मायावती के उस आरोप से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने भी सहमति जताई थी और कहा था कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की जीत की स्थिति नहीं थी और उसकी जीत में मशीनों द्वारा की गई धांधली का हाथ है। बाद में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इसी आरोप को दुहराया और आरोप लगाया कि पंजाब में उनकी पार्टी के उम्मीदवारों के मतों को अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को ट्रंास्फर कर दिया गया, जिसके कारण कांग्रेस को शानदार सफलता मिली और उनकी पार्टी से कम सीटें मिलने के बावजूद अकाली भाजपा गठबंधन को 30 फीसदी वोट मिल गए, जबकि आम आदमी पार्टी को मात्र 25 फीसदी ही मत मिल सके थे।
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने पायलट प्रोजेक्ट के दौर पर इस्तेमाल किए गए पेपर ट्रेल पर्ची की गिनती की मांग भी कर दी, ताकि उसके नतीजों से मशीनों द्वारा हुई गिनती के नतीजों की जांच कर सके। निर्वाचन आयोग ने केजरीवाल की मांग को नकार दिया और उनके दावे को भी खारिज कर दिया। मायावती की मांग और उनके दावों को निर्वाचन आयोग पहले ही खारिज कर चुका था और उसने दावा किया था कि उन मशीनों से छेड़छाड़ की ही नहीं जा सकती।
लेकिन मध्यप्रदेश की घटना निर्वाचन आयोग के दावों को खोखला साबित कर देती है। मध्यप्रदेश में जिस मशीन से पेपर ट्रेल का प्रदर्शन किया जा रहा था, वह मशीन उत्तर प्रदेश से आई थी। निर्वाचन आयोग के खुद के दावे के अनुसार उस मशीन का इस्तेमाल वहां नहीं हुआ था, बल्कि वह इस्तेमाल के लिए रिजर्व रखी हुई थी। बूथ पर गए मशीन के खराब निकलने की स्थिति में उसकी जगह दूसरी मशीन भेजने के लिए चुनाव आयोग कुछ मशीनों को रिजर्व रखता है, ताकि जरूरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल किया जा सके। निर्वाचन आयोग के अनुसार मध्यप्रदेश के उपचुनाव में उन्हीं मशीनों का इस्तेमाल किया जाने वाला है।
मध्यप्रदेश के लिए उन मशीनों को फिर से तैयार किया जा रहा होगा। उसमें उम्मीदवारों और उनके नामों की नई सूची तैयार की जा रही होगी। लेकिन लगता है गलती से मध्य प्रदेश की मुख्य चुनाव अधिकारी ने उस मशीन का इस्तेमाल डेमो के लिए कर लिया, जिसे फिर से नये चुनाव के लिए तैयार नहीं किया गया था। अधिकारी को इसका खुद भी अंदाजा नहीं था कि जिस इवीएम को वीवीपीएटी मशीन से जोड़ा गया है, उस मशीन में उत्तर प्रदेश के लिए बनाए गए प्रोग्राम अभी भी हटाए गए नहीं हैं। कहते हैं कि अधिकारी ने जब बटन दबाए तो भाजपा के निशान निकले। जो बटन भाजपा के नहीं थे, उन्हें दबाने पर भी भाजपा के कमल निशान ही निकले और आश्चर्यचकित करने वाला तथ्य यह था कि भाजपा के उम्मीदवार का नाम था सत्यदेव पचैरी, जो उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के गोविंद नगर विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवार थे। उस चुनाव में उन्हें 1 लाख 12 हजार मत मिले थे। कांग्रेस के निकटतक अंबुज शुक्ल को 40 हजार मत मिले थे और इस तरह भाजपा का उम्मीदवार 72 हजार मतों से जीत गया था।
यह घटना निश्चित तौर पर इवीएम द्वारा की गई चुनावी धांधली की ओर इशारा करती है। यदि निर्वाचन आयोग की इस बात को मान भी लिया जाय कि उस मशीन का चुनाव में इस्तेमाल नहीं हुआ था और वह रिजर्व में पड़ा हुआ था, तो इसकी क्या गारंटी है कि जिन मशीनों का इस्तेमाल किया गया, वह भी इसी तरह काम क्यों नहीं कर रही होगी? यह दावा किया जा सकता है कि यह मशीन खराब थी और खराब मशीने इक्का दुक्की ही हो सकती हैं। पर यह खराब थी या खराब जानबूझकर की गई थी, यह दावे के साथ कोई कैसे कह सकता है?
निर्वाचन आयोग सिर्फ अपनी मशीनों के सही होने का दावा करता आ रहा है। उसका दावा सही है या गलत, उसका फैसला वह नहीं कर सकता। वह दूसरे लोगों से सबूत मांग रहा था और यह साबित करने की चुनौती दे रहा था कि कोई इसमें छेड़छाड़ करके दिखा दे। लेकिन किसी और ने नहीं, बल्कि निर्वाचन आयोग के मातहत करने वाली मध्यप्रदेश की मुख्य निर्वाचन आयुक्त द्वारा मशीनों के दिए गए डेमों में ही यह साबित हो गया है कि यह संभव है कि मतदाता किसी को वोट दे और वह वोट किसी और के नाम दर्ज हो जाए।
यह दुर्भाग्य की बात है कि निर्वाचन आयोग अपने आपको दुरुस्त करने और अपने को बेदाग साबित करने के बदले राजनैतिक बयानबाजी पर उतर आया है। उसे उत्तर प्रदेश में इस्तेमाल किए गए मशीनों के बटन दबादबा कर सार्वजनिक रूप से यह दिखाना चाहिए कि वोटर जिसे वोट देता है, वोट उसी को पड़ता है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल निर्वाचन आयोग से मांग कर रहे हैं कि उन्हें मशीनें दे दी जाय, वे साबित कर देंगे कि उनसे छेड़छाड़ करके मतदान के नतीजों को प्रभावित किया जा सकता है। निर्वाचन आयोग को वह चुनौती स्वीकार करनी चाहिए। उसे कानपुर के गोविंदनगर विधानसभा क्षेत्र, जहां के भाजपा उम्मीदवार सत्यदेव पचैरी थे, के इस्तेमाल में आए मशीनों में वीवीपीएटी लगाकर यह दिखाना चाहिए कि पर्ची उसी उम्मीदवार के निकलते हैं, जिस उम्मीदवार के बटन दबाए जाते हैं। यदि वह ऐसा नहीं करती है, तो चुनाव ही संदिग्ध हो जाने के खतरे हैं। निर्वाचन आयोग को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और नतीजों पर उठाए जा रहे संदेह को समाप्त करने की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए। (संवाद)
इवीएम पर घमसानः कमजोर है निर्वाचन आयोग का पक्ष
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-04-04 10:16
मध्यप्रदेश में हो रहे विधानसभा के दो क्षेत्रों के उपचुनाव में इस्तेमाल हो रहे पेपर ट्रेल पर्ची के प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर अलग अलग बटन दबाने पर सभी से भाजपा के कमल निशान छपी पर्ची निकलने के बाद इवीएम विवाद ने एक नया मोड़ ले लिया है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आते ही बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने आरोप लगाया था कि मशीनों में छेड़छाड़ के द्वारा मतों की हेराफेरी हुई है और अन्य उम्मीदवारों के मिले मत भी भाजपा उम्मीदवारों को ट्रांस्फर कर दिए गए हैं। इस तरह का आरोप लगाते हुए मायावती ने नतीजों को वापस लेने और बैलट पत्र के इस्तेमाल से फिर से चुनाव कराने की मांग कर दी थी।