इस उद्योग में अभी केवल सांद्रण संयंत्र एवं खदान चालू हालत में है, जहां निजी कम्पनियों एवं ठेकेदारों का वजूद हावी है। नई भर्तिया तो कई वर्षो से बंद पड़ी है, जो लिये जा रहे वे अस्थाई तौर पर ठेकेदारों एवं निजी कम्पनियों के तहत कार्यरत है। जिनपर न तो कोई सामाजिक सुरक्षा की नियमावली लागू है न कोई वेतन नियमावली । जो निजी कम्पनी एवं ठेकेदार तय कर दें , वहीं सबकुछ है। जब कि इसी उद्योग से पूर्व में हजारों लोग स्थाई रोजगार से जुड़े थे, इनके पीछे अप्रत्यक्ष रूप कई हजार आस पास के लोग रोजगार से जुड़े रहे ।

देश के सभी भागों से आये हजारों लोग अपनी अपनी संस्कृृति में रमे एक दूूसरे से सौहर्दपूर्ण वातावरण में खुशी - खुशी जीवनयापन वर्षो तक करते रहे जिन्हें देखकर इसे मीनी इंडिया कहा जाता था । इनकी मिली जुली संस्कृृति एवं आपसी सौहार्द के प्रतीक आज भी सनातन मंदिर, गुरूद्वारा, मस्जिद, गिरजाघर, जैन मंदिर, दुर्गा - काली मंदिर, अयप्पा मंदिर , सूर्यकुंड, संतरविदास आदि एक साथ आसपास खड़े है जो अपने लोगों को यहां आने का इंतजार बड़े बेसर्बी से कर रहे है ।

पर आज के हालात देखकर ऐसा लगता है कि अब वह रौनक दुबारा यहां लौटकर नहीं आने वाली है। कर्मचारियों के इलाज हेतु सभी आधुनिक सुुविधायुक्त 500 बेड का विशाल चिकित्सालय सिमटकर मात्र 50 बेड का रह गया है जहां आज बाहर से कोई चिकित्सक आने को तैयार नहीं , जो सेवनिवृृत हो रहे है उन्हीं में से कुछ कार्यरत है। यहां के न्यू मार्केट, सेन्ट्रल मार्केट, आजाद मार्केट, सुभाष मार्केट एवं अन्य बाजार, शाॅपिंग सेंटर , मंडी जो देर रात लोगों के आवाजाही से रौनक एवं आकषर्ण के केन्द्र बने रहते थे, आज बीरान से दिखने लगे है ।

कुछ रौनक आसपास रहने वलों के चलते जगदम्बा मर्केट की बची नजर आती है, यहां भी कब बिरानगी छा जायगी , कहा नहीं जा सकता । इनमें अधिकांश दुकान बंद कर दुकानदार अन्य शहर को पलायन कर चुके है और जो बचे है मजबुरी के राग अलाप रहे है। मन नहीं मान रहा यहां पर रहने जायें तो जायंे कहां ? यहां बस स्टैंड जहां से दिल्ली, हरियाणा की कई बसें दिन भर दौड़ती नजर आती, रात्रि में आकर रूकती , आज उजाड़ एवं एकाकीपन का अहसास होने लगा है। इस जगह के पलायन के हालात देखकर नहीं लगता कि पूर्व जैसा रौनक लौट पायेगी ।

जबकि कुछ वर्ष पूर्व इस क्षेत्र के सांसद पदम श्री शीशराम ओला केन्द्र में जब खान मंत्री बने तो इस क्षेत्र के लोगों में इस उद्योग को लेकर एक नई आस जगी । इस उद्योग से जुड़े कर्मचारी एवं आस पास के लोगों को यह विश्वास हो गया कि बंद पड़े उद्योग पुुनः चालू हो जायेगें, नये रोजगार के अवसर खुलेगें एवं क्षेत्र की रौनक फिर से वापिस लौट आयेगी । पर इनके कार्यकाल में ऐसा कुछ नहीं हो सका । यह उद्योग विगत घाटे की सीमा को पार करते हुए लाभांश की ओर बढ़ते कदम के बल पर मिनी रत्न का दर्जा जरूर पा गया । आज पहले से भी इस उद्योग की बदतर स्थिति बनी हुई है। जिसके वजह से चारों ओर उजाड़ नजर आने लगा है। इस तरह के हालात के लिये यहां के श्रमिक वर्ग से जुड़े सभी संगठन जिम्मेवार हैं।

