टीवी न्यूज चैनल अपनीे आदत के अनुरूप जब योगी का जयकारा लगा रहा था, उसी समय योगी की पुलिस की पिटाई की खबरें और विडियो सोशल मीडिया में आ रहा था। पुलिस को पीटने वालों में ज्यादातार लोग वे थे, जो किसी न किसी रूप में सत्तारूढ़ भाजपा से जुड़े थे। पीटने वालों पर किसी तरह की कार्रवाई हो रही थी, इसकी खबर सोशल मीडिया पर आ ही नहीं रही थी और टीवी समाचार चैनल और अखबारांे को तो योगी की आरती उतारने से फुर्सत ही नहीं थी।

लेकिन जब प्रदेश में पुलिस की ही पिटाई होने लगे और वर्दी पहने हुए पुलिस अधिकारी पिटाई करने वालों पर हाथ तक नहीं उठाए, तो अंदाज लगाया जा सकता है कि पुलिस का मनोबल कितना गिरा हुआ है। और जब पुलिस का ही मनोबल गिर जाएगा, तो फिर वे अपराध या सामाजिक अशांति को किस हद तक रो पाएंगे- इसके बारे में कोई भी अनुमान लगा सकता है। उत्तर प्रदेश पहले से ही कानून व्यवस्था खराब होने के लिए कुख्यात रहा है और योगी सरकार के गठन के साथ ही पुलिस पर होने वाले हमले आने वाले दिनों के खौफनाक दृश्य की कहानी बयां कर रहे थे।

स्हारनपुर का जातीय संघर्ष पुलिस के मनोबल को तोड़ने का ही नतीजा है। पुलिस और प्रशासन को जब पता ही नहीं चले कि सरकार का राजनैतिक नेतृत्व क्या चाहता है, तो वह कार्रवाई करने में दिग्भ्रमित होगा ही। एक तरफ मुख्यमंत्री प्रदेश के अपराधियों को प्रदेश छोड़ने को कह रहे हों और दूसरी ओर सत्तारूढ़ दल के लोग पुलिस पर ही हमले करे और उसका डर अपराधियों के दिमाग से समाप्त करने का काम करें, तो फिर बेहतर कानून व्यवस्था की उम्मीद कोई कैसे कर सकता है।

सहारनपुर की वर्तमान जातीय हिंसा की पृष्ठभूमि तो उसी समय तैयार कर दी गई थी, जब मुख्यमंत्री योगी ने जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक लव कुमार का तबादला कर दिया था। तबादले के ठीक पहले लव कुमार के घर पर कथित तौर पर भाजपा के स्थानीय सांसद के नेतृत्व में हमला हुआ था और उनके परिवार के सदस्यों की जान के लाले पड़ गए थे। हमला करने वाले लव कुमार से नाराज थे, क्योंकि बिना इजाजत के अंबेडकर की शोभा यात्रा निकालने पर उन्होंने रोक लगा दी थी। रोक कानून के अनुसार ही था और दंगे की आशंका के कारण वैसा किया गया था, लेकिन पुलिस खुद दंगे की शिकार हो गई और आतताइयों ने जिला पुलिस प्रमुख के घर को भी अपने दंगे का शिकार बना दिया।

कायदे से सांसद के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए थी, लेकिन उलटे जिला पुलिस कप्तान लव कुमार को ही वहां से हटा दिया गया। इस तरह के निर्णय को पुलिस महकमे पर कैसा असर पड़ा होगा, इसे कोई भी समझ सकता है। जिस दंगे को रोकने के लिए लव कुमार ने हिंसा झेली और तबादला का सामना किया, उसका मामला तो वहीं थम गया, लेकिन जिले के एक अन्य गांव शब्बीरपुर में राणा प्रताप की शोभा यात्रा को लेकर दलितों और राजपूतों में ठन गई। एक राजपूत मारे गए और दलितों के दर्जनांे घर जला दिए गए।

लव कुमार के मामले मे ंजले हाथ के कारण पुलिस ने प्रोफेशनल तरीके से कार्रवाई नहीं की। मुख्यमंत्री राजपूत हैं, इसलिए पुलिस ने राजपूतों के खिलाफ उचित कार्रवाई नहीं की जबकि दलितों के खिलाफ भारी कार्रवाई की। जिनके घर जले, उन्हीें पर पुलिस की गाज गिर रही थी। जाहिर है, दलितों में आक्रोश भड़का और उन्हें लगा कि योगी अपनी जातिवालों को बचा रहे हैं। वैसे भी सोशल मीडिया में खबरें आ रही थीं कि योगी अपनी जाति के अधिकारियों को उन जगहों पर भारी संख्या में नियुक्त कर रहे हैं, जिन पदों से लोगों का सीधा साबका होता है और जहां से कानून व्यवस्था को संचालित किया जाता है।

हताश दलितों ने सहारनपुर मे पंचायत करने का ऐलान कर दिया और प्रशासन ने उसकी इजाजत नहीं दी। इससे मामला और भड़का और फिर सहारनपुर ही जलने लग गया। निजी और सार्वजनिक संपत्ति का भारी नुकसान हुआ और पुलिस पर भी दलितों के हमले हुए। जब पुलिस और वर्दी का डर लोगों पर से हट जाता है, तो फिर पुलिस खुद दंगे का सबसे बड़ा शिकार हो जाती हैं। सहारनपुर मे लगभग वही सब हुआ। जाहिर है, दलितों पर और मुकदमे हुए। उनका गुस्सा और बढ़ा।

फिर दिल्ली के जंतर मंतर पर हजारों दलितों ने भीम आर्मी के नेतृत्व में प्रदर्शन किया और फिर दलित की अंदरूनी राजनीति तेज हो गई। चार चुनावांे से हार का सामना कर रही मायावती को लगा कि कहीं भीम आर्मी उनकी बहुजन समाज पार्टी पर भारी न पड़ जाए। इसलिए मायावती ने भी शब्बीरपुर का रुख किया। वहां उन्हें सुनने के लिए आसपास के दलित भी इकट्ठे होने लगे और एकत्रित दलितों ने गांव के ठाकुरों के घरों पर हमला करना शुरू कर दिया। फिर मायावती आईं और भाईचारे का संदेश देकर चली गईं।

लेकिन माया का भाषण सुनकर लौट रहे दलितों पर हमले होने लगे। आश्चर्य की बात है कि पुलिस न तो ठाकुरों पर होने वाले हमलों को रोक पाई और न ही दलितों पर होने वाले संभावित हमलों को समझ पाईं। ऐसा लगा जैसे पूरा प्रशासन ही लकवाग्रस्त था। लेकिन वैसी स्थिति पैदा क्यों हुई? क्या इसके लिए वे पुलिस और प्रशासनिक अधिकारीगण ही जिम्मेदार थे, जिन्हें निलंबित कर दिया गया या खुद मुख्यमंत्री योगी? सच कहा जाय तो योगी अपनी सरकार को सही नेतृत्व देने में विफल साबित हुए हैं। वे भाषणबाजी तो खूब कर रहे हैं, लेकिन न तो अपराधियों को सही संदेश दे पा रहे हैं और न ही प्रशासन और पुलिस अधिकारियों को। (संवाद)