इस पद पर विराजमान व्यक्ति किसी वर्ग विशेष का न होकर सम्पूर्ण राष्ट्र का होता हेै। अतएव इस पद पर चयन किये जाने वाले व्यक्ति के नाम के साथ किसी वर्ग विशेष के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। इस पद पर पर नये व्यक्ति के चयन हेतु राजनैतिक दलों के बीच सरगर्मियां तेज हो चली है। सŸाा पक्ष ने इस दिशा में विपक्ष से मिलकर आम सहमति बनाने का प्रयास तो किया पर विपक्ष के सामने प्रारम्भ में अपनी ओर से किसी नाम को उजागर न कर विपक्ष को इस राय के करीब लाने में असमर्थ ही रहा । विपक्ष इसे महज सŸाा पक्ष की सतरंगी चाल समझ अपनी तैयारी में जुट गया।

इस बीच राष्ट्रपति पद के लिये कुछ नाम उभर कर सामने अवश्य आये जिसमें मोहन भागवत एवं गोपाल कृृष्ण गांधी के नाम प्रमुख रहे पर जैसे ही इन नामों से अलग हटकर सŸाा पक्ष एन डी ए की ओर से विहार के राज्यपाल रामनाथ कोविद का नाम सामने आया , एक नया विवाद शुरु हो गया । राष्ट्रपति पद के लिये आये इस नाम को दलित वर्ग से जोड़कर देखा जाने लगा। राज्यपाल रामनाथ कोविद एक विद्वान व्यक्ति है, निष्पक्ष, कुशल प्रशासक रहने के नाते इस पद के लिये योग्य उम्मीदवार हो सकते है, इस बिन्दू पर किसी ने विचार नहीं किया ।

जब से राष्ट्रपति पद के लिये रामनाथ कोविद का नाम सामने आया , जाति वर्ग विशेष की राजनीति शुरू हो गई । इलेक्ट्रानिक मीडिया में इसे भाजपा का दलित कार्ड नाम से जोर शोर से उछाला जा रहा है। इस चर्चा में देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति पद को किसी वर्ग विशेष से जोड़कर निर्णय लेना राष्ट्र हित में कदापि नहीं हो सकता । पक्ष हो विपक्ष इस पद पर वर्ग विशेष को उजागर न कर व्यक्ति की विद्ववता एवं उसके कार्यकाल की गुणवता को ध्यान में रख सर्वसम्मति की अवधारणा कायम कर सके तो लोकतंत्र के लिये बेहतर निर्णय हो सकता है पर आज के बदले हालात में ऐसा संभव नहीं दिखता ।

परन्तु तत्कालीन बदलते राजनीतिक परिदृश्य में इस महत्वपूर्ण पद की गरिमा दिन पर दिन धूमिल एवं उपेक्षनीय पृष्ठभूमि से जुड़ती चली जा रही है। जहां स्वहित में उभरते टकराव एवं तनावमय स्थिति इस गरिमापूर्ण पद को भी संदेह के कटघरे में खड़ा कर बदनाम कर डालते हैं। ऐसे हालात में देश का सर्वोपरि यह पद प्रथम नागरिक होने का गौरव भी खो देता है। इस पद पर इस तरह के व्यकित को आसीन होना चाहिए जो निष्पक्ष भाव से सर्व एवं राष्ट्रहित में महŸवपूर्ण निर्णय ले सके।

राष्ट्रपति देश का सर्वोपरि पद होता है जिसके साथ किसी भी तरह की राजनीतिक चाल राष्ट्रहित में कदापि नहीं हो सकती। हमारा देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जहां राष्ट्रपति का चुनाव सीधे तौर पर जनता द्वारा न होकर जनता के चुने जनप्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुनने की प्रक्रिया में सभी सक्रिय हो चले है। इसके लिये मंथन एवं सहयोगी की तलाश भी शुरू हो गई है। इस तरह के परिवेश में स्वहित राष्ट्रहित से सर्वोपरि साफ - साफ झलकता है। ऐसा परिवेश कहीं से नजर नहीं आता कि इस महŸवपूर्ण पद पर होने वाले चुनाव में देश के सभी राजनीतिक दल सर्वसम्मति एकजूट होकर एक ऐसे व्यक्ति का चयन करें जो दलगत राजनीति से ऊपर उठकर निर्विवाद राष्ट्रहित में सोचे, विचारे व पहल करे।

वर्तमान हालात में सर्वसम्मति से राष्ट्रपति पद के लिये एक नाम तय हो पाना कतई संभव नहीं दिखता। विपक्ष ने मीरा कुमार को अपना उम्मीदवार बना भी दिया है। इस पद पर चुनाव होने तो निश्चित है पर इस पद को लेकर जो वर्ग विशेष की चर्चा जारी है, राष्ट्रहित में कदापि नहीं। इस दिशा में सभी को मंथन करना चाहिए एवं दलगत राजनीति के बीच इस तरह के सम्मानीय सर्वोपरि पद को जोड़कर निर्णय लेने की पृृष्ठिभूमि से दूर रहना चाहिए। (संवाद)