सर्वदलीय बैठक के कुछ दिन पहले ही दिल्ली विधानसभा का सत्र बुलाकर दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने यह साबित करने की कोशिश की कि मतदान मशीनों में छेड़छाड़ कर चुनावी नतीजों को प्रभावित किया जा सकता है। एक विधायक सौरभ भारद्वाज ने एक मतदान मशीन को छेड़कर दिखा दिया कि कैसे उसे प्रभावित कर नतीजांे को बदला जा सकता है।
पहले तो निर्वाचन आयोग को लगा कि उसके भंडार में रखे गए किसी ईवीएम मशीन को चुरा लिया गया है और तत्काल सूत्रों के हवाले से मीडिया में खबर आ गई कि आयोग मतदान मशीन की चोरी का मुकदमा आम आदमी पार्टी के उस विधायक पर कर सकता है। लेकिन बाद मे पता चला कि वह मशीन चुनाव आयोग की नहीं थी, बल्कि उसी तरह की मशीन इंजीनियरो ने तैयार की थी और उससे यह साबित किया जा रहा था कि मशीनों में छेड़छाड़ संभव है।
यह जानकर निर्वाचन आयोग ने राहत की सांस ली कि वह चुनावी मतदान मशीन उसकी नहीं थी और उसने फिर एक बार दावे से कहा कि उसकी मशीन से घपला किया ही नहीं जा सकता। सूत्रों के हवाले से निर्वाचन आयोग खबर प्लांट करवा रहा था कि सर्वदलीय बैठक में वह अपनी मशीन देकर उससे छेड़छाड़ करने की चुनौती दे सकता है। सर्वदलीय बैठक हुई और उसके बाद मुख्य निर्वाचन आयुक्त के हवाले से मीडिया में यह खबर उभरी कि निर्वाचन आयोग रविवार को सभी लोगों को अपने दफ्तर में आमंत्रित करेगा और यह खुली चुनौती देगा कि उसके साथ कोई छेड़छाड़ करके दिखा दे। उसी बैठक के बाद दिल्ली के उपमुख्यमंत्री सिसोदिया यह कहते दिखाई दिए कि उनकी पार्टी यह साबित कर देगी कि इन मशीनों के द्वारा घपला किया जा सकता है।
लोगों को लगा कि इस विवाद से पटाक्षेप हो जाएगा। यह विवाद बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है और इसके कारण देश मे ही नहीं, बल्कि विदेशों मंे भी भारत के निर्वाचन आयोग की प्रतिष्ठा गिर रही है। निर्वाचन आयोग की ही नहीं, बल्कि सरकार की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इसलिए इस विवाद को जल्द से जल्द समाप्त किया जाना चाहिए। देश की जनता यही चाहेगी कि निर्वाचन आयोग सही साबित हो और आरोप लगाने वाले गलत साबित हों और भारत के निर्वाचन आयोग की प्रतिष्ठा दुनिया भर में बहाल रहे।
लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि निर्वाचन आयोग भाग खड़ा हुआ। रविवार को मशीनों को गलत साबित करने की चुनौती नहीं पेश की गई। यानी यह विवाद अभी समाप्त होता नहीं दिखाई दे रहा है और यदि यह विवाद जल्दी समाप्त नहीं हो रहा है, तो इसके लिए सिर्फ और सिर्फ निर्वाचन आयोग जिम्मेदार है, क्योंकि वह दावा तो कर रहा है लेकिन अपने दावे को सच करने के लिए विरोधियों के हाथों में मशीन देने के लिए तैयार ही नहीं है।
