डोकलाम में चीन की आक्रामकता को लेकर यूरोप के एक बड़े नेता ने चीन की आलोचना की है। यूरोपीय संसद के उपाध्यक्ष आर जारनेकी ने अपने एक लेख में सिक्किम के पास चीन की हालिया हरकतों को लेकर उसकी खिंचाई की है। इस लेख का शीषर्क है- चीन की अतिक्रमण की बढ़ती प्रवृत्ति। इसमें कहा गया है, श्पिछले कई सालों में चीन लगातार अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह भरोसा देता रहा है कि उसका शांतिपूर्ण उभार किसी भी तरह से स्थापित सिस्टम के लिए खतरा नहीं है और इसके बजाय यह शांतिपूर्ण अंतरराष्ट्रीय माहौल को बढ़ावा देता है। लेकिन हाल के वर्षों में खासतौर पर शी जिनपिंग के देश के राष्ट्रपति बनने के बाद से चीन की विदेश नीति में बदलाव और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य नियमों का उल्लंघन नजर आ रहा है। पिछले 16 जून को डोकलाम इलाके में भूटान आर्मी कैम्प की तरफ चीन का सड़क बनाने का मनमाना फैसला इसका एक नमूना है। लेख में कहा गया है कि विवादास्पद डोकलाम इलाके में चीन की कंस्ट्रक्शन गतिविधियों पर भूटान ने कूटनीतिक चैनलों के जरिये आपत्ति जताई, जिसका शायद चीन को पहले से अनुमान था। हालांकि, चीन को शायद इसका गुमान नहीं था कि भूटान की क्षेत्रीय संप्रभुता की रक्षा के लिए भारत आगे बढ़ेगा।

लेख में कहा गया है कि भूटान सरकार की सलाह पर भारतीय सैन्य बलों के आगे बढ़ने के बारे में शायद चीन को अनुमान नहीं था, जिसका मकसद यथास्थिति को बनाए रखना था। चीनी विदेश मंत्रालय और वहां के सरकारी मीडिया ने भारत की इस कार्रवाई पर सख्त प्रतिक्रिया जताई और भारत को 1962 में चीन को हाथों हुई हार की भी याद दिलाई। हालांकि, उसने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि ट्राई-जंक्शन वाले इलाके में यथास्थिति को बदलने के लिए चीन ने सबसे पहले कदम उठाया। डोकलाम पठार पर भारतीय सैनिकों के साथ चीनी सेना के टकराव की वजह भू-राजनीतिक मजबूरियां हैं। चीन के सैन्य विवाद विवाद का मकसद भूटान के साथ भारत के भूराजनीतिक और सामरिक रिश्तों पर सवाल खड़े करना है। चीन पर नजर रखने वाले एक एक्सपर्ट के मुताबिक, वह इस खास रिश्ते के सैन्य पहलू को टिकाऊ बनाए रखने के लिए भारत की राजनीतिक इच्छाशक्ति को तौल रहा है। चीन ने अपनी हालिया गतिविधियों से परोक्ष तौर पर यह धमकी दी है कि वह भारत के नेतृत्व के लिए न सिर्फ सिक्किम, भूटान और कश्मीर घाटी में न सिर्फ सैन्य जमावड़े के जरिये परेशानी पैदा कर सकता है, बल्कि वह तिब्बत रीजन में लाइव सैन्य अभ्यास और मीडिया प्रोपगेंडा का भी सहारा लेगा।

चीन का निराधार आरोप

भूटान से लगती सीमा पर भारत के साथ बने तनाव के बीच चीन ने कहा है कि अगर भारत सीमा पर सैनिक भेजकर राजनीतिक उद्देश्य पूरा करना चाहता है तो वो ऐसा न करे। चीन ने एक बार फिर आरोप लगाया है कि भारतीय सैनिकों ने दोनों देशों के बीच श्निर्धारित सीमा को अवैध तरीके से पार किया और भारत को अपने सैनिकों को वापस बुलाना चाहिए। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने बीजिंग में हुई एक प्रेस कन्फ्रेंस में कहा, अगर भारतीय निर्धारित सीमा पर सैनिकों को भेजकर अपने राजनीतिक उद्देश्यों को हासिल करना चाहते हैं, तो चीन भारत से अपील करेगा कि वो ऐसा न करे। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आगे कहा, मैं बताना चाहता हूं कि इस मामले पर तथ्य स्पष्ट हैं। चीन-भारत सीमा के सिक्किम सेक्शन का निर्धारण हो चुका है, जिसे चीन और भारत दोनों ही मान्यता देते हैं। इस मामले में भारतीय सैनिक अवैध तरीके से चीन के क्षेत्र में दाखिल हुए। वहीं, भारत का कहना है कि उसने पिछले महीने इस क्षेत्र में अपने सैनिकों को भेजा था ताकि वे इस क्षेत्र में एक नई सड़क के निर्माण कार्य को रोक सकें।

चीनी मीडिया के मार्फत भारत को धमकी

चीन का सरकारी मीडिया जहां कह रहा है कि यह तनाव कभी भी आमने-सामने की जंग में बदल सकता है, वहीं चीन सरकार कह रही है कि भारत सियासी फायदों के लिए डोकलाम एरिया में घुसपैठ ना करे और अपने सैनिकों को वापस बुलाए। चीन की इन धमकियों के जवाब में अरुण जेटली कह चुके हैं कि ये 1962 का नहीं, बल्कि 2017 का भारत है। भारत के रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि डोकलाम में तनाव कम नहीं हो रहा, लेकिन 55 साल बाद चीन भारत से फिर जंग लड़ने की गलती नहीं करेगा।

1962 में क्या हुआ था?

