राजनैतिक पर्यवेक्षकों को लगता है कि यदि पंजाब और उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार हो गई, तो पार्टी के नेता ही नरेन्द्र मोदी की चुनाव जिताने की क्षमता पर सवाल खड़े करने लगेंगे। प्रधानमंत्री ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में अनेक रैलियां की है और आने वाले समय में वे पूरे तीन दिन यहीं लगाने वाले हैं।

भाजपा ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा सीटों की जीत दर्ज करने के लिए अपने सारे संसाधन झोंक डाले हैं। आरएसएस और उसके मातहत आने वाले अन्य संगठनों के नेता पूरे चुनाव क्षेत्रों में फैल गए हैं। बनारस में केन्द्रीय मंत्रियों का जमावड़ा लगा हुआ है। भाजपा शासित प्रदेशों के मंत्री भी चुनाव प्रचार में पूरा जोर लगाए हुए हैं।

भारतीय जनता पार्टी पूरी तन्मयता के साथ जातिवाद की राजनीति कर रही है। कुर्मी वोटरों को लुभाने के लिए उसने अनुप्रिया पटेल को लगा रखा है, तो राजभर समाज का वोट पाने के लिए ओमप्रकाश राजभर पर वह निर्भर कर रही है।

भारतीय जनता पार्टी ने 11 सीटें अपना दल को समझौते के तहत दी है और ओमप्रकाश राजभर की भारत समाज पार्टी पार्टी को 8 सीटें दी हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी पूरी आक्रामकता के साथ कमंडल की राजनीति भी कर रही है। गोरखपीठ के महंत आदित्यनाथ जो भाजपा के सांसद हैं और मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं, राम मंदिर के मसले को पूरे जोरशोर से उठा रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इस्तेमाल किए गए कब्रिस्तान और श्मशान शब्दों का इस्तेमाल भाजपा के नेता और कार्यकत्र्ता पूरी व्यग्रता के साथ कर रहे हैं। विपक्षी पार्टियां भी उस पर उसी तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही हैं।

बहुजन समाज पार्टी भी पूरी आक्रामकता के साथ दलितों और मुसलमानों को अपनी ओर करने के लिए पूरा जोर लगा रही है। इस क्षेत्र में दलित कुल आबादी के 20 फीसदी हैं। बसपा के साथ कौमी एकता दल का समझौता हुआ है और उसके नेता बसपा के टिकट पर ही चुनाव लड़ रहे हैं। गौरतलब हो कि अखिलेश ने कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी मंे विलया को नाकाम कर दिया था और उसके बाद ही पार्टी के अंदर झगड़ा शुरू हुआ था।

कौमी एकता दल के नेता मुख्तार अंसारी पूवी उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों में अच्छा प्रभाव रखते हैं। बसपा उसका लाभ उठाने की कोशिश कर रही है और इसके अलावा मुसलमानों मे अपनी पैठ बढ़ाने के लिए मायावती ने प्रदेश भर में 100 से भी ज्यादा मुसलमानों को टिकट दिए हैं।

बसपा दलितों और मुसलमानों के अलावा ओबीसी समुदायों पर भी निर्भर कर रही है। उसके लिए उन्होंने अनेक ओबीसी नेताओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दे रखी हैं। वह नारद राय और अंबिका चैधरी जैसे ओबीसी नेताओं पर निर्भर कर रही हैं, जो समाजवादी पार्टी छोड़कर कुछ दिन पहले ही उनकी पार्टी में शामिल हुए हैं।

समाजवादी पार्टी- कांग्रेस गठबंधन अखिलेश यादव की लोकप्रियता पर मुख्य रूप से निर्भर कर रही है। वह ओबीसी और मुस्लिम समर्थन पर भी भरोसा कर रही है। कांग्रेस से गठबंधन कर वह अगड़ी जातियों के लोगों तक भी अपनी पहुंच बना रही है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र यादव अखिलेश यादव और उनकी सरकार पर तीखे हमले कर रहे हैं और अखिलेश भी उन्हीं के लहजे में उनका जवाब दे रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री से सीधे बहस करने की चुनौती दे डाली है। राजनैतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि जाति और संप्रदाय के मसलों ने अब विकास के मसले को बहुत पीछे छोड़ दिया है।

गैर भाजपा दल नोटबंदी को भी एक बड़ा मृद्दा बनाने में लगे हैं। दूसरी तरफ भाजपा नेता इस मसले पर बोलने से बच रहे हैं। वे यह कहते हुए दिखाई देते हैं कि नोटबंदी कोई चुनावी मुद्दा ही नहीं है।

अंतिम दो चरणों में अनेक कुख्यात अपराधी भी चुनाव लड़ रहे हैं। सबसे ज्यादा अपराधियों को बहुजन समाज पार्टी ने टिकट दिए हैं। भाजपा और समाजवादी पार्टियों के उम्मीदवारों में भी कुछ अपराधी शामिल हैं। (संवाद)