लोकतंत्र के बदले इस स्वरूप का खुला नजारा आज हर जगह यहां संसद से लेकर सड़क तक देखने को मिल रहा है। आज किसी भी जनप्रतिनिधि की वाणी पर कोई लगाम नहीं दिखता। संसद सत्र एवं विधानसभा सत्र के दौरान कब कौन सी यहां हरकत हो जाय, किस जनप्रतिनिधि का हाथ उठकर किसका गला पकड़ ले या कपड़ा फाड़ दे कह पाना मुश्किल हैं। सड़क से संसद तक व्याप्त जनप्रतिनिधियों की अलोकतांत्रिक हरकतंे से शायद ही कोई अनभिज्ञ हो। अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश विधानसभा सत्र के दौरान प्रारम्भ में ही जो परिदृृश्य उभर कर सामने आये , जहां विपक्ष द्वारा सभापति राज्यपाल पर कागज के गोले बनाकर फेंके गये, मुंह से सीट््ियों की आवाज निकाली गई, अभद्रता की सारी सीमाएं लांघ गई । इस तरह के हालात पूर्व में भी इसी विधान सभा में देखे गये जहां सभापति को अपने बचाव में मेज के नीचे छिपना पड़ा हो । इस तरह के अभद्र व्यवहार संसद से लेकर देश के विभिन्न राज्यों में भी देखे गये । जनप्रतिनिधयों द्वारा इस तरह के प्रदर्शित अभद्रता लोकतंत्र के किस स्वरुप को परिलक्षित कर रही है, विचार किया जाना चाहिए।
लोकतंत्र में अपराधिक प्रवृृति से जुड़े जनप्रतिनिधियों के प्रवेश के कारण ही इस तरह के हालात उभर रहे हैे। कहा भी गया है कि जैसा खाओं अन्न, वैसा हो मन । जिस विचार एवं आचरण के जनप्रतिनिधि संसद एवं विधानसभा में पहुंचेंगे , वैसे ही हालात पैदा होंगे। देश की हर व्यवस्था में अपना प्रभाव छोडें़गे। आपराधिक प्रवृृŸिा से जुड़े जनप्रतिनिधियों से अपराध मुक्त लोकतंत्र की उम्मीद की ही नहीं जा सकती। यही कारण है कि बार - बार सŸाा परिवर्तन के बावजूद भी अपराध जगत पर आज तक नियंत्रण नहीं हो पाया। अपराधिक प्रवृृŸिा से जुड़े जनप्रतिनिधि वर्तमान में सभी राजनीतिक दलों में अपना प्रभुत्व बनाये हुए है। जिनके कारण संसद एवं विधान सभा की मर्यादाएं बार बार भंग होती रहती है। भ्रष्टाचार, आतंकवाद, अपराध के पैमाने बढ़ते ही रहते है। देश में हर आने वाली सरकार अपराध मुक्त सम्राज्य स्थापित करने की बात तो करती हेै पर अपने बीच समाये अपराधिक प्रवृृŸिा से जुड़े जनप्रतिनिधियों को अलग करने की बात कभी नहीं करती। अपराधिक प्रवृृŸिा से जुड़े जनप्रतिनिधियों को साथ लेकर अपराध मुक्त व्यवस्था कैसे स्थापित की जा सकती है, यह एक विचारणीय पहलू है।
वर्तमान लोकतंत्र के स्वरूप पर एक नजर डालें। जहां जनप्रतिनिधि की काया ही बदल जाती रही है। सामान्य जीवन से राजसी ठाटबाट नजर आने लगता है। झोपड़ी की जगह महल खड़ा हो जाता है । इस तरह के कारामात कालेधन एवं अपराध जगत से जुड़ाव के चलते ही संभव है। वर्तमान लोकतंत्र में इस तरह का नजारा भी देखने को मिलता है कि जेल के भीतर बंद कैदी भी जनप्रतिनिधि बन जाता है। गंभीर आरोपित एवं घोटालों में जेल गया भी जनप्रतिनिधि बन जाता है। कालेधन एवं भ्रष्टाचार मिटाने की आवाज बुलंद करने वाला अवैध तरीके से धन संग्रह करने के जुगाड़ में जुट जाता है । इस तरह के उलट फेर के गणित में समाया हमारा लोकतंत्र कैसे अपराध मुक्त समाज स्थापित कर पायेगा, विचारणीय पहलू हैं।
