वैसे यह भी सच है कि कपिल मिश्र के आरोपों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है और लोगों में यह राय बन रही है कि मंत्री पद से हटाए जाने के कारण कपिल मिश्र बौखला गए हैं और प्रतिशोध के लिए वे ऐसे आरोप लगा रहे हैं, जिनको साबित करने के लिए उनके पास कोई सबूत ही नहीं है। इसमें भी किसी को शक नहीं कि कपिल मिश्र का इस्तेमाल भारतीय जनता पार्टी कर रही है और मीडिया की सहायता से उनके आरोपों को जरूरत से ज्यादा महत्वपूर्ण बनाने की कोशिश की जा रही है।

दिल्ली के नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी को मात्र 26 फीसदी मत मिले, जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 54 फीसदी मत मिले थे। जाहिर है, मत प्रतिशत अब आधे से भी कम हो गए हैं। मत प्रतिशत कम होने के बहुत कारण हैं और उनमें से एक है अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता का कम हो जाना। दरअसल यह सबसे बड़ा कारण है।

चुनाव के दौरान देखा गया कि आम आदमी पार्टी का प्रचार काफी कमजोर था। उम्मीदवार अपने स्तर पर और अपने संसाधनों से प्रचार करते दिखाई पड़े और संगठन की ओर से उन्हें प्रचार का समर्थन नहीं मिल पा रहा था। इसका एक कारण संगठन का कमजोर हो जाना बताया जा रहा है।

संगठन के कमजोर होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि सत्ता से जुड़े और अरविंद केजरीवाल से नजदीकी दिखाने वाले पार्टी नेता बहुत महत्वपूर्ण हो गए हैं और आम आदमी पार्टी के जो कार्यकत्र्ता न तो सत्ता में हैं और न ही जिनकी पहुंच केजरीवाल या सिसोदिया तक है, उनमें मायूसी है और इस चुनाव में उन्होंने उस तरह से प्रचार नहीं किया, जिस तरह से पहले किया करते थे। सच तो यह है कि इस बार पार्टी के अनेक नेता प्रचार के लिए निकले ही नहीं। खुद अरविंद केजरीवाल ने भी कम आपेक्षिक रूप से कम सभाएं कीं।

नेताओं और कार्यकत्र्ताओं की मायूसी के कारण पार्टी राजनैतिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला नहीं कर पाई। केजरीवाल की लोकप्रियता का ग्राफ ऊंचा रखने में भी उन नेताओं और कार्यकत्र्ताओं का हाथ हुआ करता था, जो मायूस होकर बैठे हुए थे या दूसरी पार्टियों की ओर से जुड़ गए थे।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी चार आम चुनाव का सामना कर चुकी है। नगर निगम के चुनाव में वह चैथी बार दिल्ली के मतदाताओं का सामना कर रही थी। पहले हुए चुनावों में उम्मीदवार गौण थे और मतदाता सिर्फ तीन ही चीज को जानते थे। उन्हें केजरीवाल के नाम का पता होता था। वे आम आदमी पार्टी भी जानते थे और उसके चुनाव चिन्ह झाड़ू से भी वे परिचित थे। कौन उम्मीदवार मैदान में है, इससे उनको मतलब नहीं होता था।

पर पहली बार केजरीवाल, पार्टी और चुनाव चिन्ह गौण होता दिखाई दे रहा था और उम्मीदवार अपनी पहचान पर चुनाव लड़ रहे थे। अपनी ताकत से उन्हें जो मत मिल सकते थे, उन्होंने प्राप्त किए और पार्टी के कारण जो मत मिल सकता था, उनके एक हिस्से से वे वंचित हो गए।

वैसे दो वार्ड में हुए चुनाव में एक में जीत हासिल कर आम आदमी पार्टी संतोष कर सकती है कि उसे समाप्त हो जाने की भविष्यवाणी करने वाले गलत साबित हो गए हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी का फिर से हो रहा उभार केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के भविष्य के लिए ठीक नहीं है। गौरतलब हो कि दो वार्डों में से एक वार्ड पर कांग्रेस भी जीती है। जिस वार्ड से आम आदमी पार्टी का उम्मीदवार जीता है, वहां भी कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी रही, जबकि जहां कांग्रेस जीती वहां आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे। जाहिर है, कांग्रेस का प्रदर्शन आम आदमी पार्टी से भी बेहतर रहा, जबकि भारतीय जनता पार्टी का बहुत बुरा हाल हुआ। एक वार्ड से उसके उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई, जबकि एक अन्य वार्ड में उसका उम्मीदवार लगभग तीन हजार मतों से हारा।

जाहिर है अब दिल्ली की राजनैतिक तिकोनी हो गई है। कपिल मिश्र के हमले को तो केजरीवाल ने चुप होकर झेल लिया है, लेकिन लोगों के बीच गिरती लोकप्रियता को रोकने के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया, तो उनके राजनैतिक भविष्य पर सवालिया निशान लग सकता है।(संवाद)