बिहार में वह क्यों घबराई थी, इसका पता चुनावी नतीजे आने के बाद लगा। पहले चरण में करीब 55 सीटों के मतदान हुए थे, उनमें भाजपा को सिर्फ 5 सीटें मिली थीं। दूसरे चरण के मतदान में उसे 9 सीटें मिली थीं। भाजपा नेताओं को अहसास हो गया था कि उनकी हालत बेहद खराब हो रही है, इसलिए प्रधानमंत्री ने एकाएक मुस्लिम और अल्पसंख्यक राग छेड़ दिया। उनके विरोधी उनसे आरक्षण के मसले पर स्पष्टीकरण मांग रहे थे। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उसकी समीक्षा की मांग की थी, जिसे लालू यादव आरक्षण समाप्त करने की संघ की घोषणा बता रहे थे। मोदी उस पर चुप थे। उस चुप्पी के कारण पहले दो चरणों में भाजपा को काफी नुकसान हुआ था। मोदीजी को लगा कि अब आरक्षण पर बोलना ही पड़ेगा, लेकिन उन पर वे कुछ ज्यादा ही बोल गए और अपने भाषणों में वे नीतीश कुमार व उनके गठबंधन पर ही आरोप लगाने लगे कि वे दलितों का चार प्रतिशत, आदिवासियों का चार प्रतिशत, अति पिछड़ों का चार प्रतिशत और पिछड़ों का चार प्रतिशत काटकर अल्पसंख्यकों को दे देना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा होने के पहले वे फांसी लगा लेना चाहेंगे।
यानी भागवत के बयान पर सफाई देने के बदले वे इस मसले को घुमाकर अल्पसंख्यक यानी मुसलमानों पर ले जाने लगे। उनके उस भाषण में कोई सच्चाई नहीं थी। नीतीश कुमार ने संसद में मुस्लिम और ईसाई दलितों को भी अनुसूचित जाति की श्रेणी में रखे जाने का समर्थन किया था। उसी को वे घुमाफिरा कर कह रहे थे। यह मनमोहन भागवत के बयान पर अपनी सफाई देने का नरेन्द्र मोदी का अंदाज था। अपने इसी अंदाज में वे कह रहे हैं कि रमजान पर यदि बिजली की आपूर्ति होती है, तो दिवाली में भी बिजली की आपूर्ति होनी चाहिए। दिवाली मे बिजली आपूर्ति के विशेष उपाय नहीं किए जाते हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता और रमजान कोई त्यौहार नहीं है, बल्कि दिनभर उपवास रखने का व्रत है, जिसके लिए बिजली की जरूरत नहीं पड़ती। वे कह रहे हैं कि यदि कब्रगाह बनाने जरूरी हैं, तो श्मशान बनाना भी जरूरी है।
यहां भी वे गलतबयानी कर रहे हैं। कब्रगाह और श्मशान पहले से ही हैं। अखिलेश सरकार मात्र यह दावा कर रही है कि खुले कब्रगाहों के चारों तरफ उन्होंने दीवार खड़ी करवा दिए, ताकि उसकी जमीन पर कोई अतिक्रमण नहीं कर सके। सार्वजनिक जमीन को निजी कब्जे से बचाना सरकार की जिम्मेदारी होती है। यदि श्मशान की जमीन पर भी कब्जे या अतिक्रमण का डर हो, तो उसकी घेराबंदी कराना भी सरकार का ही कर्तव्य होता है। लेकिन श्मशान को ज्यादा जमीन की जरूरत नहीं होती वह जमीन आमतौर पर सुरक्षित ही होते हैं, इसलिए उसकी जमीन के साथ वह समस्या नहीं है, जो कब्रगाहों की जमीन के साथ है। देश भर मे हजारों क्या लाखों एकड़ कब्रग्राहों की जमीन का अतिक्रमण हुआ होगा। इसलिए यदि उत्तर प्रदेश में उसे सुरक्षित करने के लिए अखिलेश सरकार ने कुछ किया है, तो यह उसके दायित्वों के निर्वाह के दायरे में आता है। इसलिए उसकी आलोचना करने का कोई आधार नहीं बनता।