अक्साई चिन और अरुणाचल र्बडर पर अंग्रेजों के वक्त से विवाद था। तिब्बत में बगावत हुई। भारत ने दलाई लामा का सपोर्ट किया। इससे चीन भड़क गया। नतीजा यह रहा कि दोनों देशों में जंग हुई। हमारे 1383 सैनिक शहीद हो गए। तब नेहरू प्रधानमंत्री थे। माओत्से तुंग चीन के राष्ट्रपति थे।

मौजूदा विवाद क्या है?

चीन सिक्किम सेक्टर के डोकलाम इलाके में सड़क बना रहा है। डोकलाम के पठार में ही चीन, सिक्किम और भूटान की सीमाएं मिलती हैं। भूटान और चीन इस इलाके पर दावा करते हैं। भारत एक संधि के तहत भूटान का साथ देता है। भारत में यह इलाका डोकलाम और चीन में डोंगलोंग कहलाता है। चीन ने जून की शुरुआत में यह सड़क बनाना शुरू की। भारत ने विरोध जताया तो चीन ने घुसपैठ कर दी। चीन ने भारत के दो बंकर तोड़ दिए। तभी से तनाव है। दरअसल, सिक्किम का मई 1975 में भारत में विलय हुआ था। चीन पहले तो सिक्किम को भारत का हिस्सा मानने से इनकार करता था। लेकिन 2003 में उसने सिक्किम को भारत के राज्य का दर्जा दे दिया। हालांकि, सिक्किम के कई इलाकों को वह अपना बताता रहा है।

चीन को रोकना इसलिए जरूरी है ?

चीन जहां सड़क बना रहा है, उसी इलाके में 20 किमी हिस्सा सिक्किम और पूर्वोत्तर राज्यों को भारत के बाकी हिस्से से जोड़ता है। यह ‘चिकेन नेक’ भी कहलाता है। चीन का इस इलाके में दखल बढ़ा तो भारत की कनेक्टिविटी पर असर पड़ेगा। भारत के कई इलाके चीन की तोपों की रेंज में आ जाएंगे। अगर चीन ने सड़क को बढ़ाया तो वह न सिर्फ भूटान के इलाके में घुस जाएगा, बल्कि वह भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के सामने भी खतरा पैदा कर देगा। दरअसल, 200 किमी लंबा और 60 किमी चैड़ा सिलीगुड़ी करिडोर ही पूर्वोत्तर राज्यों को भारत के बाकी राज्यों से जोड़ता है, जिसे चिकन नेक कहा जाता है। इसलिए भारत नहीं चाहेगा कि यह चीन की जद में आए।

इन मामलों में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी से आगे है भारतीय सेना-

1) आर्मर्ड फाइटिंग व्हीकल्स

भारत के पास 6,704 आर्मर्ड फाइटिंग व्हीकल्स हैं। चीन के पास ऐसे 4,788 व्हीकल्स हैं। इस मामले में भारत चीन से आगे है। ये व्हीकल्स हर तरह के इलाकों में काम आते हैं। ये रेगिस्तान में भी कारगर होते हैं और इन्हें सिक्किम जैसे पहाड़ी इलाकों में भी बड़े ट्रांसपोर्ट प्लेन के जरिए पहुंचाया जा सकता है।

2) तोपें

भारत के पास तोपों की संख्या 7,414 हैं, जबकि चीन के पास ऐसी तोपों की तादाद 6,246 है। भारत में ज्यादातर ऐसी तोपें बोफोर्स हैं। बोफोर्स वही तोप है जो डील होने के वक्त विवादों में रही लेकिन करगिल की जंग में ऊंचाई वाले इलाकों में यह काफी मदार साबित हुई थी। भारत अमेरिका से 145 होवित्जर तोपें भी खरीदने जा रहा है। टाइटेनियम से बनी ये हल्की तोपें 25 किलोमीटर तक टारगेट हिट कर सकती हैं। ऐसे में चीन के खिलाफ ये तोपें कारगर साबित हो सकती हैं।

3) एयरक्राफ्ट करियर

भारत के पास एक विशाल एयरक्राफ्ट करियर ‘आईएनएस-विक्रमादित्य है। एक रिजर्व में है और एक का कंस्ट्रक्शन चल रहा है। विक्रमादित्य 33 928 फीट लंबा एयरक्राफ्ट करियर है। 45 हजार मीट्रिक टन से ज्यादा वजन उठा सकता है। इससे पहले आईयनयस-विराट भी 1987 से भारत को अपनी सेवा दे रहा था, जिसे इसी साल मार्च में रिटायर कर दिया गया।

आखिर क्यों इस बार 1962 जैसी जंग की गलती नहीं करेगा चीन?

रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) जी डी बख्शी कहते हैं कि चीन भारत को गीदड़ भभकी दे रहा है। दरअसल मौजूदा सिक्किम विवाद चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर भारतीय सेनाओं को उलझाए रखने की कोशिश है। यह सीमा पर दोनों तरफ तनाव कायम रखकर हमारी आर्मी को वहां इंगेज रखने की चाल है, ताकि भारत के डेवलपमेंट एजेंडा में रुकावट आए, दूसरी ओर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चीन का प्रोजेक्ट पूरा हो सके। जंग ना भारत के लिए विकल्प है और ना ही चीन के लिए। अगर चीन ऐसा करता है तो उसे बड़ी गलती कहेंगे। लड़ाई शुरू करना चीन की बड़ी गलती होगी। क्योंकि भारत 1962 से काफी अलग है। भारतीय सेनाएं कई जंग लड़ चुकी हैं और जीत भी हासिल की है। इंडियन आर्मी वेल डिसिप्लिंड और वेल ट्रेंड है।

अगर युद्ध हुआ तो जितना नुकसान भारत को होगा, उतना ही चीन को भी होगा। पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल नरसिम्हन कहते हैं कि जंग के आसार नहीं हैं। जंग शुरू करना चीन के लिए बड़ी गलती होगा। इससे जितना नुकसान भारत को होगा, उतना ही चीन को होगा। चीन दुनिया की बड़ी इकोनमी है। उसके लिए जरूरी है कि वो पड़ोसियों से अच्छे रिश्ते बनाकर चले। चीन भारत पर घुसपैठ का आरोप लगाकर इंटरनेशनल प्लेटफर्म पर अपनी डिप्लोमैसी मजबूत रखना चाहता है।

दुनिया में भारत के दोस्त चीन से ज्यादा

डिफेंस एक्सपर्ट और मेजर जनरल (रिटार्यड) पीके सहगल कहते हैं- दोनों ही देश मेच्योर हैं। जंग अब नहीं हो सकती क्योंकि दोनों ही देश जानते हैं कि इससे इकोनमी और डेवलपमेंट पर असर पड़ेगा। दूसरी बात 1962 के मुकाबले भारत चीन से कहीं आगे है। 1962 में भी भारत की सेनाएं तैयार होतीं और आज जैसे सियासी हालात होते तो नतीजे अलग होते। आज इंटरनेशनल लेवल पर भारत की पोजिशन अलग है। उसके दोस्तों की तादाद भी चीन के मुकाबले काफी ज्यादा है। भारत के सभी देशों से अच्छे रिश्ते हैं। इसके उलट चीन का अपने ज्यादातर पड़ोसियों से र्बडर विवाद है।

रक्षा में भारत कहां है चीन से पीछे ?-

1) रक्षा बजट

- डिफेंस पर चीन हमसे ज्यादा खर्च कर रहा है। भारत का डिफेंस बजट 51 अरब डलर यानी करीब 32.80 अरब रुपए का है। उधर, चीन का सालाना डिफेंस बजट 1.61 खरब डलर यानी 10 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का है।

2) एयरक्राफ्ट

- चीन के पास 2,955 एयरक्राफ्ट्स हैं। वहीं भारत के पास 2,102 एयरक्राफ्ट्स हैं। चीन के पास 2,955 में से 1,271 फाइटर इंटरसेप्टर, 1385 अटैक एयरक्राफ्ट्स, 206 अटैक हेलिकाप्टर और 507 सर्विसेबल एयरपोर्ट्स हैं। भारत इन सभी मामलों में चीन से पीछे है।

3) टैंक और राकेट प्रोजेक्टर्स

- चीन के पास 6457 टैंक और भारत के पास 4426 टैंक हैं। राकेट प्रोजेक्टर्स की बात करें तो चीन के 1770 के मुकाबले भारत के पास 292 ही हैं। सेल्फ प्रोपेल्ड आर्टिलरी चीन के पास 1710 हैं, जबकि भारत के पास 290 ही हैं।

4) पनडुब्बियां

- चीन के पास 68 सबमरीन हैं और भारत के पास 15 हैं। चीन और भारत दोनों के पास ही न्यूक्लियर पार्वड सबमरीन हैं। भारत के पास 11 डिस्ट्रयर हैं, जबकि चीन के पास 35 हैं। पेट्रोलिंग क्राफ्ट्स की बात करें तो भारत के पास 139 और चीन के पास 220 हैं।

5) सैनिक

- भारत के पास कुल सैनिकों की संख्या 13.62 लाख है, जब कि 22.60 लाख चीन के पास है। लेकिन यह समझने वाली बात भी है कि चीन की सीमाएं 25 देशों से लगती हैं और उसका क्षेत्रफल बहुत बड़ा है। (संवाद)