गौरतलब हो कि गुजरात व कुछ अन्य राज्यों में इस साल के अंत में चुनाव होने जा रहा है। मायावती की पार्टी ने पिछले दो दशकों से अपनी नीति बना रखी है कि वह चुनाव के दौरान किसी पार्टी से समझौता नहीं करती। उन्हें लगता है कि गठबंधन की अन्य पार्टी अपने वोट उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को ट्रांसफर नहीं करवा पाती हैं, जबकि उनकी पार्टी के मतदाता गठबंधन की दूसरी पार्टी के उम्मीदवारों को अपना वोट दे देते हैं।

पर पिछले कुछ चुनावों में मायावती की पार्टी की लगातार हार होती जा रही है। 2007 में उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी की सरकार बनी थी। उसके बाद हुए प्रत्येक चुनाव में मायावती को करारी हार का सामना करना पड़ा है। सच तो यह है कि पार्टी अपना मूल आधार भी खोती जा रही है।

उत्तर प्रदेश से बाहर भी पार्टी के पास कुछ वोट हैं। पार्टी के पास इतने वोट नहीं हैं कि वह उल्लेखनीय संख्या में उम्मीदवार जितवा सके, पर यदि किसी अन्य पार्टी से उसका समझौता हो जाय, तो दूसरी पार्टी को भी इसका फायदा हो सकता है और बसपा के अपने उम्मीदवार भी ज्यादा संख्या में जीत सकते हैं।

इस तथ्य से अवगत होने के बावजूद मायावती उत्तर प्रदेश से बाहर के किसी राज्य में भी अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन नहीं किया करती थी। लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर खिसक जाने के बाद उन्होंने अपना मन बदलना शुरू कर दिया है। आज स्थिति यह है कि उत्तर प्रदेश के अपने विधायकों की संख्या के बूते वे राज्य सभा में भी अगले साल प्रवेश नहीं कर पाएंगी। गौरतलब हो कि राज्यसभा में उनका वर्तमान कार्यकाल अगले साल समाप्त हो रहा है। यदि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और अखिलेश ने संयुक्त रूप से उनका समर्थन नहीं किया, तो वे वहां से राज्यसभा में प्रवेश भी नहीं कर पाएंगी।

सोनिया गांधी द्वारा विपक्षी पार्टियों के नेताओं की एक बैठक में मायावती शामिल हुई थीं और राष्ट्रपति पद के लिए संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार के प्रयासों में खुद को शामिल किया था। वह राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार मीरा कुमार का समर्थन भी कर रही हैं। जिस बैठक में गोपाल कृष्ण गांधी को उपराष्ट्रपति का संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार बनाया गया, उस बैठक में भी मायावती की पार्टी शिरकत कर रही थीं।

गौरतलब हो कि उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले अखिलेश यादव ने कहा था कि भाजपा को रोकने के लिए वे मायावती का साथ ले सकते हैं। मायावती ने उनके प्रस्ताव को खारिज नहीं किया था।

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव गैरभाजपाई दलों को एक मंच पर लाने के लिए सक्रिय हैं। उन्होंने इसके लिए 27 अगस्त को पटना में होने वाली रैली में अखिलेश के साथ साथ मायावती को भी आमंत्रित किया है। दोनों ने आमंत्रण स्वीकार भी कर लिया है। दोनों नेता 27 अगस्त की रैली को एक मंच से संबांधित करेंगे।

पिछले 8 जुलाई को मायावती ने अपने कार्यकत्र्ताओं को संबोधित करते हुए कुछ राज्यों में होने वाले चुनाव की तैयारी करने को कहा है। गुजरात के प्रभारी राम अचल राजभर है। उन्हें गुजरात में पार्टी के विस्तार का जिम्मा दिया गया है। उन्होंने कहा कि राज्यों में कांग्रस या किसी अन्य पार्टी से गठबंधन करने के बारे में फैसला केन्द्रीय नेतृत्व करेगा। (संवाद)