लेकिन कब्रगाह और श्मशान की तुलना कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं। इस तरह की कोशिश तो भारतीय जनता पार्टी के अन्य नेता पहले से ही कर रहे हैं। इस काम के लिए आदित्यनाथ योगी, साक्षी महाराज और उनके जैसे अन्य लोगों को पार्टी ने काफी दिनों के लगा रखा है। पर लगता है कि भारतीय जनता पार्टी का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रयास सफल नहीं हो पा रहा है, इसलिए अब ऐसा करने का जिम्मा खुद प्रधानमंत्री ने अपने ऊपर ले रखा है।
सवाल उठता है कि क्या ऐसा करने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सफल हो पाएंगे? इस सवाल का जवाब जानने के लिए बिहार के उदाहरण को देखना महत्वपूर्ण है। बिहार में दो चरण के मतदान के बाद भाजपा की स्थिति कुछ बेहतर हुई थी। पहले और दूसरे दौर की प्रवृति बाद वाले चरणों में भी जारी रहती तो भाजपा को 30 से ज्यादा सीटें बिहार में नहीं मिल पाती। पर यह कहना गलत होगा कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण भाजपा की स्थिति बाद के कुछ चरणों में बेहतर हुई थी। असली कारण यह था कि मोहन भागवत के बयान के बाद दलितों और पिछड़ों के बीच आरक्षण समाप्त होने की जो आशंका घर गई थीे, उस आशंका को मोदी ने अपने शब्दों से समाप्त कर दी थी। यदि वे अल्पसंख्यक आरक्षण के द्वारा दलितों और पिछड़ों के आरक्षण को समाप्त करने की बात नहीं करते, तब भी उन्हें उतनी ही सीट मिलती, जितनी आखिरकार मिली।
जाहिर है, जब बिहार में धार्मिक ध्रुवीकरण का लाभ नहीं मिला तो उत्तर प्रदेश में क्यों मिलेगा? उत्तर प्रदेश के जिस हिस्से में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ज्यादा आशंका होती है, वहां तो चुनाव पहले दो दौर में ही हो चुके हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर दंगा हुआ था। उसके कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश और रुहेलखंड का माहौल सांप्रदायिक हो गया था। उसका लाभ उठाकर भाजपा ने लोकसभा चुनाव में इन दोनों इलाकों की सारी सीटें जीत ली थी। विधानसभा चुनाव में लगता है कि वैसा नहीं हुआ है। यानी सांप्रदायिक धु्रवीकरण नहीं होने के कारण भारतीय जनता पार्टी इसका लाभ नहीं उठा पा रही है। मतदान के नजदीक से देखने वाले कुछ लोगों का तो कहना है कि इन दो चरणों में मुख्य रूप्ज्ञ से मुकाबला समाजवादी गठबंधन, बसपा और राष्ट्रीय लोकदल के बीच हुआ है और भारतीय जनता पार्टी चैथे नंबर पर है। प्रधानमंत्री का हताश बयान इसी की पुष्टि करता है।
सबका साथ, सबका विकास का नारा लगाते हुए एकाएक मोदीजी का कब्रिस्तान और श्मशान में घुसना उस पद की गरिमा को घटा देता है, जिस पद पर वे बैठे हुए हैं और इससे उनकी पार्टी को कोई लाभ भी नहीं होने वाला। जाहिर है, नरेन्द्र मोदी अपनी स्वीकार्यता को अब सिर्फ संघ के तक सीमित करने मे ंलगे हुए हैं, जबकि उनको प्रधानमंत्री पद पर उन लोगों ने बैठाया है, जो संघ परिवार से बाहर हैं। (संवाद)
प्रधानमंत्री का सांप्रदायिक राग
बिहार जैसी घबराहट दिखा रही है भाजपा
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-02-20 13:35
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा एकाएक रमजान और दिवाली की चर्चा करना यह जाहिर करता है कि उत्तर प्रदेश के पहले दो चरण के मतदान से भाजपा उसी तरह घबरा गई है, जिस तरह वह बिहार में पहले दो चरण के मतदान के बाद घबरा गई थी।