राष्ट्रपति ने बहुत ही सही समय पर यह सलाह दी है। इस समय एक व्यापक चुनाव सुधार की जरूरत है। अभी अभी निर्वाचन आयोग ने तमिलनाडु के आरके नगर विधानसभा क्षेत्र के उपुचनाव को कैंसिल कर दिया है, क्योंकि वहां शशिकला की पार्टी के उम्मीदवार को वोट देने के लिए मतदाताओं को रुपये बांटे जा रहे थे। गौरतलब हो कि वह विधानसभा क्षेत्र चुनाव का सामना जयललिता की मौत के कारण कर रहा था। जयललिता वहां की विधायक थीं और उनकी मौत के कारण वह सीट खाली हो गई थी।

वर्षो से चुनाव सुधार की चर्चा हो रही है। इसके लिए अनेक समितियों का गठन किया गया। 1990 में गोस्वामी समिति का गठन किया गया था। 1991 में वोहरा कमिटी का गठन किया गया। 1998 में इन्द्रजीत गुप्ता समिति का गठन किया गया तो 1999 मेें संविधान सभा की समीक्षा के लिए ही एक राष्ट्रीय आयोग का गठन कर दिया गया। 2004 में निर्वाचन आयोग ने चुनाव सुधार के एक प्रस्ताव दे डाले।

अनेक समितियों ने बाहुबल और दलबल के चुनावों में इस्तेमाल रोकने के लिए अनेक प्रस्ताव दिए। कहा गया कि अनेक नेता अपराधियों के नायक बन जाते हैं और उनकी सहायता से अनेक पदों पर जीतकर जनता का प्रतिनिधित्व बन जाते हैं। माॅडल कोड आॅफ कंडक्ट तक का पालन निर्वाचन आयोग नहीं करवा पाता, क्योंकि उसके पास पर्याप्त अधिकार ही नहीं हैं।

निर्वाचन आयोग के पास सुधार की एक लंबी सूची है, जिसे लागू करवाने के लिए वह वर्षों से गुहार लगा रही हैं। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरेशी ने इंडियन एक्सप्रेस में 31 मार्च के अंक में प्रकाशित एक लेख में कहा है कि इन सुधारों को तीन श्रेणी में रखा जा सकता है।

पहली श्रेणी में चुनावी व्यवस्था को साफ करने से संबंधित सुधार हैं। इसके तहत अपराधी पृष्ठभूमि के लोगों को चुनाव लड़ने से रोकना शामिल है। धन की शक्ति को को रोकना भी इसमें शामिल है। इसके साथ साथ निर्वाचन आयोग को शक्ति देने की जरूरत है, जिससे कि वह अस्तित्वहीन और संदिग्ध पार्टियों की मान्यता समाप्त कर सके।

दूसरी श्रेणी में निर्वाचन आयोग को और ज्यादा मजबूत करना है, ताकि वह स्वतंत्र रूप से अपना काम कर सके। निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति को एक काॅलेजियम के हाथों मंे सुपूर्द कर दिया जाना चाहिए और वरिष्ठता के आधार पर ही किसी निर्वाचन आयुक्त को मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनने का प्रावधान होना चाहिए।

तीसरी श्रेणी में चुनाव प्रक्रिया को और मजबूत बनाना शामिल है, जिसके कारण यह पता नहीं चल सके कि किस बूथ के मतदाताओं ने किसको ज्यादा मत डाले और किसे मत वहां पड़े ही नहीं।

चुनावों के समय काले धन का इस्तेमाल एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है। निर्वाचन ने खर्च की जो सीमा तय की है, उससे कई गुना ज्यादा खर्च किया जाता है। चुनाव में शराब और नशीला दवाओं का भी भारी पैमाने पर इस्तेमाल होता है। चुनावी चंदे को लेकर एक बांड जारी करने का निर्णय नरेन्द्र मोदी की सरकार ने किया है, लेकिन वह काले धन के खिलाफ उठाया गया एक कदम है, न कि उसका उद्देश्य चुनाव सुधार करना है।

राष्ट्रपति ने लोकसभा की सीटों की संख्या बढ़ाने की भी सलाह दी है। अभी यह 543 है और यह 1971 की जनगणना पर आधारित है। उस समय देश में मतदाताओं की संख्या 80 करोड़ है, जो कुल आबादी 1 अरब 28 करोड़ हो गई है। (संवाद)