भूमंडलीयकरण के प्रभाव से बैंक ब्याज दर में दिन पर दिन आती गिरावट से सेवाकाल उपरान्त वृृद्धजनों द्वारा भविष्य में जीवनयापन की दृृष्टि से एम आई एस के तहत एक मुस्त जमा की गई राशि से प्रतिमाह आने वाली ब्याज राशि में कमी आती जा रही है। जिससे दिन पर दिन बढ़ती महंगाई के आगे यह राशि छोटी होने लगी है। भूमंडलीयकरण के प्रभाव से एकल परिवार की बिखरती परिभाषा वृृद्धजनों को परिवार से अलग - थलग करती जा रही है, जहां ये उपेक्षा के शिकार पहले से ज्यादा होने लगे है। जीवनयापन के लिये शुरू की गई पेंशन योजना भी ऊॅट के मुंह में जीरा का फोरन सदृृश है। इस तरह के हालात में देश के वृृद्धजन अपने बचे जीवन को किस तरह संवार पायेंगे इसकी किसी को चिंता नहीं।

सभी भूमंडलीयकरण के प्रभाव में देश की अस्मिता को विकास के नाम विदेशियों के हवाले करते जा रहे है। जिसके कारण देश को सही मामले में विकसित करने वाले उद्योग तहस - नहस हो रहे है, कृृषि योग्य भूमि पर विशालकाय नये - नये भवन बनते जा रहे है। गांव उपेक्षित हो रहे है। नये - नये नगर बस रहे है। भारतीय बाजार पर विदेशी सामान हावी होते जा रहे है। आज देश का अधिकांश धन विदेश में जा रहा है।

आज गुलामी की परिभाषा बदल गई है। अब विदेशी सीधे तौर पर दूसरे देशों को गुलाम न बनाकर भूमंडलीयकरण के प्रभाव से आर्थिक गुलाम बनाते जा रहे है। जिसके कारण गुलाम देश का विकसित हो पाना कतई संभव नहीं । इस तरह की गुलामी सीधे तौर की गुलामी से ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है। भूमंडलीयकरण के प्रभाव से प्रभावित आर्थिक गुलामी देश को धीरे - धीरे अपंगता की ओर ले जाती हैं। विनिवेश इसका साक्षात उदाहरण है। जब से देश में विनिवेश का दौर चला है, देश में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई बढ़ी है। बाजार पर विदेशी साम्राज्य स्थापित हुआ है। समाजवादी दृृष्किोण में भी परिवर्तन आया है। इस तरह के हालात में देश विकास के नाम नये गुलामी के दौर से गुजरता नजर आने लगा है। जहां सबसे ज्यादा बृृद्धजनों का जनजीवन असुरक्षित नजर आ रहा है।

इस दिशा में मंथन होना चाहिए। भूमंडलीयकरण के प्रभाव से देश को किस प्रकार आर्थिक गुलामी के शिकंजे से बाहर निकालकर देश को सही मायने में विकास पथ पर ले जाया जाय। जिससे भारतीय बाजार , उद्योग आत्मनिर्भर होकर विकास की ओर पग बढ़ा सके। जहां भारतीय मुद्रा का क्षय न हो ।

सेवाकाल उपरान्त वृृद्धजनों द्वारा भविष्य में जीवनयापन की दृृष्टि से एम आई एस के तहत एक मुस्त जमा की राशि से प्रतिमाह आने वाली ब्याज राशि इस प्रकार हो जिससे जीवनयापन की परिभाषा सार्थक हो सके। इस दिशा में गिरती ब्याज दर को शीघ्र रोका जाना चाहिए। साथ ही बृृद्धापेंशन की राशि महंगाई के अनुरूप हो जिससें सामान्य जीवनयापन के साथ - साथ सुबह - शाम की रोटी नसीब हो सके। इस तरह के हालात के लिये देश को आत्म निर्भर बनाना भी जरूरी है।

भारत गांवों का देश है जहां की संस्कृृृति अपने आप में निराली है पर भूमंडलीय परिवेश के कारण दिन पर दिन इसमें गिरावट आती जा रही है। यदि इस गिरावट को हम रोकने में सक्षम हो सके एवं गावों की संस्कृृति की रक्षा कर सके तो वृृद्धाश्रम की जरूरत इस देश को नहीं हो सकती। (संवाद)