कहते हैं कि 8 विधायक फिर भी चिनम्मा का पक्ष ले रहे थे, लेकिन चिनम्मा के भतीजे दिनकरण द्वारा पार्टी से दूरी बनाने की बात करने के बाद अब वे 8 विधायक भी चिनम्मा विरोधी खेमे से जुड़े रहने के लिए बाध्य हैं। शशिकला खुद जेल में हैं। आने वाले कुछ वर्षों तक वे जेल में ही रहेंगी। जाहिर है, उनके पास अब कुछ करने के लिए रह नहीं गया है। यदि वह ओ पन्नीरसेल्वम को हटाकर खुद मुख्यमंत्री बनने की कोशिश नहीं करती और सजा होने के बाद जेल चली जातीं, तो उनका सम्मान बचा रहता और शायद पन्नीरसेल्वम उनके प्रति सदा आभारी भी बने रहते, लेकिन जेल जाने के पहले उन्होंने अपनी जो राजनैतिक महत्वाकांक्षा दिखाई और जिस तरह विधायकों को एक रिजाॅर्ट में रखकर अपनी पसंद का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बना दिया, उसके कारण अब उनके साथ किया गया व्यवहार उनकी दुर्गति बनकर दुनिया के सामने आ रहा है।
आखिर ऐसा क्या हो गया पिछले दिनों कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री सहित पूरा खेमा एकाएक शशिकला के खिलाफ हो गया और उन्हें पार्टी से ही बाहर कर डाला? यह खेमा पन्नीरसेल्वम और पूरे विपक्ष के विरोध के बावजूद विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने में सफल हो गया था और उसके बहुमत को लेकर भी कोई संशय नहीं था। पार्टी का नाम और सिंबाॅल के लिए निर्वाचन आयोग में मामला जरूर चल रहा था, लेकिन इस तरह के विभाजन पार्टियों में होते रहे हैं और विभाजित गुटों को नये नाम और नये चुनाव चिन्ह मिलते रहे हैं। इसलिए यह बात पचा पाना मुश्किल है कि चुनाव चिन्ह को फ्रीज होने से बचाने के लिए अन्नाडीएमके के दोनों गुट एक दूसरे में विलय के लिए तैयार हो गए और शशिकला और उनके परिवार को ही इसके लिए पार्टी से बाहर कर डाला।

दरअसल तमिलनाडु के ताजा राजनैतिक घटनाक्रम पर केन्द्र सरकार की एजेंसियों की सक्रियता का असर पड़ रहा है। आरके नगर विधानसभा क्षेत्र, जहां की विधायक जयललिता थीं, में हो रहे उपचुनाव के दौरान आयकर विभाग ने छापेमारी कर करीब 130 करोड़ रुपये के नोट जब्त किए थे। 85 करोड़ रुपये के नोट तो सिर्फ स्वास्थ्यमंत्री भास्कर के घर पर छापा मारने के बाद मिले थे। वहां कुछ कागजात भी जब्त हुए थे, जिससे पांच अन्य मंत्रियों का कच्चा चिट्ठा खुलता था। उसके बाद अन्य बहुत जगह छापेमारी हुई। मुख्यमंत्री से जुड़े लोगों के ठिकानों पर भी छापामारी हुई है। कहते हैं कि खुद मुख्यमंत्री भी जांच एजेंसियों के घेरे में आ चुके हैं। और इधर जयललिता के भतीजे उपमहासिचव दिनकरण पर भी निर्वाचन आयोग को रिश्वत देने की कोशिश करने के मामले में दिल्ली पुलिस तलाश कर रही है।

यानी आरके नगर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव रद्द होने के साथ साथ निर्वाचन आयोग और केन्द्रीय एजेंसियां के अलावा दिल्ली पुलिस की सक्रियता ने तमिलनाडु के मंत्रियों में खलबली मचा दी और व अब अपने आपको बचाने के लिए हाथ पैर मार रहे हैं। वे किसी ऐसे मसीहा की तलाश में हैं, जो उनके काले कारनामों पर से पर्दा उठने को रोक सकें। उपचुनाव में वे लोग दिनकरण को जीत दिलाने के लिए पैसा पानी की तरह बहा रहे थे। चार चार हजार रुपये में एक एक वोट खरीद रहे थे। लेकिन समय का पहिया कुछ इस तरह घुमा कि अब वे दिनकरण से ही पिंड छुड़ा चुके हैं।

और खुद दिनकरण कह रहे हैं कि तमिलनाडु के मंत्री डरे हुए हैं और डरकर ही उन्होंने उन्हें (दिनकरण को) पार्टी से निकाल दिया। उन्होंने साफ साफ नहीं बताया है, लेकिन यह कोई भी समझ सकता है कि यह डर केन्द्रीय एजेंसियों का है, जो भ्रष्ट मंत्रियों के काले धन पर छापा मार रही है और मुकदमा होने पर ये भ्रष्ट मंत्री भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत उसी तरह जेल की हवा खा सकते हैं, जिस तरह उनकी नेता शशिकला खा रही है और जयललिता भी उसी तरह के मुकदमे में जेल जा चुकी हैं और सुप्रीम कोर्ट से मरने के बावजूद दोषी करार दी गई हैं।

अब केन्द्रीय एजेंसियों से बचने के लिए शशिकला को तो उन्होंने निकाल दिया है और दिनकरण भी बाहर किए जा चुके हैं, लेकिन इससे उनकी समस्या का समाधान अभी नही हो पा रहा है। इसका फायदा उठाते हुए ओ पन्नीरसेल्वम मुख्यमंत्री का पद और पार्टी का नेतृत्व पर दावा कर रहे हैं। मुख्यमंत्री पलानीसामी अपना पद छोड़ना नहीं चाहते हैं, लेकिन यदि वह फंसते हुए दिखाई देते हैं और उन्हें लगता है कि ओ पन्नीरसेल्वम उनको बचा लेंगे, तो वे मुख्यमंत्री का पद भी छोड़ सकते हैं। लेकिन क्या ओ पन्नीरसेल्वम इस बात की गारंटी दे सकते हैं कि केन्द्रीय एजेंसियों की जांच से वे भ्रष्ट मंत्रियो और पार्टी के अन्य नेताओं को बचा लेंगे?

इस बीच मुख्यमंत्री पलानीसामी कोशिश करेंगे कि वे खुद केन्द्र से अपना रिश्ता अच्छा कर लें और उसकी एजेंसियों के प्रकोप से बच जाएं। इसके लिए वे थंबीदुराई जैसे अपने नेताओं का उपयोग करेगे, जो लंबे समय से दिल्ली की राजनीति करते रहे हैं। लेकिन क्या वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विश्वास हासिल कर पाएंगे?

सत्तारूढ़ भाजपा के लिए अन्नाडीएमके बहुत महत्वपूर्ण है। इसका कारण यह है कि लोकसभा में इसके तीन दर्जन से ज्यादा सांसद हैं और राज्यसभा में भी एक दर्जन से ज्यादा सांसद है। कानून बनाने के लिए उन सांसदों के समर्थन की जरूरत केन्द्र सरकार को पड़ती है। राष्ट्रपति चुनाव में भी उनका वोट महत्वपूर्ण होगा। जाहिर है, तमिलनाडु के सत्तारूढ़ दल को एक साथ रखते हुए उसका समर्थन लेना चाहेंगी। इसलिए यह सारा खेल चल रहा है। (संवाद)