नसीमुद्दीन सिद्दकी और इन्द्रजित सरोज उन बसपा नेताओं के लगातार संपर्क में हैं, जिन्हें या तो पार्टी से निकाल दिया गया है या जो पार्टी से खुद बाहर हो गए हैं। उन सबको एक साझा मंच पर लाने की कोशिश की जा रही है।

सिद्दकी और सरोज कांसीराम के संपर्क में भी हैं ताकि वे उत्तर प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकें और नये संगठन के लिए ज्यादा से ज्यादा समर्थन जुटा सकें।

खबर तो यह भी है कि नसीमुद्दीन सिद्दकी, जो विधान परिषद के सदस्य हैं, अपने पद से इस्तीफा भी दे सकते हैं, ताकि भाजपा के वे मंत्री विधायक बन सकें, जो अभी किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। गौरतलब हो कि मायावती ने नसीमुद्दीन सिद्दकी को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाते हुए पार्टी से बाहर निकाल दिया है।

दूसरी ओर सिद्दकी और सरोज ने मायावती पर टिकट बेचने का आरोप लगाया है। सरोज का कहना है कि उनका मुख्य उद्देश्य अंबेडकर और कांसीराम की विचारधारा की रक्षा करना है। उन्होंने आरोप लगाया कि जिन लोगों ने बसपा के निर्माण में अपना सबकुछ निछावर कर दिया, उन लोगों को मायावती पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा रही हैं। उन्होंने कहा कि वे प्रदेश भर का दौरा करेंगे और बसपा के कार्यकत्र्ताओं को एक मंच पर इकट्ठा कर मायावती का पर्दाफाश करेंगे।

13 अगस्त को लखनऊ के पासी किला में बसपा के विक्षुब्ध नेताओं का एक सम्मेलन होने जा रहा है। इस सम्मेलन को राजनैतिक हलकों में विशेष महत्व दिया जा रहा है। वह अपने किस्म का पहला सम्मेलन होगा।

कांसीराम का जन्म पंजाब के एक सिख परिवार में हुआ था। उनके शुरुआती दिन की गतिविधियां पंजाब के उन इलाकों में सिमटी हुई थीं, जहां दलितों की आबादी बहुत ज्यादा है। उनका उद्देश्य दलित, ओबीसी, आदिवासी और अल्पसंख्यकों को एक मंच पर लाना था। उन्होंने अलग अलग समुदायों के अनेक नेताओं को आगे बढ़ाया। मायावती उनमें से एक हैं।

जिस बसपा का गठन कांसीराम ने किया, उसकी अपनी बहुमत वाली सरकार पहली बार 2007 में मायावती के नेतृत्व में बनी। उसके बाद वह उत्तर प्रदेश की एक बड़ी नेता बन गईं और बहुजन समाज पार्टी की तो वे सुप्रीमो ही बन गईं।

सच कहा जाय, तो जब कांसीराम का स्वास्थ्य गिर रहा था, तब से ही मायावती ने बसपा पर अपना नियंत्रण मजबूत करना शुरू कर दिया था। कांसीराम पंजाब के होने के साथ साथ रामदसिया समुदाय के थे, जबकि मायाती जाटव समुदाय से आती हैं, जिसकी संख्या उत्तर प्रदेश मे सबसे ज्यादा है। इसके कारण मायावती कांसीराम से भी बड़ी नेता बन गईं। लेकिन धीरे धीरे वह लोभ की शिकार हो गईं। वह किसी और को बर्दाश्त करने की क्षमता भी खोती गईं। इसके कारण पार्टी के अनेक नेता बाहर होते गए और अनेक को वह पार्टी से अलग करती गईं। इसके कारण ही उनका पतन हुआ। अब बसपा के उनके पूर्व और वर्तमान विरोधी उनके खिलाफ एक मंच पर आ रहे हैं और उनके प्रयासों को भाजपा बढ़ावा दे रही है। (संवाद)