कश्मीर की तीन पीढ़ियों ने आतंकवाद देखा है। वहां के अधिकांश बच्चों ने अपना बचपना खोया है और वे एक ऐसे माहौल में रह रहे हैं जहां डर और हताशा है। यही कारण है कि अनेक बुरहान वानी पैदा हो रहे हैं। आज उन्हें पत्थरबाज होने पर गर्व है और उनमें से अधिकांश मरने को भी तैयार हैं। महिलाएं और स्कूली बच्चे भी सड़कों पर निकल रहे हैं।
आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? पहला कारण तो यह है कि पीडीपी और बीजेपी की गठबंधन सरकार अभी भी वहां जम नहीं पाई है, जबकि उनके गठन के ढाई साल बीत चुके हैं। राॅ के पूर्व प्रमुख ए एस दौलत ने एक इंटरव्यू में कहा है कि अभी वहां जो हो रहा है, वह 1990 से अलग है। इसकी शुरुआत 2014 में हुई है। भाजपा उस चुनाव में 44 सीटें हासिल करने के मिशन पर थी। उसे मिली 25 सीटें। पीडीपी 35 सीटे पाने का सपना देख रही थी। उसे मिली 28 सीटें। मुफ्ती मोहम्मद के पास भाजपा से गठबंधन कर सरकार बनाने के अलावा कोई दूसरा अन्य रास्ता नहीं था।
लेकिन गठबंधन काम नहीं कर रहा था। मुफ्ती सईद के बाद महबूबा मुफ्ती की सरकार बनी। महबूबा के इरादे नेक थे, लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में वे कुछ कर पाने में सफल नहीं हो रही हैं। पार्टी के अंदर और बाहर उनके सामने अनेक समस्याएं हैं। उनके सामने एक चुनौती पार्टी को एक रखने की है और दूसरी चुनौती भाजपा के साथ तालमेल बैठाकर जमीनी स्तर पर काम करने की है। लेकिन यह हुआ नहीं।
बुरहान बानी की सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मौत पिछले 7 जुलाई को हुई थी। उस मौत के परिणामो का सामना करने में केन्द्र और राज्य सरकारें विफल रहीं। अब अनेक बुरहानी पैदा हो गए हैं। हताश युवकों को मनाने में सरकार विफल रही। पाकिस्तान इसका लाभ उठा रहा है।
लोग उम्मीद कर रहे थे कि जाड़े के महीनों में स्थिति शांत हो जाएगी, क्योंकि उस समय भारी बर्फबारी होती है। लेकिन आतंकवादी गतिविधियों मे इस दौरान और इजाफा हुआ। सबसे ज्यादा गंभीर बात यह है कि अब स्थानीय लोगों के बीच से ही आतंकवादी निकलने लगे हैं और वे सुरक्षा बलो से टकराव कर रहे हैं। एक और गंभीर बात यह भी है कि जब सुरक्षा बल आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं, तो लोग वहां आकर हस्तक्षेप करते हैं। इसके कारण सुरक्षा बलांे की समस्या और भी बढ़ जाती है, क्योंकि वे हथियारहीन लोगों पर गोली नहीं चला सकते।
तो अब समाधान क्या है? अभी तो भविष्य बहुत खराब लगता है, यदि किसी नये तरीके से इस पर विचार नहीं किया गया। 1948 में सरकार वल्लभभाई पटेल ने कहा था, ‘‘कुछ लोग सोचते हैं कि मुस्लिम बहुल राज्य होने के कारण कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए। उन्हें आश्चर्य होता है कि वह हमारे साथ क्यों है? उमतेा जवाब सीधा है और वह यह है कि कश्मीर में हम इसलिए हैं, क्योंकि कश्मीर के लोग चाहते हैं कि हम वहां रहें।’’
अभी महबूबा मुफ्ती और भारतीय जनता पार्टी मे कश्मीर समस्या के समाधान को लेकर विरोधाभासी रूख है। महबूबा बातचीत से समस्या का समाधान निकालन चाहती हैं, जबकि बीजेपी ताकत का इस्तेमाल कर उसे हल करना चाहती है। केन्द्र सरकार पाकिस्तान के साथ किसी तरह की बातचीत नहीं चलाना चाहती है और वह कहती है कि पहले वह कश्मीर में हस्तक्षेप करना बंद करे।
कश्मीर के अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि कश्मीर का समस्या राजनैतिक तरीके से ही निकाला जा सकता है। फारूक अब्दुल्ला का भी यही मानना है। फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस कश्मीर की वर्तमान बदहाल समस्या के लिए केन्द्र और प्रदेश सरकार को दोष दे रही है।
यह सच है कि कश्मीर समस्या का हल आसान नहीं है, लेकिन उपलब्घ विकल्पों को आजमाना चाहिए और राजनैतिक समाधान पाने की कोशिश करनी चाहिए। (संवाद)
कश्मीर समस्या का राजनैतिक समाधान ढूंढ़ना चाहिए
हिंसक समाधान खोजने से स्थानीय लोग आतंकवादियों के खेमे में जा सकते हैं
कल्याणी शंकर - 2017-05-31 11:29
कश्मीर की समस्या दिनोंदिन बदतर होती जा रही है। हताश और गुमराह युवा सड़कों पर उतरकर सुरक्षा बलों पर पथराव कर रहे हैं। सुरक्षा बल भी उनके खिलाफ ताकत का इस्तेमाल कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि आज हालत वहां 1990 से भी खराब है, जब वहां उग्रवाद अपने चरम पर था।