यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि मुख्यमंत्री यहां मुसलमानों को अपनी ओर खिंचने में कितने सफल होते हैं और राहुल के साथ उनका गठबंधन कितना काम करता है। दूसरी तरफ यह भी देखना दिलचस्प होगा कि मायावती का मुस्लिम कार्ड क्या गुल खिलाता है। उधर भारतीय जनता पार्टी मुस्लिम मतों के विभाजन की आस में है।

पिछले 2012 के विधानसभा चुनाव में इन 67 सीटों में से 34 पर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार जीते थे। बहुजन समाज पार्टी के 18 विधायक थे, तो भारतीय जनता पार्टी के महज 10 उम्मीदवारों ने ही जीत हासिल की थी। काग्रेस के भी 3 उम्मीदवार जीत कर आए थे, जबकि एक उम्मीदवार की जीत पीस पार्टी के टिकट पर हुई थी।

11 मे से 6 जिलों में मुस्लिम आबादी 30 फीसदी से भी ज्यादा है, जबकि मुरादाबाद और रामपुर में तो आबादी की फीसदी लगभग 50 फीसदी तक है।

यही कारण है कि सपा- मुस्लिम गठबंधन और बहुजन समाज पार्टी ने मुस्लिम मतदाताओं तक अपनी पहुंच बनाने की पूरी कोशिश की है। वे तमाम किस्म के मुस्लिम नेताओं का समर्थन पाने की कोशिश करते रहे हैं। नसीमुद्दीन सिद्दकी बहुजन समाज पार्टी का मुस्लिम चेहरा हैं।

वे दिल्ली के शाही इमाम, शिया धार्मिक नेता मौलाना काल्बे जावाद व कुछ अन्य धार्मिक नेताओं से बसपा के पक्ष में बयान जारी करवाने में सफल हुए हैं। दूसरी तरफ सुन्नी नेता खालिद रशीद फिरंगीमहली और नदवा उल इस्लाम के मौलाना सईद उर रहमान ने अखिलेश यादव से मिलकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन को समर्थन देने की अपील की है।

जहां तक पहले दौर के मतदान का सवाल है, तो मुस्लिम मतदाताओं ने भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, लोकदल और कंाग्रेस के उन उम्मीदवारों का समर्थन किया, जो मजबूत स्थ्तिि में थे। किसी किसी सीट पर एक से ज्यादा मजबूत मुस्लिम उम्मीदवार थे। इसके कारण मुस्लिम मतदाताओं को वहां निर्णय करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

बहुजन समाज पार्टी ने इन 67 में से 27 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार दिए हैं। वहीं सपा और कांग्रेस गठबंधन ने 25 सीटो पर मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए हैं। 15 सीटें तो ऐसी हैं, जहां सपा-कांग्रेस गठबंधन, लोकदल और बसपा के उम्मीदवार मुस्लिम हैं। इन सीटों पर मुस्लिम मतों के बंटवारे पर भाजपा की नजरें टिकी हुई हैं।

रामपुर विधानसभा क्षेत्र में समाजवादी पार्टी के नेता मोहम्मद आजम मैदान में हैं। उनका सामना बहुजन समाज पार्टी के तनवीर से है, तो राष्ट्रीय लोकदल के असीम खान भी उन्हें चुनौती दे रहे हैं। स्वार सीट पर आजम के बेटे अब्दुल्ला आजम चुनाव लड़ रहे हैं और उनका मुकाबला वर्तमान विधायक नवाब काजिम अली से है।

समाजवादी पार्टी के असंतुष्ट अनेक सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, जिसके कारण भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के कुछ उम्मीदवारों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन असंतुष्ट नेताओं को मुलायम सिंह यादव और उनके छोटे भाई शिवपाल यादव का समर्थन मिल रहा है। कांग्रेस इमरान मसूद पर बहुत हदतक इन जिलों में निर्भर हैं।

भारतीय जनता पार्टी के पिछले लोकसभा चुनाव में इन जिलों में शानदार सफलता मिली थी, लेकिन नोटबंदी के कारण उनकी स्थिति कमजोर हो गई है। अब वे मुस्लिम मतों के विभाजन में ही अपनी जीत का आकलन कर रहे हैं। (संवाद)