धन बांटने का मुख्य आरोप सत्तारूढ़ पार्टी पर लगा। सत्तारूढ़ पार्टी का उम्मीदवार शशिकला का भतीजा है, जिसे शशिकला ने पार्टी का उपप्रमुख बना रखा है। शशिकला खुद पार्टी की प्रमुख हैं और उनकी अनुपस्थिति में पार्टी का सबसे बड़े नेता रामकृष्ण नगर से उसके उम्मीदवार दीनकरण ही हैं। जाहिर है, यह जीत सत्तारूढ़ पार्टी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यहां से हारने के बाद पार्टी की स्थिरता भी प्रभावित हो सकती है, क्योंकि इसमें विभाजन पहले ही हो चुका है और विभाजन से निकले दोनों गुटों में असली पार्टी कौन है, इसका फैसला निर्वाचन आयोग ने अभी तक नहीं किया है। दिनकरण की हार की स्थिति में यह संदेश जाएगा कि जयललिता के समर्थक शशिकला को उनका उत्तराधिकारी नहीं मानते।
इसलिए हार की किसी भी आशंका को निरस्त करने के लिए शशिकला की पार्टी सभी तरीकों को अपना रही है और उनमें एक तरीका है मतदाताओं को खरीदने का। मीडिया चैनलों की खबरों के अनुसार मतदाताओं ने स्वीकार किया है कि टोपी छाप पर वोट देने के लिए प्रति मतदाता 4 हजार रुपये बांटे गए। जिन लोगों ने रुपये पाये थे, उन्होंने खुद इसे स्वीकार किया। गौरतलब हो कि टोपी छाप सत्तारूढ़ शशिकला की पार्टी का चुनाव चिन्ह है और शशिकला के भतीजे दिनकरण वहां से पार्टी के उम्मीदवार हैं।
टीवी चैनल के अनुसार जिन लोगों को अभी तक पैसे नहीं मिले थे, वे इस बात को चिंतित थे कि उन्हें पैसे क्यांे नहीं मिले। अनेक तो अपना काम धाम छोड़कर अपने घर पर बैठे हुए थे, ताकि कोई नेता आए और उन्हें भी वोट देने के पैसे मिले। कैश के अलावा तोहफों से भी मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की जा रही थी। कुछ मतदाताओं ने डीएमके को वोट देने के लिए भी पैसे लेने की बात स्वीकार की। लेकिन ज्यादातर को पैसे दिनकरण को वोट देने के लिए ही मिले थे।
निर्वाचन आयोग ने अपनी जांच में भी यही पाया और उसने महसूस किया कि पैसे बंटने के बाद जो माहौल बना है, उसमें निष्पक्ष और मुक्त मतदान नहीं हो सकता। लिहाजा निर्वाचन आयोग ने इस उपचुनाव की अधिसूचना को ही खारिज कर दिया। इसका मतलब यह हुआ कि जब कभी भी आगे चुनाव होगा, तो उसकी फिर से प्रक्रिया शुरू की जाएगी। फिर से अधिसूचना जारी होगी और नये सिरे से मतदान होगा।
इस उपचुनाव को तो स्थगित करके निर्वाचन आयोग ने अच्छा किया है और वह कह रहा है कि रुपये बंटने के बाद जो माहौल खराब हुआ है, उसे बदल जाने के बाद ही वहां अब उपचुनाव कराए जाएंगे। लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि आने वाले समय में जब वहां चुनाव होगा, तो फिर एक बार धन का खेल नहीं खेला जाएगा? सच कहा जाय, तो दक्षिण भारत (केरल अपवाद) को छोड़कर चुनाव में धन के इस्तेमाल को लेकर बहुत ही कुख्यात रहे हैं। वहां कई दशकों से धनबल का इस्तेमाल चुनाव में होता रहा है और अब यह और भी ज्यादा हो गया है। देश के अधिकांश राज्यों में इस तरह की स्थिति पैदा हो गई है।
इसलिए इस समस्या हो हल करने के लिए गंभीर विचारमंथन की जरूरत है और ऐसे तरीकों को अपनाने की जरूरत है, जो देखने में तो थोड़ा गलत और अटपटा लगते हों, लेकिन जो रुपये बांटने की प्रवृति को हतोत्साह करे।
