लालू अपना आस्तित्व क्यों बचा लेते हैं? विषम परिस्थितियों के बावजूद बच निकलने में वह सफल हो जाते हैं। उनके खिलाफ जार्ज फर्नाडीस तथा नीतीश कुमार ने गठबंधन किया, लेकिन लालू प्रसाद ने शानदार जीत हासिल कर ली। अक्टूबर 2013 में चारा घोटाले में पांच साल की सजा पाने के बाद उन्होंने 2015 में जबर्दस्त रूप से वापसी की और उनकी पार्टी के सबसे ज्यादा उम्मीदवार जीते।
लालू भाजपा विरोधी भावनाओं पर निर्भर हैं। वह साफतौर पर खुद को भाजपा की तथाकथित सांप्रदायिक राजनीति के विरोध की मशाल लेकर चलने वाला मानते हैं। जैसी उम्मीद थी, लालू ने पूरे मामले को अपने और अपने परिवार के खिलाफ भाजपा की बदले की राजनीति का रूप दे दिया है। पिछले महीने पार्टी के 21 वें स्थापना दिवस पर कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए लालू ने कहा,’’ वे लालू को खत्म करना चाहता है।। वे विपक्ष में फूट पैदा करना चाहते हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि हमारी मिलीजूली ताकत उनके 2019 के मिशन को विफल कर सकती है।
लालू को 1990 में उस समय प्रसिद्धी मिली, जब बिहार के मुख्यंमत्री के रूप में उन्होंने एलके आडवाणी की रथयात्रा रोक दी। हालांकि, भाजपा ने 1990 के दशक में ज्यादातर समय तक उŸार प्रदेश में राज्य किया, लालू ने उसे बिहार में प्रवेश करने से 2005 तक रोके रखा। उन्होंने 1997 में राष्ट्रीय जनता बना लिया जब आईके गुजराल की सरकार ने चारा घोटाले के मामले में बचाने से इंकार कर दिया। एक अदालत ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया तो उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री मनोनीत कर दिया। वह उनके एवज में राज करने लगे। लालू फिर मुख्यमंत्री नहीं बने और 2004 मेें केंद्रीय रेल मंत्री बन गए। उनका यह कार्यकाल दो रेलवे होटलों के मामले को लेकर सीबी आई की जंाच में है। ‘‘मैं जब जेल गया तो उन्होंने कहा कि लालू खत्म हो गया। लेकिन मैं खत्म नहीं हुआ। मैं सभी साम्प्रदायिक और विभाजनकारी शक्तियों को समाप्त कर ही समाप्त होउंगा,’’ लालू ने छपरा की रैली में अपना संकल्प व्यक्त किया।
दूसरा, 2013 में पांच साल जेल की सजा पाने के बाद भी लालू का राजनीतिक कैरियर समाप्त नहीं हुआ क्योंकि वह राजनीति में प्रासंगिक बने हुए थे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उस समय लालू के पक्ष में उतरे, जब उन्होंने एक सरकारी आदेश के जरिए यादव को सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से बचाने की कोशिश की जिसमें सजायाफ्ता राजनीतिज्ञों को अपील के दौरान पद पर बने रहने से रोक दिया गया था। कांग्रेस नेता राहुल गंाधी के उस अध्यादेश को फाड़ देने से यह कदम सफल नहीं हो पाया। लालू ने सजा के खिलाफ अपील की है और अभी जमानत पर हैं।
लालू और नीतीश कुमार के रिश्ते में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं। लालू से अलग होने के बाद नीतीश की राजनीति लालू के मुसलिम यादव समीकरण के विरोध में गैर-यादवों को एक करने की इर्द-गिर्द घूमती रही है। नीतीश ने 2005 में भाजपा के साथ गठबंधन के जरिए जीत हासिल की और 2010 में भी इसी तरह जीते, लेकिन 2015 में राजनीतिक मजबूरियों ने लालू और नीतिश को साथ ला दिया। जदयू-राजद-कांग्रेस गठबंधन विजयी रहा और राजद को 80 सीटें मिली जबकि जदयू को 71, कंाग्रेस को 27 तथा भाजपा को 53 सीटें।
तीसरा, लालू अभी तक राजनीतिक रूप से प्रांसंगिक रहे हैं। 2005 में सŸाा से बाहर होने के बाद भी राजद को पिछले चार चुनावों में 18 से 20 प्रतिशत मिलते रहे हैं। तीन बड़ी पार्टियों-जदयू, राजद और भाजपा- के वहां होने के बाद भी, 20 प्रतिशत वोट पाना कोई मामूली बात नहीं है। मुसलमान और यादव जो राज्य में आबादी का तीस प्रतिशत हैं, लालू को अपना मसीहा मानते हैं।
चैथा, लालू लड़ाकू हैं और तूफानी व्यक्ति हैं। यही वजह है कि परिवार पर सीबीआई छापों के 12 घंटे के भीतर वह रांची में गरजे,‘‘ सुनो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह! मुझे और मेरे परिवार को निशाना बनाने की कोशिशों के खिलाफ मैं लड़ूंगा। और, मैं बिहार में गठबंधन के आयोग को नष्ट नहीं होने दूंगा, चाहे जैसे भी हो। मैं दबाब की तुम्हारी रणनीति के आगे नहीं झुकूंगा। अगस्त में महारैली की तैयारी पहले कर रहे हैं। इस रैली का उद्देश्य ‘‘महागठबंधन’’ के अत्यंत शानदार प्रयोग को बिहार से बाहर ले जाने और राष्ट्रीय तर पर चालू करना है।
लेकिन अभी लालू और नीतीश के बीच अविश्वास है और नीतीश फिर भाजपा की ओर जा रहे हैं। राज्य और केंद्र दोनों मे बिना सत्ता के रहना, लालू को ज्यादा असुरक्षित बनाएगा क्योंकि नीतीश भाजपा के समर्थन से बिहार के मुख्यमंत्री बने रहेंगे। बहुत खराब स्थिति में, चार मामलों में सजा भी पा सकते हैं। इससे चुनावी राजनीति से वह 2024 तक बाहर हो सकते हैं। राजनीतिक खानदान बनाने की उनकी योजना भी खतरे में है। इसलिए लालू अब तक की सबसे बुरी चुनौती का सामना कर रहे हैं। (संवाद)
अस्तित्व की जंग लड़ रहे हैं लालू प्रसाद
लालू और नीतीश कुमार के रिश्ते में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं
कल्याणी शंकर - 2017-07-26 09:57
बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को चारो ओर से बांध दिया गया है। लेकिन, क्या इसका अर्थ यह है कि उनका राजनैतिक जीवन समाप्त हो गया है? अदालती फैसलों और सजाओं के बाद भी उन्होंने राजनीति में आस्तित्व अपना बचा लिया है, लेकिन लोग फैसला सुनाए जा रहे हैं। एक बार नहीं, बल्कि कई बार प्रादेशिक और राष्ट्रीय, दोनों स्तरों की राजनीति में फिर से उभर कर उन्होंने लोगों को चैंकाया है। रेल मंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके इस व्यक्ति के लिए आने वाले कुछ महीने उनकी बच निकलने की उनकी क्षमता की परीक्षा के हैं क्योंकि, उनके विरोधियों के अनुसार, स्थिति बदली हुई है क्योंकि इस बार सिर्फ आरजेडी सुप्रीमो ही नहीं बल्कि उनका पूरा परिवार ही भ्रष्टाचार का आरोप झेल रहे है।