लेकिन इस तरह की अटकलबाजी की अपनी कमियां हैं। पहली कमी तो यह है कि अभी तक भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने या उसके किसी आधिकारिक प्रवक्ता ने यह नहीं कहा है कि लालू द्वारा समर्थन वापस लिए जाने की स्थिति में वह नीतीश सरकार का समर्थन कर देगी। यह सच है कि बिहार भाजपा के कुछ नेता इस बात के संकेत दे रहे हैं, लेकिन इससे संबंधित निर्णय सिर्फ और सिर्फ भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व ही कर सकता है और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष इस बात को कह भी चुके हैं।
इस अटकलबाजी की दूसरी कमजोरी यह है कि भाजपा बाहर से समर्थन देकर कुछ समय बाद समर्थन वापस लेकर मध्यावधि चुनाव का रास्ता साफ कर देगी। लेकिन यदि कुछ समय बाद भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया, तो क्या गारंटी है कि उस समय फिर जद(यू) और राजद में कोई समझौता न हो जाय? इस समय तनातनी तेजस्वी को मंत्री पद से हटाने को लेकर है। नीतीश उन्हें हटाना चाहते हैं, लेकिन लालू वैसा नहीं चाहते। सत्ता से बाहर होने के बाद नई शर्तों पर लालू यादव एक बार फिर नीतीश के साथ हो सकते हैं। इस संभावना को हम इनकार नहीं कर सकते। यही कारण है कि कुछ समय के लिए समर्थन देकर फिर समर्थन वापसी की भाजपा की रणनीति कारगर नहीं हो सकती। और भाजपा के नेता भी इस बात को समझते होंगे। इसलिए यदि वे नीतीश सरकार को समर्थन देंगे, तो सरकार में शामिल भी होना चाहेंगे, ताकि लालू नीतीश के भावी गठबंधन को वे असंभव बना दे।
पर सवाल उठता है कि क्या लालू ऐसा होने देंगे? क्या वे चाहेंगे कि प्रदेश में नीतीश और भाजपा की मिलीजुली सरकार बन जाय और अपने 80 विधायकों के बावजूद वे विपक्ष में आ जायं? यह सच है कि वे तेजस्वी को सरकार से हटाए जाने के खिलाफ हैं, लेकिन यदि वह सरकार से बाहर कर ही दिए जाते हैं, तो क्या लालू के लिए समर्थन वापस लेकर विपक्ष में बैठना सबसे अच्छा विकल्प होगा? यदि ऐसा होता है तो उनकी मुश्किलें और भी बढ़ जाएंगी और वे यह नहीं चाहेंगे कि उनकी समस्या दिनोदिन बढ़ती चली जाय।
आज केन्द्र में भाजपा की सरकार है और उसके कारण लालू और उनके परिवार को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अगर यदि प्रदेश में भी भाजपा गठबंधन सरकार में आ जाती है, तो लालू परिवार की परेशानियां दुगनी हो जाएगी, क्योंकि एक साथ उन्हें केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा पैदा की ही चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इस समय तो नीतीश सिर्फ तेजस्वी को सरकार से बाहर होने की ही मांग कर रहे हैं, बाद में तो वे लालू और उनके परिवार के खिलाफ कार्रवाई भी करने लग सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि नीतीश सरकार ने केन्द्र सरकार से मांग की है कि राज्य सरकारों को भी 5 करोड़ तक की अवैध कमाई वाली संपत्तियों को जब्त करने का अधिकार दिया जाय। जांच और मुकदमे के दौरान संपत्तियों को जब्त करने का अधिकार इस समय सिर्फ केन्द्र सरकार के प्रवत्र्तन निदेशालय के पास ही है। यदि उस तरह की शक्तियां पाकर नीतीश ने भी लालू परिवार की संपत्तियों को जब्त करना शुरू कर दिया, तो फिर लालू का क्या होगा?
इस समय वैसे भी लालू यादव चारा घोटाला संबंधित चार मुकदमों में उलझे हुए हैं। उनके खिलाफ चारा घोटाले के 5 मुकदमे दर्ज हुए थे, जिनमें से एक में फैसला आ चुका है और वे दोषी करार दिए गए हैं। शेष मुकदमे भी अब खुल गए हैं और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि 9 महीने के अंदर उन सभी मुकदमों की सुनवाई पूरी हो जानी चाहिए। तीन मुकदमे रांची में और एक पटना में चल रहे हैं। लगातार लालू यादव को अदालत में पेशी देनी पड़ रही है। वैसी स्थिति में वे यही चाहेंगे कि प्रदेश सरकार से उनका संबंध खराब नहीं हो। यह तभी संभव है, जब लालू का दल प्रदेश सरकार में शिरकत करते रहे।
यही कारण है कि लालू तेजस्वी के हटाए जाने के बाद भी नीतीश सरकार को अपना समर्थन देना जारी रखें और उन्हें भाजपा के खेमे में नहीं जाने दें। तेजस्वी को हटाए जाने का वे अपने तरीके से विरोध कर सकते हैं और अपने दल के मंत्रियों का तेजस्वी के समर्थन में इस्तीफा करवा सकते हैं, लेकिन इसके साथ, बहुत संभव है, कि वह सरकार को समर्थन जारी रखने की भी घोषणा कर दें। भाजपा को हराने के लिए 2019 तक महागठबंधन बनाए रखने की बात भी वे कर सकते हैं।
2019 के चुनाव में भाजपा को हराना लालू की सबसे बड़ी प्राथमिकता है और इसके लिए वे अपमान की घूंट पीकर भी बर्दाश्त करते रहेंगे। वे नीतीश के साथ अपने गठबंधन को बनाए रखकर अखिलेश और मायावती का चुनावी गठबंधन कराकर भाजपा को मात देने की रणनीति पर चल रहे हैं। इसलिए कुछ समय तक नीतीश सरकार से बाहर रहकर फिर वे सरकार में अपने दल की वापसी करा सकते हैं। वे अपनी संतानों में से किसी अन्य को प्रदेश का उपमुख्यमंत्री भी बनवा सकते हैं। उनके दोनों बेटे और कुछ बेटियों पर भी अवैध संपत्ति रखने के आरोप लग रहे हैं। इसलिए अपनी बेटियों मंे से किसी को जो उन आरोपों से मुक्त हो, को आगे करके लालू फिर से नीतीश सरकार में शामिल हो सकते हैं। नीतीश के लिए भी राजनैतिक रूप से सबसे ज्यादा मुफीद यही होगा। (संवाद)
बिहार महागठबंधन में तनातनी
लालू के लिए समर्थन वापसी आसान नहीं
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-07-17 12:12
बिहार के कथित महागठबंधन में चल रही तनातनी के बीच तरह तरह की अटकलबाजियां लगाई जा रही हैं। सबसे बड़ी अटकलबाजी यह है कि तेजस्वी को सरकार से निकालने के बाद नीतीश की सरकार अल्पमत में चली जाएगी, क्योंकि तब लालू सरकार से समर्थन वापस ले लेंगे और उनके दल के सारे मंत्री इस्तीफा दे देंगे। इसी के साथ यह भी कहा जा रहा है कि नीतीश सरकार अपनी अल्पमत की सरकार को बचाने के लिए भाजपा की सहायता लेंगे और भाजपा सहायता कर भी देगी। जो अटकलबाजी की जा रही है, उसके अनुसार भाजपा बाहर से नीतीश सरकार का समर्थन करेगी और कुछ समय के बाद समर्थन वापस कर प्रदेश को विधानसभा के मध्यावधि चुनाव की ओर ले जाएगी।