जब निर्वाचन आयोग विशेषज्ञों के हाथों में मशीन जांच के लिए देगा ही नहीं, तो फिर पता कैसे चलेगा कि आयोग का दावा सही है? सच कहा जाय, तो निर्वाचन आयोग को मशीन जांच के लिए उसी समय चुनौती के रूप में पेश कर देनी चाहिए थी, जब उस पर मायावती ने आरोप लगाया था। 5 राज्यों के चुनावी नतीजे आने के बाद सबसे पहले मायावती ने आरोप लगाया और उसके बाद बिहार के नेता लालू यादव ने उसे दुहराया। थोड़े समय के अंतराल के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भी मतदान मशीनों पर सवाल खड़े कर दिए।
मायावती और लालू यादव खुद मशीन की मांग नहीं कर रहे और वे यह भी दावा नहीं कर रहे हैं कि वे यह साबित कर देंगे कि मशीन से गड़बड़ी की जा सकती है। वे सिर्फ संदेह व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन केजरीवाल तो मशीन मांग रहे हैं, ताकि वे अपनी बातों को सही साबित कर दे। उन्होंने कहा कि उन्हें सिर्फ तीन दिनों के लिए मशीन दे दी जाय, वे अपनी बात सही और निर्वाचन आयोग की बात गलत साबित कर देगे।
उन्हें तीन दिन क्या तीन घंटों के लिए मशीन नहीं दी गई। उलटे मीडिया में खबर प्लांट कर दी गई कि 1 मई से 10 मई के बीच निर्वाचन आयोग सभी को खुली चुनौती देते हुए उन मशीनो को गलत साबित करने का मौका देगा। लेकिन वह खबर गलत साबित हुई और बाद में पता चला कि आयोग 12 मई को एक सर्वदलीय बैठक बुला रहा है, जिसमें मशीनों का मामला भी चर्चा का विषय होगा। बैठक के दौरान आयोग ने अपने दावे को दुहराया और यह चुनौती भी पेश कर दी कि कोई उसे गलत साबित करके दिखा दे। लेकिन चुनौती तक ही उसने अपने आपको सीमित कर रखा है।
तो क्या इसका मतलब यह है कि निर्वाचन आयोग खुद भी डरा हुआ है कि कहीं उन मशीनों को छेड़छाड़ करने में अरविंद केजरीवाल के लोग सफल तो नहीं हो जाएंगे? केजरीवाल के लोग सबसे महत्वपूर्ण बात अब यह कह रहे हैं कि उन मशीनों से छेड़छाड़ करने के लिए निर्वाचन आयोग या चुनाव कराने वाले लोगों की मदद की जरूरत भी नहीं है। मशीन को इस तरह छेड़ा जा सकता है कि निर्वाचन आयोग और उसकी मशीनरी को पता ही नहीं चलेगा कि लोग जिसे वोट डाल रहे हैं, वोट उनको नहीं, बल्कि किसी और को जा रहा है।
पता नहीं केजरीवाल और उनके लोगों के कहने में सच्चाई है या नहीं, लेकिन सिर्फ बयानबाजी से उन्हें गलत साबित नहीं किया जा सकता, बल्कि उनको मशीन देकर ही गलत साबित किया जा सकता है। इसलिए निर्वाचन आयोग को और समय बर्बाद नहीं करना चाहिए, बल्कि जल्द से जल्द चुनौती पेश कर देनी चाहिए। (संवाद)
ईवीएम का मसला: खुद संदेह को बढ़ावा दे रहा है निर्वाचन आयोग
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-05-15 11:33
पिछले 12 मई को भारत के निर्वाचन आयोग ने चुनाव सुधारों को लेकर एक सर्वदलीय बैठक का आयोजन किया। इस समय ईवीएम द्वारा चुनाव नतीजों को प्रभावित किया जाने का मुद्दा बहुत गर्म है। जाहिर है बैठक के दौरान यह मुद्दा सबसे ज्यादा गंभीरता से उठाया गया। जिस गंभीरता से यह मुद्दा उठाया जाता है, उतनी तत्परता के साथ निर्वाचन आयोग अपना बयान जारी कर कह देता है कि इन चुनावी मशीनों से छेड़छाड़ की ही नहीं जा सकती। अपनी यह बात निर्वाचन आयोग बहुत ही दृढता से करता है। लेकिन उसकी दृढ़ता आरोप लगाने वालों पर असर नहीं डालती और वे फिर उसे दुहरा देते हैं।