हान आबादी के यहां लगातार बसाए जाने के कारण मुस्लिम आबादी का कुल जनसंख्या में अनुपात लगातार घटना गया है। चीन के अधिकारियो के अनुसार हान विरोधी और अलगाववादी प्रवृत्तियों में 1990 के दशक से यहां काफी वृद्धि हुई है। हान लोगों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं भी हुई हैं। प्रतिरोध में स्थानीय स्तर पर लोगों ने सेल्फ डिफेंस ग्रुप भी बनाए हैं। चीन की सेना और वहां के सुरक्षा बल वहां की हिंसक घटनाओं को सख्ती से रोकते हैं और वहां की घटनाओं की चर्चा दुनिया के अन्य देशों में ही नहीं, बल्कि चीन के अन्य क्षेत्रो में भी बहुत कम होती है। लोग वहां के बारे में उतना ही जानते हैं, जितना चीन के अधिकारी उन्हें बताते हैं।

शिंझिंयांग प्रांत छह मुस्लिम देशों की सीमा से घिरा हुआ है। वे देश हैं- पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, किर्गिस्तान, कजाखस्तान और उज्वेकिस्तान। बौद्ध मंगोलिया भी इसकी सीमा पर है और सेक्युलर रूस और भारत भी चीन के इस पश्चिमी प्रांत की सीमा से सटा हुआ है। लेकिन इन देशों को यह पता भी नहीं है कि चीन किस तरह अपने इस सबसे बड़े प्रांत की उइगर मुस्लिम उग्रवाद की समस्या को हल कर रहा है।

अभी कुछ दिन पहले ही खबर आई कि चीन ने इस प्रांत में मुसलमानों को इस्लाम, कुरान, जिहाद जैसे 12 नामों को इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी। यानी किसी व्यक्ति को ये नाम नहीं दिए जा सकते और यदि किसी बच्चे को उनमें से कोई नाम दिया गया, तो उसका दाखिला किसी विद्यालय में होगा ही नहीं। उसके पहले वहां के मुसलमानों पर भी एक ही बच्चा पैदा करने का दबाव था। अब यह निर्णय पूरे चीन के लिए बदल दिया गया है और बदला हुआ निर्णय अब मुसलमानोे पर भी लागू होगा।

वहां सुरक्षा बल अपनी ताकत का लगातार प्रदर्शन करते रहते हैं और जब कभी भी जरूरत पड़ती है अलगाववादियों को कुचलने में किसी तरह की कंजूसी नहीं करते। सच तो यह है कि चीन ने पाकिस्तान के साथ चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा बनाने की जो संधि की है, उसका एक उद्देश्य शिंझिंयाग के मुस्लिम उग्रवाद से लड़ना भी है। इसका कारण यह है कि कश्मीर की तरह वहां के जेहादी हलचलों के पीछे भी पास्तिान के इस्लामी उग्रवादियों का हाथ है।

शिंझिंयांग की तरह भारत के कश्मीर प्रांत में भी मुस्लिम अलगावादी सक्रिय हैं, लेकिन जब हम इस अलगावाद के खिलाफ भारत सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों की तुलना चीन द्वारा शिंझिंयाग में उठाए जा रहे कदमों से करते हैं, तो पाते हैं कि भारत द्वारा उठाया गया कदम बेहद कमजोर है। शिझिंयांग की तुलना में कश्मीर की मुस्लिम आबादी कम है। जम्मू और कश्मीर प्रांत में कुल सवा करोड़ लोग रहते हैं और उनमें मुस्लिम आबादी करीब 86 लाख है, जबकि शिंझिंयांग में सवा करोड़ मुसलमान रहते हैं।

सवाल उठता है कि जब चीन शिंझिंयांग में गैरमुस्लिम आबादी को दूसरे हिस्से से लाकर बसा सकता है, तो भारत कश्मीर में यही काम क्यों नहीं कर सकता? ऐसा करने की बजाय भारत सरकार उलटे कश्मीर के लोगों को उनकी जमीन के अधिकार की सुरक्षा की गारंटी देती है। यह गलती नेहरू के समय से ही की जा रही है। यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि आखिर नेहरू ने उस तरह का निर्णय क्यों किया, जिसके कारण कश्मीर में दूसरे इलाके के लोग जमीन नहीं खरीद सकते। वहां भारत के सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार भी इसीलिए नहीं हो सका, क्योंकि वहां की जमीन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के द्वारा भी नहीं खरीदी जा सकती थी।

अब भी समय है। भारत को चीन से सबक लेकर उसकी रणनीति का इस्तेमाल कश्मीर की समस्या को हल करने के लिए करना चाहिए। (संवाद)