इसी हिन्दुस्तान काॅपर लिमिटेड उद्योग के तहत पूर्व में संचालित महाराष्ट्र तालोजा काॅपर प्रोजेक्ट भी बंद हो चुका है, जहां काॅपर छड़ का उत्पादन होता रहा है। झारखंड राज्य की घाटशिला यूनिट इंडियन काॅपर काॅम्प्लैक्स, छत्तीसगढ़ राज्य की मलाजखण्ड काॅपर प्रोजेक्ट फिलहाल कार्यरत है। कब बंद हो जाय कुछ कहा नहीं जा सकता ।

जहां तक राजस्थान में बंद होते काॅपर उद्योग के काॅपर अयस्क के भौगोलिक परिवेश की वास्तविकता का प्रश्न है, खेतड़ी काॅपर काॅम्प्लैक्स से जुड़ी शेखावाटी क्षेत्र का बनवास व सिंघाना क्षेत्र अभी भी इस दिशा में अव्वल है। जहां हजारों वर्ष तक अच्छे ग्रेड में तांबा निकाले जाने हेतु 1.8 प्रतिशत का 50 मिलियन टन से भी ज्यादा काॅपर अयस्क भूगर्भ में विराजमान है। इस क्षेत्र में बनवास खदान की चर्चा तो कई बार चली। पूर्व में नये साॅफ्ट लगाने हेतु उद्घाटन भी हुआ। खदान को नये सिरे से चालू कर इस क्षेत्र से काॅपर अयस्क निकाले जाने की योजना भी बनी परंतु सभी योजनाएं कागज तक ही सिमट कर रह गई । ‘सदियों से गड़ा शिलान्यास का पत्थर/बन गया वहीं अब रास्ते का पत्थर। फाइलों के पर अब झरने लगे हैं/रास्ते में अभी बहुत से दफ्तर।।’

इस उद्योग को सही रूप से संचालन प्रक्रिया के साथ जोड़कर किसी भी यूनिट को बंद करने के बजाय चालू रखने की प्रक्रिया पर बल दिया जाना चाहिए था। आयातित सांद्रित काॅपर अयस्क जो महंगा पड रहा था उसे बंद कर एवं यहां तैयार सांद्रित काॅपर अयस्क को बाहर भेजने से रोककर व इसे इकट्ठा कर बंद पड़ी योजनाओं को शीघ्र से शीघ्र चालू किया जा सकता था। जिसके लिये जरूरी था कि बनवास क्षेत्र में नई खदान शीघ्र से शीघ्र खोली जाय। इस उद्योग के अन्दर हो रहे अनावश्यक खर्च लापरवाही एवं चोरी जैसे अनुचित कार्यों पर प्रतिबंध लगाकर उद्योग को बंद होने के दौर से बचाया जा सकता था।

पर ऐसा नहीं हो सका, जिसके कारण राजस्थान का सबसे बड़ा यह काॅपर उद्योग बंदी के कगाार पर धीरे - धीरे खड़ा होता गया। जो भी आया , इसे अपना नहीं समझा, अंत तक लूटता ही रहा और आज भी जो कुछ बचा है लुटने की तैयारी में लगा हुआ है। सरकार की अनदेखी के ही कारण आज देश में करोड़ों लोगों को सुरक्षित रोजगार देने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश प्रतिष्ठान बंद हो चुके है, जो चल रहे है , बंद होने के कगार पर खड़े है। जिससे देश में बेरोजगारी की स्थिति दिन पर दिन गंभीर होती जा रही है। इस तरह के बड़े उद्योग फिर से देश में आ सकेंगे, कहीं से नजर नहीं आता, जो खड़े है देश हित में उन्हें बचाये रखने की महती आवश्यकता है। (संवाद)