तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार पूर्व कानून मंत्री चन्द्रिमा भट्टाचार्य वहां 42 हजार से भी ज्यादा मतों से जीते। पार्टी को पिछले चुनाव में 93,359 वोट मिले थे। इस बार वोटों की संख्या भी बढ़कर 95,369 हो गई। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार को मिले 52,846 वोट उसके लिए चिंता का कारण बन रहा है।
चूंकि तृणमूल कांग्रेस की जीत सुनिश्चित थी, इसलिए मीडिया की नजर इस बात को लेकर थी कि दूसरे स्थान पर भारतीय जनता पार्टी आती है या नहीं और यदि वह दूसरे स्थान पर आती है, तो उसके मतों की संख्या कितनी होगी। पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को यहां सिर्फ 15,223 वोट ही मिले थे।
इस उपचुनाव में 50 हजार से भी ज्यादा मत हासिल कर भारतीय जनता पार्टी ने यह साबित कर दिया है कि प्रदेश की राजनीति में अब वह दूसरी सबसे बड़ी ताकत बन गई है। वामपंथी पार्टियों और कांग्रेस द्वारा खाली किए गए स्थान को अब भारतीय जनता पार्टी ने भरना शुरू कर दिया है।
भाजपा द्वारा पाए गए वोट से तृणमूल कांग्रेस अन्दर से डरी हुई है, लेकिन ममता बनर्जी बाहर से यह दिखाने की कोशिश कर रही हैं कि उन्हें इसकी कोई परवाह ही नहीं है कि दूसरे स्थान पर कौन आता हैं। वे कह रही हैं कि उनकी पार्टी की जीत हुई है और किसी न किसी को तो दूसरे नंबर पर होना ही था और कौन दूसरे नंबर पर आया, इससे उनको कोई फर्क नहीं पड़ता।
ल्ेकिन सच्चाई यही है कि फर्क पड़ता है। इसका कारण है कि तृणमूल कांग्रेस को हौसलापस्ती के दौर से गुजर रही कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों की नहीं, बल्कि हौसलाबुलंदी के दौर से गुजर रही भारतीय जनता पार्टी का सामना आगामी चुनावों में करना है।
ममता बनर्जी ने भारतीय जनता पार्टी के दूसरे स्थान पर आने का कारण बताते हुए कहा कि कांग्रेस, वामपंथी पार्टियां और कांग्रेस उनके खिलाफ लामबंद हैं। कभी भारतीय जनता पार्टी के लोग उनकी पार्टी पार्टी को हराने के लिए सीपीएम को वोट दे देते हैं, तो कभी सीपीएम के लोग उनकी पार्टी को हराने के लिए भाजपा को वोट दे देते हैं।
दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद से ज्यादा वोट मिले हैं, क्योंकि जिस क्षेत्र में चुनाव हो रहा था, वहां भारतीय जनता पार्टी की उपस्थिति नाम मात्र की ही थी।
तृणमूल कांग्रेस चाहे जो कहे, लेकिन सच्चाई यही है कि कोन्ताई विधानसभा क्षेत्र जहां उपचुनाव हुआ, चुनाव प्रचार के दौरान तृणमूल नेताओं और मंत्रियों का अड्डा बन गया था। जीतने के लिए तृणमूल ने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी और सारे संसाधन उसमें झोंक दिए थे।
कांग्रेस, सीपीआई और भाजपा के उम्मीदवार तो सही तरीके से चुनाव प्रचार भी नहीं कर पा रहे थे। सभी बूथों पर वे अपने एजेंट तक नहीं भेज सके थे। तृणमूल कांग्रेस ही एक मात्र ऐसी पार्टी थी, जो सभी बूथों पर अपने मतदान एजेंट भेज पाई थी। भारतीय जनता पार्टी की स्थिति भी अच्छी नहीं थी। इसक बावजूद उसे 50 हजार से भी ज्यादा मत मिलना इस बात का प्रमाण है कि लोगों ने अपने आप उसे वोट डाले। (संवाद)
ममता का मुकाबला अब भाजपा से
वामपंथी पार्टियां और कांग्रेस अपना आधार खो रही हैं
आशीष बिश्वास - 2017-04-18 12:18
कोलकाताः प्रायः देखा जाता है कि जब राजनैतिक पार्टियां जीत का उत्सव मनाती हैं, तो वे चिंतामुक्त होकर मनाती हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में एक उपचुनाव में जीत के बाद तृणमूल कांग्रेस की खुशी के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। वहां उसकी जीत के बारे में किसी को भी संदेह नहीं था।