उसके बाद अल्पमत को बहुमत में बदलने का खेल शुरू हो गया। कांग्रेस विधायक श्यामकुमार और तृणमूल कांग्रेस के विधायक राज्यपाल भवन जा पहुंचे और उन्होंने कहा कि वे अपनी अपनी पार्टी को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी मंे शामिल होना चाहते हैं। उसके बाद नगा पीपल्स फ्रंट और नगा पीपल्स पार्टी ने अपना रंग दिखाया और भाजपा का साथ देने की घोषणा कर दी। इसके बाद 21 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली भाजपा के पास कुल 31 विधायक हो गए। इस तरह भाजपा का अल्पमत बहुमत में तब्दील हो गया था।

कांग्रेस के विधायकों की संख्या 28 है। इसलिए यदि उनमें से कोई एक पार्टी छोड़ता है, तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी। उसकी सदस्यता समाप्त करने का फैसला विधानसभा के स्पीकर को करना है, जिसके लिए अभी चुनाव भी नहीं हुआ है। इसलिए दलबदल करने वाले कांग्रेसी विधायक की सदस्यता तो बाद में जाएगी, उसके पहले तो सरकार का गठन, सदस्यों का शपथग्रहण और स्पीकर का चुनाव होगा।

ड्रामा अभी जारी था। एक निर्दलीय विधायक अशाब उद्दीन गौहाटी से इम्फाल लौट रहे थे। उन्हें हवाई अड़डे पर ही एक भाजपा नेता ने सीआइएसएफ जवानों की सहायता से पकड़ लिया और वापस गौहाटी में एक पंच सितारा होटल ले गए, जहां पहले से ही 4 कांग्रेसी विधायक मौजूद थे। कांग्रेस ने हंगामा शुरू किया और कहा कि यह विधायकों का अपहरण है। अफवाह यह भी उड़ी कि कांग्रेस के 14 विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होना चाहते हैं ताकि प्रदेश को एक स्थायी सरकार मिल सके।

चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं किया था। अब उसने एन बीरेन सिंह को अपने विधायक दल का नेता बना दिया है। बीरेन कुछ समय पहले तक कांग्रेस में थे और मुख्यमंत्री इबोबी सिंह के बहुत करीबी लोगों में थे। लेकिन जब उन्हें लगा कि कांग्रेस की सरकार अब मणिपुर से जाने वाली है, तो वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और उसके टिकट पर ही चुनाव लड़ा।

मणिपुर में अपनी इस दशा के लिए खुद कांग्रेस की जिम्मेदार है। वहां असंतोष बहुत पहले से पनप रहा था। असंतृष्ट कहते हैं कि वे आलाकमान से मिलने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वे मिल नहीं सके। बहुत कोशिशों के बाद भी उन्हें सफलता नहीं मिली। इबोबी सिंह को कांग्रेस आलाकमान का समर्थन मिल रहा था। इसलिए वे निश्चिंत होकर सरकार चला रहे थे और अपने विरोधियों की परवाह नहीं कर रहे थे।

इबोबी सिंह ने कहा है कि चूंकि उनकी पार्टी सबसे बड़ी है, इसलिए सरकार बनाने का निमंत्रण उन्हें ही मिलना चाहिए था। वे अपने पद से इस्तीफा भी नहीं दे रहे थे। अंत में राज्यपाल द्वारा कहे जाने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

कांग्रेस को भले ही सबसे ज्यादा सीटें मिली हों, लेकिन मत ज्यादा भारतीय जनता पार्टी को मिले। कांग्रेस को 35 फीसदी मत मिले, जबकि भाजपा को सवा 36 फीसदी से भी ज्यादा मत मिले। (संवाद)