लेकिन पिछले दिनों जो चुनाव हुए उसके नतीजे उनके लिए अच्छे नहीं थे। कुल 25 जिला परिषदों के चुनाव हुए। उनके साथ 10 नगर निगमों के चुनाव भी हुए। अधिकाश जगहों पर पार्टी तीसरे स्थान पर आई। महानगरों कें चुनावों में तो उसका बहुत ही बुरा हाल हुआ। उन दस में से 6 पर शरद पवार की पार्टी का ही कब्जा था। चार पर तो उनकी पार्टी अकेले काबिज थीं, जबकि दो अन्य पर कांग्रेस के साथ वह सत्ता में हिस्सेदारी कर रही थी। सभी जगह उनकी पार्टी पराजित हो गई। 8 पर तो भारतीय जनता पार्टी का कब्जा हो गया। एक पर शिवसेना का नियंत्रण हुआ। मुंबई में भी शिवसेना पहले स्थान पर है, हालांकि भारतीय जनता पार्टी का भी वहां प्रदर्शन अच्छा रहा है और उसे शिवसेना से 2 सीटें ही कम मिली हैं।
इन चुनावों मंे हार के बाद शरद पवार के भविष्य पर सवाल खड़े होने लगे हैं। पूछा जाने लगा है कि क्या शरद पवार के दिन अब समाप्त हो गए हैं और पार्टी खत्म हो चुकी है? उनकी एनसीपी के अस्तित्व पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। लेकिन शरद पवार हार मानने वालों में से नहीं हैं। इन चुनावों में उनकी पार्टी की फजीहत भले हो गई हो, लेकिन अभी भी वह कांग्रेस से गठबंधन कर वापसी की उम्मीद कर रहे हैं।
महानगरों में तो कोई संभावना नहीं बची है, लेकिन जिला परिषदों में शरद पवार अभी भी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर 25 में से 17 या 18 परिषदों पर कब्जा कर सकते हैं। 25 जिला परिषदों में कुछ 1509 सीटें हैं। उनमें से भारतीय जनता पार्टी की जीत 406 सीटों पर हुई है, जबकि एनसीपी को 360 और कांग्रेस को 309 सीटें मिली हैं। शिव सेना को 271 सीटें मिली हैं। यदि एनसीपी और कांग्रेस आपस में तालमेल बैठा ले तो अधिकांश जिला परिषदों पर उनका ही संयुक्त कब्जा हो जाएगा।
उस कब्जे के बाद शरद पवार कांग्रेस के साथ गठबंधन कर महाराष्ट्र के 2019 के चुनावों के लिए बेहतर तैयारी कर सकते हैं। पिछला विधानसभा चुनाव उन्होंने अकेला ही लड़ा था। तब उनका 41 सीटें और कांग्रेस को 42 सीटें मिली थीं। भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना भी अलग अलग चुनाव लड़ी थी। भाजपा पहले स्थान पर आई थी, जबकि शिवसेना दूसरे स्थान पर आई थी। आज दोनों गठबंधन कर सत्ता में हैं। दोनों के संबंध बहुत ही खराब हो चुके हैं और यदि उसमें आगामी लोकसभा चुनाव तक सुधार नहीं हुए तो कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन बेहतर प्रदर्शन कर पाएगा।
शरद पवार उम्रदराज हो गए हैं। इसलिए उनकी विरासत का सवाल भी खड़ा हो गया है। उनकी विरासत के दावेदारों में से उनकी बेटी सुप्रिया शूले और भतीजा अजित पवार सबसे आगे है। सुप्रिया देश की राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी रखती हैं, तो अजित प्रदेश की राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं। इसलिए दोनों के टकराव की संभावना कम ही लगती है। अजित पवार जमीन से जुड़कर राजनीति करते हैं और पार्टी के नेताओं और कार्यकत्र्ताओं पर उनकी पकड़ भी अच्छी है, हालांकि उन्हें कुछ मुकदमों का भी सामना करना पड़ रहा है और उनके अनेक सहयोगियों को पिछले चुनाव के समय भारतीय जनता पार्टी तोड़ चुकी है, लेकिन अभी भी उनमें संभावना बची हुई है।
लेकिन शरद पवार को अपनी राजनीति बचाने के लिए कांग्रेस के साथ तालमेल बैठाना ही होगा और वे वैसा कर भी रहे हैं। (संवाद)
शरद पवार वापसी करने के लिए कृतसंकल्प
कांग्रेस के साथ फिर हो सकता है एनसीपी का गठजोड़
कल्याणी शंकर - 2017-03-01 11:18
पिछले स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजों से पता चलता है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार अब लोगों पर अपनी पकड़ खोते जा रहे हैं। उनकी पार्टी को पिछले चुनावों में सबसे बड़ा झटका लगा है। उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन में बहुत ही उत्थान और पतन देखे हैं, पर लगातार सत्ता की राजनीति से जुड़े रहे हैं। पहली बार उन्होंने 1967 में चुनाव लड़ा था। उसमंे उनकी जीत हुई थी। उसके बाद भी वे चुनाव लड़ते रहे और हमेशा जीतते रहे। कभी चुनाव नहीं हारने वाले राजनीतिज्ञ के रूप में उन्होंने एक रिकार्ड बना रखा है। लगातार 50 साल तक चुनाव लड़ते हुए कोई चुनाव नहीं हारने वाले संभवतः वे एकमात्र राजनेता हैं।