विपक्ष ने महसूस किया है कि भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए उसे एकजुट होना पड़ेगा। इस समय भारतीय जनता पार्टी ने अपने आपको पूर्वी और पश्चिमी भारत में मजबूत बना लिया है। उत्तर भारत में वह अबतक के अपने सर्वश्रेष्ठ स्थान पर है। दक्षिण में वह अभी भी अपने पांव फैलाने की कोशिश कर रही है, हालांकि कर्नाटक में वह अपनी सरकार पहले बना चुकी है और वहां की अधिकांश लोकसभा सीटें अभी भी उसी के पास है।

पिछले दिनों देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद विपक्षी पस्ती के माहौल से गुजर रहा है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा को भारी बहुमत से जीत मिली थी। दो अन्य राज्यों में सबसे बड़ी पार्टी नहीं होने के बावजूद उसने अपनी सरकार बना ली। सिर्फ पंजाब में ही उसे करारी हार का सामना करना पड़ा था।

इस समय भारतीय जनता पार्टी 15 प्रदेशों में सत्ता में है। अधिकांश में वह अकेले दम सत्ता में है, जबकि महाराष्ट्र और झारखंड में अपने सहयोगी दलों के साथ सत्ता में है। दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियों का बुरा हाल है। कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है, जिसके देश भर में विस्तार है, जबकि वामपंथी दलों का एक से ज्यादा राज्यों में फैलाव है।

इनके अलावा अन्य सभी क्षेत्रीय दल हैं, जो सिर्फ एक प्रदेश तक ही सीमित है। इन दलों का नियंत्रण किसी एक व्यक्ति या किसी एक परिवार के हाथ में है और राष्ट्रीय राजनीति में उन नेताओं का कोई महत्व नहीं है। इसलिए ये सभी एक भी हो जायं, तो भारतीय जनता पार्टी को कितना नुकसान पहुंच सकता है, इसके बारे में दावे के साथ अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

विपक्षी एकता के पैरवीकारों में नीतीश कुमार सबसे आगे हैं। बिहार में महागठबंधन की सफलता के बाद वे पूरे देश में इसी तरह के गठबंधन का प्रस्ताव रख रहे हैं। असम चुनाव के पहले भी उन्होंने इसी तरह का प्रस्ताव रखा था और उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले भी उन्होंने कुछ वैसा ही कहा था। दोनों बार उनकी अनसुनी कर दी गई थी। नतीजन भारतीय जनता पार्टी की जीत दोनों चुनाव में हो गई।

अब नीतीश ने राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ महागठबंधन की बात पर जोर देना शुरू किया है। उन्होंने दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह में राहुल गांधी से कहा कि वे राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता स्थापित करने के लिए पहल शुरू करें।

बजट सत्र के दौरान राहुल गांधी ने सीताराम येचुरी और डी राजा जैसे वामपंथी नेताओं से भाजपा के खिलाफ एक होने से संबंधित बातचीत की। सोनिया गांधी भी अपने स्वास्थ्य परीक्षण के बाद अब विदेश से भारत लौट आई है और अपनी पार्टी के नेताओं से मिलकर भाजपा के विस्तार को रोकने के मसले पर बातचीत की।

विपक्षी एकता का एक उदाहरण ईवीएम के मसले पर देखने को मिला। 13 पार्टियों ने मिलकर मुख्य निर्वाचन आयुक्त और देश के राष्ट्रपति से मुलाकात की और ईवीएम के साथ छेड़छाड़ कर चुनाव को प्रभावित करने के मसले को उठाया।

विपक्षी एकता की दिशा में मायावती एक बयान को आशा भरी निगाहों से देखा जा रहा है। उन्होंने कहा था कि भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए वह उसकी विरोधी पार्टियों के साथ तालमेल बैठाने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की रक्षा करना जरूरी है।

अखिलेश यादव भी भाजपा के खिलाफ मायावती से हाथ मिलाने को तैयार दिख रहे है, हालांकि मुलायम सिह यादव इसका विरोध कर रहे हैं। पर समाजवादी पार्टी की कमान अब पूरी तरह से अखिलेश यादव के पास है, इसलिए मुलायम सिंह यादव अब शायद ही अखिलेश पर अंकुश लगा सकते हैं।

बहुत जल्द ही राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव होने वाला है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी की स्थिति अभी बहुत मजबूत है और उसकी पसंद के उम्मीदवार की जीत निश्चित है, पर फिर भी विपक्ष अपना साझा उम्मीदवार देकर अपनी एकता का प्रदर्शन तो कर ही सकता है। (संवाद)