लेकिन इस बार का चुनाव 2012 के चुनाव से कई मायने में अलग होगा। सबसे पहला अंतर तो यह होगा कि इस बार नगर निगम की सत्ता हासिल करने के तीन दावेदार होेंगे जबकि पिछली बार फिर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ही सत्ता हासिल करने की रेस में थी। इस बार आम आदमी पार्टी भी दिल्ली नगर निगम पर कब्जा करने के लिए दावेदारी करती दिखाई पड़ रही है।

दूसरा अंतर यह होगा कि पिछले चुनाव के समय दिल्ली नगर निगम का बंटवारा नहीं हुआ था। चुनाव के बाद ही इसे तीन भागों मंे बांट दिया गया था, हालांकि संख्या बल के कारण तीनो निगमों पर भारतीय जनता पार्टी का ही कब्जा बना रहा। इस बार पहले से ही पार्टियों के सामने तीनों नगर निगम अंचलों पर कब्जा करने की चुनौती होगी।

एक अंतर केन्द्र और दिल्ली की सरकार को लेकर है। पिछले चुनाव में दिल्ली और केन्द्र दोनों में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन इस बार दोनों में से किसी में भी कांग्रेस की सरकार नहीं है। केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की और प्रदेश में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार है।

आम आदमी पार्टी सत्ता की सबसे सशक्त दावेदार है, क्योंकि उसने पिछली विघानसभा में 70 में से 67 सीटों पर जीत हासिल कर ली थी। हालांकि अभी उसकी ताकत उतनी नहीं है, लेकिन फिर भी वह उसे कमजोर नहीं आंका जा सकता।

इस बार आम आदमी पार्टी से बाहर निकले योगेन्द्र यादव का स्वाराज अभियान भी चुनाव लड़ने जा रहा है। अभी से उसने आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ आक्रामक तेवर अपना रखे हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुूमार का जनता दल (यू) भी पूरी ताकत से इस बार चुनाव मैदान में उतर रहा है। हालांकि पहले भी उनका दल चुनाव लड़ता रहा है और हार के अलावा उसे कुछ हासिल नहीं होता है। पर नीतीश कुमार के नेतृत्व मंे दल पहली बार दिल्ली का चुनाव लड़ने जा रहा है। दिल्ली में बिहार के लोगों की भारी संख्या होने के कारण यह देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार यहां कुछ हासिल कर पाते हैं या नहीं।

कांग्रेस के लिए यह चुनाव अपनी स्थिति बेहतर करने का एक अच्छा मौका है। 2012 और उसके बाद हुए सभी चुनावों में कांग्रेस लगातार हारती आ रही है। 2012 के नगर निगम का चुनाव तो वह हार ही गई थी। उसके अगले साल 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में भी उसे करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बाद वह तीसरे स्थान पर चली गई थी।

2014 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस सभी सीटों पर चुनाव हार गई थीं। अधिकांश सीटों पर उसके उम्मीदवार तीसरे स्थान पर थे। 2013 में उसने जो तीसरा स्थान प्राप्त किया था, उस स्थान पर वह लोकसभा चुनाव में भी बनी रही

2015 में तो कांग्रेस का सफाया ही हो गया था। 70 सीटों वाली विधानसभा में उसे एक भी सीट हासिल नहीं हुई थी और अधिकांश सीटो पर उसके उम्मीदवारों की जमानतें भी जब्त हो गई थी। आजादी के बाद कांग्रेस का वह सबसे खराब प्रदर्शन था।

लेकिन उसके बाद हुए नगर निगम के कुछ उपचुनावों में कांग्रेस के कुछ उम्मीदवार जीते थे। इससे कांग्रेस के नेतागण उत्साहित दिखाई दे रहे हैं। अजय माकन के नेतृत्व में कांग्रेस लगातार राजनैतिक सक्रियता दिखाती रहती है।

भारतीय जनता पार्टी के लिए भी यह चुनाव कम महत्वपूर्ण नहीं है। केजरीवाल भाजपा की आंखों में खटकने वाले सबसे बड़े नेता हैं। उन्होंने पंजाब और गोवा में भी भारतीय जनता पार्टी को चुनौती दे रखी है और यदि दिल्ली में जीत जाते हैं, तो गुजरात में वे भाजपा को काफी नुकसान पहुंचा सकते है। जाहिर है दिल्ली में केजरीवाल को पराजित करना भारतीय जनता पार्टी की राजनैतिक प्रतिष्ठा को कायम रखने के लिए बहुत जरूरी है।

चुनावी सरगर्मी अभी तेज नहीं हुई है, लेकिन उम्मीदवारों की सूची जारी करने में आम आदमी पार्टी ने अपने दोनों मुख्य प्रतिद्वंद्वियों के ऊपर बढ़त हासिल कर ली है। उसने 109 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं। कुल 272 सीटो पर चुनाव होने हैं। दिल्ली नगर निगम चुनाव में नई दिल्ली नगरपालिका और कैंट क्षेत्र शामिल नहीं होते। उनके लिए अलग से चुनाव होते हैं। (संवाद)