गौरतलब हो कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई एलडीएफ के चुनाव घोषणा पत्र में एक बड़ा मुद्दा था। इसलिए जैकब को उनके पद से हटाया जाना प्रदेश सरकार की कमजोरी दर्शाता है। इससे यह भी पता चलता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उसकी प्रतिबद्धता कमजोर हुई है और अब भ्रष्टाचार से लड़ना उसकी प्राथमिकता नहीं रह गई है।

टाॅमस में चाहे जो भी कमजोरियां हों, अपने 10 महीने के कार्यकाल में वे एक मजबूत और ईमानदार नेता के रूप में उभरे थे। उनकी छवि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषण जैसी बन गई थी, जिनसे राजनेता भय खाते थे। भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद के खिलाफ जो अभियान उन्होंने चला रखा था, उसके कारण भ्रष्ट राजनैतिक और नौकरशाह उनके डर से कांपते थे।

उनके आलोचक उनपर आरोप लगा रहे थे कि वे नियमों का पालन नहीं करते। इसमें कुछ सच्चाई भी हो सकती है कि अपने अधिकार से बाहर जाकर वह काम करते होंगे, लेकिन उन्होंने वास्तव में भ्रष्ट लोगों की नींद हराम कर रखी थी।

यही कारण है कि उनको अपने पद से हटाए जाने के बाद भ्रष्ट लोग जश्न मना रहे हैं। वे राहत की सांस ले रहे हैं। लेकिन जिस तरह से उन्हें हटाया गया है, उसके कारण सरकार की अपनी विश्वसनीयता मारी गई है। वह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए कृतसंकल्प है, ऐसा अब शायद ही कोई सोचेगा।

उन्हें हटाए जाने का कारण उच्च न्यायालय की उनके ऊपर एक टिप्पणी को बताया जा रहा है, जिसमें कहा गया था कि वे केरल में निगरानी राज की स्थापना करने के लि संवैधानिक सीमा का उल्लंघन करते हैं।

उन्हें हटाए जाने के बाद उच्च न्यायालय ने मीडिया में आ रही इन खबरों पर अपना गुस्सा जताया है कि उसने कहने पर ही टाॅमस को उनके पद से हटाया गया। न्यायालय ने साफ किया है कि उसने कभी भी टाॅमस को हटाने के लिए नहीं कहा।

न्यायालय ने कहा कि सुनवाई के दौरान उसने सिर्फ एक सवाल किया था कि जब निगरानी विभाग द्वारा अधिकार के दुरुपयोग का आरोप लगाया जा रहा है, तो सरकार ने विभाग को दुरुस्त करने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया। इस सवाल को ही मीडिया मे लोग गलत तरीके से पेश करते हुए कह रहे हैं कि उच्च न्यायालय ने सरकार को निदेशक बदलने को कहा था।

मीडिया में कहा जा रहा है कि उच्च न्यायालय टाॅमस की बार बार आलोचना कर रहा था और उसके दबाव में ही टाॅमस को उनके पद से हटाना पड़ा।

मुख्यमंत्री के विरोधी उन पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने न्यायालय के दबाव में आकर ही इस तरह का फैसला किया, क्योंकि न्यायालय का वही बेंच मुख्यमंत्री के खिलाफ लवलीन द्वारा दाखिल की गई याचिका की सुनवाई कर रहा है।

इस मामले में विपक्ष की भूमिका बहुत ही दिलचस्प है। वह टाॅमस को उनके पद से हटाने की लगातार मांग कर रहा था। अब जब उन्हें हटा दिया गया है, तो वह उनके हटाने की निंदा कर रहा है और इसके लिए मुख्यमंत्री की आलोचना कर रहा है।

कहा जा रहा है कि टाॅमस को हटाने के लिए सीपीएम के अंदर से भी दबाव था। जयराजन के से को हैंडिल करने के कारण उनकी टाॅमस से नाराजगी थी। गौरतलब हो कि जयराजन को भाई भतीजावाद के कारण स्वास्थ्यमंत्री के अपने पद से हटना पड़ा था। (संवाद)