देश की जनता पूर्व प्रधानमंत्री एवं कांग्रेस अध्यक्ष पी. वी. नरसिंहा राव के कार्यकाल में तत्कालीन विŸा मंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह के नेतृृत्व में उभरी नई आर्थिक नीतियों के पक्षधर कांग्रेस को जनविरोधी गतिविधियों में शामिल होने का कारण मानने लगी। जिसका प्रतिकूल प्रभाव कांग्रेस के ऊपर पड़ा एवं कांग्रेस का ग्राफ गिरता चला गया। इस स्थिति को इस कार्यकाल में हुए चुनाव एवं कांग्रेस के खिलाफ मिले जनमत में देखा जा सकता है जहां अग्रिम पंक्ति में खड़ी रहने वाली कांग्रेस हासिये पर चली गई। इसके ठीक विपरीत पूर्व प्रधानमंत्री एवं कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती इंदिरा गांधी का कार्यकाल रहा जहां कांग्रेस हर बार इंदिरा गांधी के नेतृृत्व में मजबूती के साथ उभरती दिखाई दी। 19 जुलाई 1969 जब इंदिरा गांधी ने बैंको का राष्ट्रीयकरण एवं 2 सितम्बर 1970 को प्रिबीपर्स बंद कर राजाओं को दी जाने वाली सरकारी राशि को रोकने का निर्णय लेकर देश की आम जनता का जो विश्वास हासिल किया उसे सन्् 1971 में होने वाले मध्यावधि चुनाव में पार्टी स्तर पर विरोध के बावजूद कांग्रेस को एक नई पहचान हासिल हुई। इस चुनाव में इंदिरा गांधी के नेतृृत्व वाले दल को भारी बहुमत हासिल हुआ। लोकसभा की 518 सीटों में से 350 सीट प्राप्त कर कांग्रेस ( इ ) सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई। उस समय इस दल को हिन्दी प्रदेश राज्यों में भी भारी बहुमत मिला। इस तरह के उभरे हालात से लोग कांग्रेस को इंदिरा के नाम से जोडने लगे थे। इंदिरा गांधी के मजबूत इरादों से प्रभावित होकर लोग इंदिरा इज इंडिया कहना भी शुरू कर दिये थे। 26जून 1975 को 20 सूत्री कार्यक्रमों के साथ इंदिरा गांधी ने विपरीत परिस्थितियों में देश में आपात काल की घोषणा कर दी । इस कार्यकाल में कुछ कार्य अच्छे तो हुए जिनमें जनसंख्या पर नियंत्रण हेतु नसबंदी , समय पाबंदी एवं उद्योगों में श्रमिकों की जबरन छंटनी एवं तालाबंदी पर प्रतिबंद जैसे प्रमुख कार्य रहे परन्तु इस कार्यकाल के प्रतिकुल प्रभाव रहे जिससे कांग्रेस एक बार फिर से हासिये पर चली गई । पर अपनी सूझबूझ से इंदिरा गांधी ने हासिये पर गई कांग्रेस को फिर से दिसम्बर 1979 के आम चुनाव में एक नंबर पर लाकर खड़ा कर दिया। इस चुनाव में कांग्रेस को दो तिहाई बहुमत मिला जिसमें हिन्दी प्रदेश से जुड़े राज्य भी रहे जहां कांग्रेस को आपार सफलता मिली। इस तरह के हालात इंदिरा गांधी के नेतृृत्व में हिन्दी प्रदेश राज्यों सहित पूरे देश मे कांग्रेस के मजबूत होने के प्रमाण दे रहे है। कांग्रेस की यह स्थिति पूर्व प्रधान मंत्री एवं कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी के कार्यकाल तक बनी रही। देश में आये मंडल आयोग एवं मंदिर - मसजिद विवाद से उभरे जातीय समीकरण ने हिन्दी प्रदेश राज्यों में कांग्रेस के बोट बैंक पर प्रतिकूल प्रभाव डला। जिससे इन राज्यों में विशेष रूप से बिहार एवं उतर प्रदेश में कांग्रेस हासिये पर चली गई जो आज तक नहीं संभल पाई। कांग्रेस को कमजोर करने में उसकी समाजवादी दृृष्टिकोण की नीतियां छोड़ नई आर्थिक नीतियां भी प्रमुख रही है जहां देश का मध्यम वर्गीय परिवार भी धीरे -धीरे कांगेस से दूर होता गया। वर्तमान में कांग्रेस नेतृृत्व के पास भाजपा सा तेज, तरार अभिव्यक्ति नजर नहीं आ रहा है। तेज, तरार अभिव्यक्ति वाला व्यक्तित्व फिलहाल कांग्रेस में दबा हुआ है। इस सच्चाई को स्वीकार कर कांग्रेस को अपने अस्तित्व बचाने के लिये समाजवादी दृृष्टिकोण एवं तेज,तरार अभिव्यक्ति को प्रश्रय देना जरूरी होगा!

स्वतंत्रता उपरान्त देश की बागडोर संभालने वाली कांग्रेस एवं वर्तमान कांग्रेस में काफी अंतर आ चुका है। इस तथ्य को कांग्रेस को सही मायने में समझना होगा एवं गिरते अस्तित्व को बचाने के लिये स्वयं का इगो छोड़ दलहित में समयानुसार कदम उठाने होंगे । जिसके कारण जनाधार से कांग्रेस दूर होती जा रही है। उस तथ्य को भलि भाॅति समझना होगा । कांग्रेस देश की पुरानी राजनीति पार्टी है। इसके पास तेज तरार अभिव्यक्ति वालों की कमी नहीं । बस जरूरत है पार्टी में रह रहे तेज तरार अभिव्यक्ति वालों को इगो छोड़ पूरा अवसर देने का जो कांग्रेस के गिरते अस्तित्व को बचाने में सहायक हो सकते है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एवं देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का कार्यकाल भी कांग्रेस के लिये स्वर्णिम कार्यकाल रहा । इस कार्यकाल में उभरे तेज,तरार अभिव्यक्ति वालों को वर्तमान कांग्रेस में दबा दिया गया जिससे वे घुटन सा महसूस करने लगे । इस तथ को समझना जरूरी है। स्व. राजीव गांधी को विन्रम श्रद्धाजंलि सही मायने में तभी होगी जब कांग्रेस समाजवादी दृृष्किोण अपनाते हुए तेज,तरार अभिव्यक्ति वालों को प्रश्रय दें। (संवाद)