एक तरीका वह है, जिसका इस्तेमाल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल करते हैं। दिल्ली विधानसभा का जब 2013 में चुनाव हो रहा था, तो उस समय केजरीवाल ने मतदाताओं से कहा था कि आपको कुछ लोग रुपये देने के लिए आएंगे। वे पहले से भी आपके पास आते रहेंगे। केजरीवाल ने कहा वे आप लोगों के ही धन हैं, जो काली कमाई के रूप में उनके पास मौजूद हैं, इसलिए यदि कोई आपको रुपये दे, तो आप उनसे रुपये ले लें, पर उन्हें मत नहीं दें, बल्कि आप जिनको बेहतर समझते हैं, उन्हे ही अपना मत दे। उसका असर दिल्ली के चुनावी नतीजों पर पड़ा और अनेक लोग यह कहते हुए दिखाई पड़े कि उन्होंने पैसे फलां से लिए थे, लेकिन मत अरविंद केजरीवाल की पार्टी को दे दिया।
दिल्ली विधानसभा के 2015 के चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल ने वही फाॅर्मूला अपनाया और मतदाताओं से कहा कि यदि कोई आपको वोट देने के लिए 100 रुपया दे तो आप उनसे दौ सौ रुपया मांगकर ले लीजिए और समझिए कि आपका रुपया ही आपको वापस मिल रहा है, लेकिन वोट उसे दीजिए, जिसे आप बेहतर समझते हैं। इस बार निर्वाचन आयोग ने केजरीवाल के खिलाफ नोटिस जारी कर दिया और कहा कि मतदाताओं से रुपये लेने की खुली अपील करना चुनाव आचार संहिता का खुला उल्लंघन हैं। वैसा न करने के लिए केजरीवाल को चेतावनी दी गई।
गोवा विधानसभा चुनाव में भी केजरीवाल ने उसी तरह की अपील की। बार बार चेतावनी देने के बावजूद अपनी बात पर अड़े रहने के लिए केजरीवाल के खिलाफ निर्वाचन आयोग ने मुकदमा दर्ज करवा दिया, लेकिन मुकदमा दर्ज कराने के कुछ ही दिन बाद भाजपा नेता परिकर ने भी उसी तरह की अपील मतदाताओं से कर डाली और कहा कि जिससे रुपया मिलता हो ले लें, लेकिन वोट भाजपा को डालें। निर्वाचन आयोग ने उन्हें भी चेतावनी जारी कर दी।
दरअसल केजरीवाल का यह फाॅर्मूला कारगर हो सकता है, यदि निर्वाचन आयोग इसे खुद आजमाए। उस अपनी तरफ से मतदाताओं से अपील करनी चाहिए कि जो रुपया आपको मिल रहा है वह काला धन है और वह काला धन ऐसी राष्ट्रीय संपत्ति है, जो गलत लोगों के हाथों में है। इसलिए यदि वह आपको कोई दे रहा है, तो आप उसे ले लें, पर वोट उसे दें, जिसे आप ठीक समझते हैं। जब मतदाता नोट लेकर वोट किसी और को देने लगेंगे, तो फिर नोट बंटने ही बंद हो जाएंगे। इस विकल्प पर आयोग को विचार करना चाहिए। (संवाद)
तमिलनाडु के एक उपचुनाव का स्थगन
धनबल का इ्र्रस्तेमाल लोकतंत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-04-10 11:50
निर्वाचन आयोग ने तमिलनाडु के आर के नगर विधानसभा क्षेत्र में हो रहे उपुचनाव को स्थगित कर दिया है। यह उपचुनाव तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के कारण हो रहा था। जयललिता वहां की विधायक थीं और उनके निधन से यह सीट खाली हो गई थी। निर्वाचन आयोग ने यह उपचुनाव इसलिए स्थगित कर दिया, क्योंकि इसमें धनबल के भारी पैमाने पर प्रयोग की शिकायत आ रही थीं। निर्वाचन आयोग ने अपनी अधीन एजेंसियों से इसकी जांच करवाई। अनके जगह छापे पड़े और करोड़ों की राशि जब्त हुई। उस राशि का इस्तेमाल मतदाताओं को घूस देने के लिए किया जाना था। पता यह भी चला कि करोड़ों की राशि मतदाताओं में पहले ही बंट चुकी थी।