देश की आबादी एक सौ पचीस करोड़ है और इतने लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं को दुरुस्त रखना आसान काम भी नहीं है। लेकिन चिंता की बात यह है कि इतनी बड़ी आबादी के लिए स्वास्थ्य पर जितना बजट होना चाहिए, उससे बहुत कम बजट आबंटन होता है। इस साल कुल बजट का मात्र 2 दो फीसदी ही स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है। इसे कम से कम तीन ज्यादा होना चाहिए।
भारत के विकास के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य पर खास ध्यान दिए जाने की जरूरत है। उदाहरण के लिए राज कुमारी अमृत कौर के बाद कोई भी मंत्री ऐसा नहीं बना, जिसने मंत्रालय के काम में विशेष दिलचस्पी ली हो। अधिकांश मंत्री सिर्फ अपना समय काटते हैं और सच यह भी है कि व्यवस्था उसे अपना काम करने भी नहीं देती है।
यही कारण है कि गोरखपुर जैसी त्रासदी समय समय पर होती रहती है। यह बहुत ही चिंता का विषय है कि बच्चों की मौत इसलिए हो गई, क्योंकि अस्पताल में आॅक्सीजन नहीं थी। मुख्यमंत्री ने उसकी जांच के आदेश दिए हैं और जांच मुख्य सचिव कर रहे हैं, लेकिन कोई भी अनुमान लगा सकता है कि जांच रिपोर्ट में क्या कहा जाएगा।
उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री ने स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा को गोरखपुर के अस्पताल का दौरा करने को कहा। उन्होंने सभी प्रकार की सहायता का वायदा भी किया। आखिरकार उत्तर प्रदेश ने भारतीय जनता पार्टी को बहुत बड़ा जनादेश विधानसभा चुनाव में दिया है। इसके कारण भारतीय जनता पार्टी की छवि में चार चांद लगे हैं।
बड़ा सवाल यह है कि आखिरकार भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार क्यों नहीं हो रहा है? यह सच है कि यह कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि अमेरिका जैसे विकसित देश भी अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।
स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच के मामले में 195 देशों में भारत का स्थान 154वां है। बड़े कदम उठाने के दावों के बीच यह अभी भी उस सूची में सबसे नीचे के देशों में शामिल हैं। अनेक बीमारियों के मामले में इसका रिकार्ड बहुत ही खराब है। मधुमेह, हृदयरोग, टीबी, और गुर्दा संबंधित बीमारियों में इसका रिकाॅर्ड सबसे ज्यादा खराब है। हमारे देश मे जितनी मौतें हो रही हैं, उनमें से आधी मौतों का कारण तो ये बीमारियां ही हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरतें जिस तेजी से बढ़ रही है, उस तेजी से बजट खर्च नहीं बढ़ पा रहा है। इसके कारण प्रत्येक साल देश में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। भारत में प्रति 1700 लोगों पर एक डाॅक्टर है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 1000 लोगों पर एक डाॅक्टर होना चाहिए। साढ़े तेरह करोड़ बेड देश के अस्पतालों में हैं, लेकिन उनमें से मात्र 48 प्रतिशत ही काम कर रहे हैं। इनका 65 फीसदी तो देश के 20 महानगरों में हैं। जाहिर है, दूर दराज इलाकों में स्वास्थ्य सेवा की हालत बहुत ही खराब है। (संवाद)
गोरखपुर की त्रासदी: राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति पर अमल की जरूरत
कल्याणी शंकर - 2017-08-17 12:21
गोरखपुर के एक अस्पताल में 70 से भी ज्यादा बच्चों की मौत ने देश को हिला कर रख दिया है। इसने केन्द्र और राज्य सरकारों की विफलता को भी एक बार फिर रेखांकित किया है। जिन लोगों ने सरकारें बनाई हैं, उनके स्वास्थ्य के प्रति सरकारें कितना उदासीन हैं, इसका पता भी लगता है। इस तरह की त्रासदी कोई पहली घटना नहीं है, बल्कि समय समय पर देश के अलग अलग हिस्सों में घटती रहती हैं। भारत एक ऐसा देश है, जहां अस्पतालों में मरीजों की जान की कोई कीमत नहीं होती है, चाहे वे सरकारी अस्पताल हों या निजी अस्पताल।