सच कहा जाय तो यह अमित शाह को लगा एक करारा झटका था। अमित शाह ने दौरे के बाद यह महसूस किया कि धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण कराने की उनकी जो नीति उत्तर प्रदेश में सफल रही है, वह नीति दक्षिण भारत के इस प्रदेश में काम करने वाली नहीं है।
यही कारण है कि अमित शाह को एक हताश आदमी के रूप में केरल से वापस जाना पड़ा है। हताशा के साथ साथ वे गुस्से से तिलमिलाते हुए केरल से वापस गए हैं।
आश्चर्य नहीं कि अपनी विफलता का दोष अमित शाह केरल के अपने पार्टी पदाधिकारियों के ऊपर डाल रहे हैं। खबरों के अनुसार अमित शाह ने केरल के पार्टी पदाधिकारियों को अपनी समझ से अवगत करा दिया है। उन्होंने प्रदेश में पार्टी के विस्तार में कोई प्रगति नहीं करने के लिए पार्टी पदाधिकारियों से अपनी नाराजगी व्यक्त कर दी है। इसके साथ उन्होंने यह भी बताया है कि अनेक ऐसे फैक्टर हैं, जिनके आधार पर हम पार्टी का जनाधार प्रदेश में फैला सकते थे।
लेकिन भाजपा के प्रदेश नेता अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष से सहमत नहीं दिखे। उन्होंने अध्यक्ष के आरोपों का सामना किया और उन्होंने आंकड़ै देकर केरल में पार्टी के जनाधार के विस्तार की कहानी सुनाई। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि पार्टी के जनाधार के तेज विस्तार का असर मलपुरम लोकसभा के उपचुनाव में देखने को क्यों नहीं मिला, तो उनके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं था।
गौरतलब हो कि उस चुनाव में पार्टी बहुत पीछे तीसरे नंबर पर रही थी और उसे मिले मतों में बहुत ही मामूली बढ़त हो सकी थी।
अमितशाह ने अपनी पार्टी के प्रदेश नेताओं को साफ साफ कहा दिया कि उनके लिए चुनावों में पार्टी की जीत मायने रखती है और दो साल के अंदर होने वाले लोकसभा चुनाव में उन्हें केरल से कम से कम दो सीटों पर अपनी जीत चाहिए।
उसके बाद प्रदेश नेताओं ने एक सच को स्वीकारा और वह यह था कि जबतक हम अल्पसंख्यकों का समर्थन हासिल नहीं करते, हम जीत भी हासिल नहीं कर सकते हैं। यह बताया गया कि हमें अल्पसंख्यकों को अपने से जोड़ने के लिए कुछ न कुछ कदम उठाने चाहिए। अमित शाह ने प्रदेश के अपनी पार्टी नेताओं को ऐसा करने का निर्देश दिया। एक तरफ उनकी पार्टी कांग्रेस पर अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण का आरोप लगाती है, तो वही काम करने के लिए वह केरल में अपनी पार्टी के नेताओं को करने के लिए कह रही है।
अल्पसंख्यकों तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए अमित शाह ने खुद अलग अलग विचार रखने वाले ईसाई नेताओं से बात की। लेकिन यह साफ हो गया कि ईसाई नेता अभी भी भाजपा के रवैये को लेकर संदेहवादी बने हुए हैं। उन्होंने अपनी बैठक में शाह को देश भर में हो रहे ईसाइयों पर हमले की ओर ध्यान देने को कहा। उन्होंने इशारों इशारों मे साफ कह डाला कि जबतक ईसाइयों पर हमले नहीं रुकते, वे भाजपा का साथ नहीं दे सकते।
अमित शाह ने उन नेताओं के सामने वायदा किया कि उनकी चिंताओं से वे प्रधानमंत्री को अवगत कराएंगे।
मुसलमानों ने तो अमितशाह को और भी खरी खरी सुनाई। उनके नेताओं ने साफ साफ शब्दों में कहा कि उनका उस पार्टी या उसकी सरकार से कोई लगाव नहीं हो सकता, जो लोगों के खाने पीने की पसंद पर पाबंदी लगाती है।
केरल की राजनीति की जमीनी हकीकत भारतीय जनता पार्टी के लिए यही है। इसके कारण ही अमित शाह को निराशा लेकर प्रदेश से लौटना पड़ा है। (संवाद)
भाजपा के 'मिशन केरल' को झटका
अमित शाह ने महसूस किया कि केरल गुजरात नहीं है
पी श्रीकुमारन - 2017-06-06 11:18
तिरुअनंतपुरमः वे आए। उन्होंने देखा। पर जीतने में वे विफल रहे। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के तीन दिवसीय केरल दौरे का सार यही है।