यदि कोई राजनीतिज्ञ अपनी राय व्यक्त करता है, तो उसके पीछे भी राजनीति होती है। जब नीतीश मोदी का विरोध करते थे, तो उसके पीछे भी उनकी राजनीति होती थी। वे आरएसएस और भाजपा के साथ रहते हुए भी अपने आपको सेक्युलर होने का प्रमाणपत्र देते रहते थे और वैसा करने के लिए उन्हें नरेन्द्र मोदी का विरोध करना पड़ता था। वे उन्हें बिहार में भी चुनाव प्रचार नहीं करने देते थे और कहते थे कि बिहार का अपना एक अलग मोदी (सुशील मोदी) हैं और गुजरात के मोदी को यहां आने की जरूरत ही नहीं है।
अब नीतीश कुमार कह रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी के सामने खड़े होने की क्षमता भी किसी के पास नहीं है। आखिर इस तरह की बयानबाजी का क्या मतलब है? एक मतलब तो यही हो सकता है कि अपने पुराने बयानों के कारण नीतीश कुमार नरेन्द्र मोदी के प्रति सशंकित हैं। उन्हें भय लगता है कि अभी भी नरेन्द्र मोदी उनसे खफा हैं। इसलिए उनकी नाराजगी दूर करने के लिए वे उनकी तारीफ कर रहे हैं।
लेकिन क्या यह मामला सिर्फ मोदी की निजी नाराजगी तक सीमित है? सच कहा जाय, तो भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक हिस्सा नीतीश कुमार को अभी भी नहीं पचा पा रहा है। जब 1995 में नीतीश कुमार भाजपा के साथ गए थे, तो भाजपा में बहुत ही उत्साह का माहौल था। बाबरी मस्जिद के विघ्वंस के बाद भाजपा के साथ शिवसेना के अलावा कोई और नहीं आना चाहता था। तब नीतीश कुमार ने भाजपा को राजनैतिक छुआछूत से बचाया था। उसका फायदा उन्हें लगातार मिलता रहा। बिहार में उनकी पार्टी भाजपा से बेहद कमजोर थी। 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश की पार्टी को 29 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा को 67 सीटें, फिर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही बनाया गया था। उसके बाद के चुनावों में तो भाजपा अधिकांश सीटें नीतीश को ही दिया करती थी, जबकि भाजपा का जनाधार नीतीश के जनाधार से बहुत बड़ा था।
पर 2917 में नीतीश का भाजपा से जुड़ाव होने के बाद माहौल कुछ और है। भाजपा के अनेक नेताओं को लग रहा है कि नीतीश पर विश्वास नहीं किया जा सकता और वे कभी भी कुछ ऐसा कर सकते हैं, जिससे पार्टी को राजनैतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। आरएसएस में ऐसा सोचने वालों की संख्या तो बहुत ज्यादा है। वे चाहते हैं कि भाजपा नीतीश कुमार से जल्द से जल्द पीछा छुड़ा लें, अन्यथा 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले कोई न कोई विवाद खड़ा कर बिहार के मुख्यमंत्री पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। कुछ लोग तो यह भी मानते हैं कि नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा अभी भी समाप्त नहीं हुई है।
जाहिर है, नीतीश के सामने एक अनिश्चय भरा भविष्य खड़ा है और उसे दूर करने के लिए उन्हें यह सफाई देनी पड़ रही है कि प्रधानमंत्री बनने की उनकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है और वे क्या नरेन्द्र मोदी के सामने किसी की भी खड़ा होने की क्षमता नहीं है। वे भाजपा के साथ गठबंधन के बीच अपने को जितना असुरक्षित महसूस करेंगे, वे उतना ही मोदी की प्रशंसा करेंगे। लेकिन इसके कारण उनके प्रति जो संशय का भाव पैदा हुआ है, वह शायद ही समाप्त हो पाए।
नीतीश कुमार की असुरक्षा की एक वजह उन पर चल रहा हत्या का मामला भी है। 1991 में वे बाढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे और मतदान के दिन कांग्रेस के एक कार्यकत्र्ता की मतदान केन्द्र पर ही हत्या हो गई थी। उस हत्या में नीतीश कुमार को ही मुख्य अभियुक्त बनाया गया था। नीतीश पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने ही अपनी गन से गोली चलाकर सीताराम सिंह को मार डाला था। 1993 में उस मुकदमे का चार्जशीट दाखिल किया गया, जिससे नीतीश का नाम हटा दिया गया था। उस दौरान बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव थे और नीतीश कुमार उस समय उनके जिगरी दोस्त हुआ करते थे।
बाद में मृतक के एक रिश्तेदार ने चार्जशीट से नीतीश कुमार का नाम हटाने के मामले को अदालत में चुनौती दी। लंबे विलंब के बाद चुनौती देने वाले केस की सुनवाई 2008 में बाढ़ अदालत में शुरू हुई। अदालत ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम समन जारी किया। फिर हाई कोर्ट जाकर नीतीश कुमार ने बाढ़ कोर्ट की कारर्वाई पर रोक लगवा दी। अब यदि वह रोक हट जाती है और बाढ़ कोर्ट नीतीश का नाम चार्जशीट में शामिल करने की इजाजत दे देता है या फिर से उस हत्याकांड का आदेश दे देता है, तो नीतीश कुमार के सामने एक गंभीर समस्या आ खड़ी होगी।
हत्या के मामले में चार्जशीटेड नीतीश केा अपने पद से इस्तीफा भी देना पड़ सकता है। उसमें उनकी गिरफ्तारी भी हो सकती है। वह मामला अभी तक पटना हाई कोर्ट और बाढ़ कोर्ट में ही चल रहा था। अब तो वह सुप्रीम कोर्ट में भी आ गया है। सुप्रीम कोर्ट में अर्जी पेशकर कहा गया है कि नीतीश कुमार ने अपने ऊपर हुए मुकदमे के बारे में जानकारी अनेक बार निर्वाचन आयोग से छिपाई है, इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। हालांकि सच यह भी है कि 2012 में हुए विधान परिषद के चुनाव में नीतीश ने उस मुकदमे का उल्लेख किया था। उसके पहले उल्लेख नहीं किया था।
अदालत के तीनों स्तरों पर हत्या के चल रहे मामले ने नीतीश कुमार के भविष्य को अनिश्चित कर दिया है। वे फिलहाल उस मामले पर किसी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर रहे हैं, लेकिन अदालती सक्रियता का डर तो उन्हें होगा ही। (संवाद)
बिहार के मुख्यमंत्री की मोदी भक्ति
क्या असुरक्षित महसूस कर रहे हैं नीतीश?
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-08-04 13:23
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी नई पारी के बाद आयोजित पहले प्रेस कान्फ्रेंस में ही मोदी भक्ति का परिचय दे डाला। उन्होंने साफ साफ कहा कि मोदी के सामने आज खड़ा हो पाने वाला भी कोई नहीं है और किसी में ऐसी क्षमता नहीं है कि 2019 के चुनाव में मोदी को चुनौती दे सके। नीतीश कुमार के इस बयान में सच्चाई हो सकती है। इस तरह की राय अनेक लोग रखते हैं, पर सवाल उठता है कि नीतीश को ऐसा कहने की जरूरत क्यों पड़ी? वे एक नेता हैं, समाचार विश्लेषक या लेखक- टिप्पणीकार नहीं।