इस तरह के हालातों के बीच से गुजरता हमारा लोकतंत्र निश्चित रूप से विकृृत हो चुका है, जिसके कारण आज देश गंभीर संकट के बीच उलझ रहा है। पहले विदेशियों ने जी भर कर इस देश को लूटा और आज अपने ही इस देश को लूट रहे है । देश में व्याप्त भ्रष्ट व्यवस्था इसका साक्षात्् उदाहरण है, जहां अवैध रुप से लेन - देन का कारोबार विशाल पैमाने पर फैला हुआ है । लोकतंत्र का कोई भी स्तम्भ इस तरह के परिवेश से आज अछूता नहीं है। आज आंतकवाद, नक्सलवाद, आरक्षण की धधकती स्वार्थमयी आग, चारों ओर व्याप्त भ्रष्टाचार ने लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल दी है ,जिसे पनाह देश के ही भीतर मिल रहा है। आज इस तरह के परिवेश से जुड़ा व्यक्ति खुलेआम घूम रहा है और हमारा कानून उसका कुछ भी नहीं विगाड़ रहा है। इस तरह के परिवेश से निजात पाने के लिये वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुधार किये जाने की आज महŸाी आवश्यकता है। देश को नेतृृत्व देने वाले जनप्रतिनिधियों की शिक्षा, आयु एवं चरित्र के मामले में स्पष्ट राय एवं एक नियमावली तय की जानी चाहिए। नेतृृत्व करने वाला का ज्ञान, अनुभव, आचरण सामान्य से ऊपर होना चाहिए। अपराधिक मामलों से जुड़े व्यक्तियों को जनप्रतिनिधि परिवेश से दूर रखा जाना चाहिए। जनहित व राष्ट्रहित में अपराध मुक्त लोकतंत्र का होना जरूरी! इसके लिये जरूरी है अपराधिक मसले से जुड़े लोगों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से अलग रखा जाय। राजनीतिक दल अपराधिक प्रवृृति से जुड़े बाहुबलियों /माफियाओं से अपने आप को अलग रखें तभी अपराध मुक्त भारत होने का सपना साकार हो सकेगा। (संवाद)
जनहित व राष्ट्रहित में अपराध मुक्त लोकतंत्र का होना जरूरी
भरत मिश्र प्राची - 2017-05-24 12:48
स्वतंत्रता उपरान्त स्थापित लोकतंत्र में धीरे - धीरे अपराध जगत ने अपनी जगह बना ली जिससे लोकतंत्र का स्वरूप ही बदल गया । इस बदले स्वरुप ने लोकतंत्र की काया को ही विकृृत कर डाला, जिसके कारण आज संसद एवं विधान सभा की मर्यादाएं भंग होती नजर आने लगी है। जनप्रतिनिधियों द्वारा विरोध प्रदर्शन के तौर तरीके हुड़दंगबाजी के स्वरुप में बदल गये है। संसद एवं विधानसभा में गाली गलौज से लेकर जुते चप्पल चलाना, सामने लगे माईक से प्रहार करना आम बात हो गई है। सभा अध्यक्ष की गरिमा का तो कोई ख्याल ही नहीं। उसके बार - बार मना करने के बावजूद भी चीखना, चिल्लाना, अभद्र व्यवहार करना विरोध प्रकट करने के तेवर में समा चुका है। लोकतंत्र में बाहुबलियों के प्रभाव के कारण इस तरह के हालात उभर चले है। आज देश का कोई भी राजनैतिक दल इस तरह के परिवेश से परे नहीं है।