गुजरात के दलितों की जाति के कारण ही मोदी को वह कदम उठाना पड़ा था और कहना पड़ा था कि स्वयंघोषित गौरक्षकों में ज्यादातर नकली गौसेवक है। प्रधानमंत्री दलितों को अपनी पार्टी से नाराज देखना नहीं चाहते थे। उसके पहले रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद दलित उनकी पार्टी से वैसे ही नाराज थे।

लेकिन संघ परिवार अनेक सिरों वाला संगठन है और उनमें सभी मुह जहर उगलने वाले हैं। इसलिए जब एक मुह चुप होता है, तो पता नहीं कौन सा दूसरा मुह बोलने लग जाय। इस समय मोहन भागवत भूले भटके मुसलमानों को हिन्दू धर्म में वापसी की अपनी अपील पर जोर नहीं दे रहे हैं। इस मसले पर वे शांत हैं। गौरक्षक भी शांत हैं, लेकिन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने वेमुला आत्महत्या कांड के बाद एक बार फिर सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है।

अब परिषद ने एक बार फिर ’राष्ट्रविरोधियों‘ के खिलाफ आग उगलना शुरू कर दिया है। वह राष्ट्रवाद अपनी आस्तीन में लेकर चलती है। हैदराबाद में उसने रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया था और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में तो उसने कुछ छात्रों के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा तक करवा दिया था। उन छात्रों में एक छात्र उमर खालिद भी है।

खालिद के खिलाफ मुकदमा अभी भी लंबित है। उसका न तो कोई फैसला आया है और न ही अभी तक उस मुकदमे में अभियोग पत्र दाखिल किया गया है लेकिन एबीवीपी के लोग अभी से ही उसे राष्ट्रद्रोही घोषित करने में लगे हुए हैं। उसे रामजस काॅलेज में एक गोष्ठी में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था। एबीवीपी के लोगों ने वह गोष्ठी होने ही नहीं दी। जब रामजस के छात्रों ने उसका विरोध किया, तो उनके खिलाफ ही हिंसा की गई। हिंसा में छात्रों को ही नहीं, बल्कि शिक्षकों और पत्रकारों को भी निशाना बनाया गया।

यह कोई पहला मौका नहीं था, जब एबीवीपी ने यह निर्णय का अधिकार अपने जिम्मे में लिया कि विश्वविद्यालय में बोलने के लिए किसे बुलाया जाय और किसे नहीं बुलाया जाय। उसके पहले भी अनेक लोगों को उन्होंने बोलने नहीं दिया और उनके आमंत्रण को ही रद्द करवा दिया। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर में जवाहरलाल नेहरू की निवेदिता मेनन को आमंत्रित किया गया था। छात्रो के विरोध के बाद उनके आमंत्रण को रद्द कर दिया गया और आमंत्रित करने वाले प्रोफेसर को ही निलंबित कर दिया गया।

रामजस काॅलेज के बाद खालसा काॅलेज में भी इसी तरह की घटना हुई। एक उत्सव होने वाला था। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को उस पर भी आपत्ति थी। उनकी आपत्ति के मद्देनजर काॅलेज प्रशासन ने उस उत्सव को भी नहीं होने दिया। उस उत्सव में कुछ नाटक होने वाले थे। एबीवीपी को शिकायत थी कि उन नाटकों मंे कुछ के विषय राष्ट्रविरोधी हैं।

इन घटनाओं को भारतीय जनता पार्टी के नेता बढ़ावा दे रहे हैं। विदेश से अरुण जेटली एबीवीपी के पक्ष में बयान दे रहे हैं, तो केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजुजू भी पीछे नहीं हैं। उन लोगों को लगता है कि वैसा करने से उनकी पार्टी के राजनैतिक समर्थन का आधार विस्तृत होता जाएगा।

लेडी श्रीराम काॅलेज की एक छात्रा गुरमेहर कौर ने हिंसा और युद्ध के खिलाफ अपनी आवाज क्या उठाई भाजपा के नेता उसके पीछे पड़ गए हैं। किरण रिजुजू कह रहे हैं कि उसकी दिमाग मे जहर भरा जा रहा है। रिजुजू ने तो उसकी तुलना दाउद इब्राहिम तक से कर दी।

इस तरह भारतीय जनता पार्टी विश्वविद्यालय में हिंसा को बढ़ावा दे रही है। शांति की बात करने वालों को जहर भरा बताया जा रहा है और हिंसा फैलाने वालों के खिलाफ चुप्पी साधी जा रही है। (संवाद)