विपक्षी पार्टियों को तवज्जो नहीं दिया। उन्होंने अपने भाषण में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का भी उल्लेख किया। उन्होंने वंशवादी राजनीति के लिए राहुल गांधी पर भी हमला किया।

सवाल उठता है कि मोदी आखिर कांग्रेस और उसके नेताओं पर ही संसद में हमला करते क्यों दिखाई पड़े? क्या उन्हें कांग्रेस और उनके नेताओं से ही सबसे ज्यादा भय लगता है? जिस तरह से कांग्रेस एक के बाद एक चुनाव हार रही है और अपनी जमीन लगातार खोती जा रही है, उस पृष्ठभूमि में उन्हें कांग्रेस से डरने की जरूरत नहीं, लेकिन फिर भी यदि वह कांग्रेस को अपने विपक्ष के रूप में इतना महत्व दे रहे हैं, तो इसका कारण है।

इसका एक कारण तो यही हो सकता है कि प्रधानमंत्री अगले चुनाव में अपनी सरकार के पांच साल के कार्यकाल और मनमोहन सरकार के 10 साल के कार्यकाल के बीच तुलना पेश करेंगे। वे यह बताएंगे कि उनकी सरकार कैसे मनमोहन सरकार से श्रेष्ठ रही। सभी तरह की तुलना वह पेश करेंगे।

मनमोहन सिंह की सरकार भ्रष्टाचार के लिए सबसे ज्यादा बदनाम हुई थी। सच कहा जाय तो कांग्रेस की फजीहत ही उसी के कारण हुई और मोदी को सत्ता भी उसी के कारण मिली। अब मोदीजी कांग्रेस सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार का लाभ उठाते हुए एक बार तो सत्ता में आ ही गए, अब वह कांग्रेस सरकार के उसी भ्रष्टाचार का लाभ 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उठाना चाहेंगे। इसीलिए मनमोहन सिंह सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार को उन्होंने जोरशोर से उठाया है।

लोकसभा के पहले होने वाले विधानसभा चुनावों में भी भारतीय जनता पार्टी का मुख्य मुकाबला कांग्रेस से ही होना है। इस साल के अंत में गुजरात में चुनाव होना है। वहां कांग्रेस के साथ ही उसकी टक्क्र होगी। उसके बाद मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटके में भी यही दोनों राष्ट्रीय पार्टियां एक दूसरे के सामने खड़ी होंगी। कांग्रेस के खिलाफ आक्रामकता की लाभ इन चुनावों मे भी भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है, लेकिन मोदी की नजर मुख्य तौर पर 2019 को होने वाले विधानसभा चुनाव पर ही है। (संवाद)