पद्मभूषण से सम्मानित असमिया भाषा के कवि, फिल्मकार, संगीतकार और गायक भूपेन हजारिका ने समाज में व्याप्त अपार दुरूख और दारुणता से उपजे असंतोष और व्यथित मन की पीड़ा को पवित्र गंगा से इस गीत के माध्यम से साझा किया था और उनकी यह रचना कालजयी बन गई। लेकिन न तो भारतीय समाज का दुख-दरिद्दर दूर हुआ और न ही गंगा की अविरल धारा ही रुकी। अलबत्ता भारतीय समाज ने गंगा को और भी मैली करने में कोई कोर-कसर-कोताही नहीं की। पिछले दिनों गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर बसे पवित्र और पौराणिक नगर प्रयागराज के ऐतिहासिक आजाद पार्क (पुराना नाम अल्फ्रेड पार्क) में शहीद चन्द्रशेखर आजाद की प्रतिमा के समक्ष गंगा के तट पर बसे पांच राज्यों के 1647 ग्राम प्रधानों ने जब अपने-अपने ग्राम पंचायतों को खुले में शौच से मुक्ति और गंगा को स्वच्छ रखने की शपथ ली तो मेरे अन्तर्मन में भूपेन हजारिका का ‘‘गंगा..बहती हो क्यों’’ गीत की अनुगूंज सुनाई देने लगी। मैं भी वहां मौजूद था।

लेकिन इस कवायद के बीच यह सवाल उठना भी लाजिमी ही था कि क्या सिर्फ गंगा के किनारे बसने वाले गांवों के इस पहल और प्रयास से ही गंगा निर्मल हो जाएगी ! शायद नहीं। क्यों कि गंगा में गंदगी का बड़ा हिस्सा गांव से नहीं बल्कि उसके किनारे बसने वाले उपनगरो, नगरों और महानगरों से आती है। करोड़ों टन अपशिष्ट वहां के कल-कारखानों और घनी आबादी के रोजमर्रा के कार्यनिष्पादन से निकलता है और बिना शोधन के गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंतण्रबोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा 2015 में किए गए जल गुणवत्ता आकलन में गंगा नदी सहित देश की 275 नदियों में 302 नदी खंडों को प्रदूषित नदी खंड के रूप में पहचान की गई थी। जब कि सीपीसीबी द्वारा वर्ष 2008 में किए गए इसी तरह के सव्रे में देश की 121 नदियों में 150 नदी खंड ही प्रदूषित थे। जाहिर है और यह हैरान करने वाली बात है कि सिर्फ सात सालों में प्रदूषित नदियों और नदी खंडों की संख्या में दोगुना से भी ज्यादा इजाफा हुआ है। और यह स्थिति तब है जब पिछले 29 सालों में 2500 करोड़ त्े गंगा को स्वच्छ करने और 1500 करोड़ त्े यमुना को स्वच्छ करने के नाम पर दोनों नदियों की अविरल धारा की तरह बहाये जा चुके हैं। फिर भी दोनों नदियां वैसी की वैसी ही मैली रह गयीं।

सिर्फ गंगा की ही अगर बात करें तो देश के पांच राज्यों - उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल को आप इस मामले में भाग्यशाली मान सकते हैं कि इन राज्यों से होकर गंगा की अविरल धारा कलकल बहती है। इन राज्यों के 52 जिलों के 1647 ग्राम पंचायतों के तकरीबन 4300 गांव गंगा के किनारे बसे हुए हैं। लेकिन उत्तराखंड के गंगोत्री के गोमुख से निकलकर उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों और खासकर प्रयागराज तक पहुंचते-पहुंचते गंगा की निर्मल धारा मैली हो चुकी होती है। तो गंगासागर तक पहुंचने वाली गंगा कैसी होती होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है।

गंगा को स्वच्छ और निर्मल करने का संकल्प ले चुकीं केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा विकास मंत्री उमा भारती कहती हैं, ‘‘ गंगा इतनी मैली हो गई है कि जो लोग पितरों का तर्पण गंगा किनारे करते हैं, लेकिन खुद तर्पण करते वक्त मिनरल वाटर पीते हैं.. पितरों को गंगा का गंदा पानी अर्पित करते हैं।’’ उनका यह कहना लाजिमी ही है कि धर्म के नाम पर इससे बड़ा पाखंड कुछ नहीं हो सकता। वह कहती हैं, ‘‘ गंगा को ऐसा बनाइये कि तर्पण के लिए पहले गंगा का एक लोटा पानी खुद पीजिए, फिर पितरों को पिलाइए।’’ स्वच्छता का संस्कार हमारे देश में बहुत प्रबल था, लेकिन समय के साथ इसमें गिरावट आती गई। जो लोग सफाई को संसाधन और धन की उपलब्धता से जोड़ते हैं उन्हें यह बात भलीभांति समझ में आ जानी चाहिए कि स्वच्छता के लिए पैसा महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसके लिए स्वभाव और व्यवहार महत्वपूर्ण है। यह प्रवृत्ति ही है कि मेरे पैतृक शहर गोरखपुर के कुछ कालोनियों में कतिपय लोग अपने घरों के सामने सड़कों पर घर का कूड़ा फेंकने में शर्म महसूस नहीं करते। उनके द्वारा सड़कों और सड़कों के किनारे फेंका गया वह कूड़ा तब तक और भी फैल जाता है जब तक कि सरकारी सफाईकर्मी झाड़ू नहीं लगा देता। जाहिर है उनके द्वारा की जाने वाली इस सार्वजनिक गंदगी का पैसे से कोई मतलब नहीं है। यह एक प्रवृत्ति है, जिसे दूर करने के लिए कोई कानून तो बनना ही चाहिए।

गंगा ही नहीं बल्कि देश की सभी नदियों और सार्वजनिक स्थानों को अपने कृत्य-कुकृत्य से गंदा करने वाले लोगों को मेघालय के उमथली गांव से सबक लेनी चाहिए। आइए उस गांव में हम आपको लेकर चलते हैं-

शनिवार सुबह के सात बजते ही एक विशेष धुन लाउडस्पीकर पर बजती है। यह धुन एक खास मकसद यानि कि उद्देश्य के लिए बजती है। गांव के सभी लोग हर शनिवार की सुबह एक घंटे अपने गांव की सफाई करते हैं।

घंटी बज्े के कुछ ही मिनटों में, घरों से बच्चे, महिलायें और पुरुष झाड़ू और सफाई के अन्य उपकरण लेकर बाहर निकलते हैं। सुबह जल्दी उठने के बावजूद वे बहुत ही उत्साह और उमंग से काम शुरू करते हैं। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि मेघालय के पूर्व खासी हिल्स जिले के खतरश्नोंग लैतकरोह खंड में स्थित उमथली गांव के, स्वच्छता के महत्व के प्रति जागरूक लोगों को इस सफाई अभियान के लिए किसी विशेष निमंतण्रया प्रोत्साहन की जरूरत नहीं पड़ती। इस अभियान के लिए कठोर नियम न होने के बावजूद कोई भी अनुपस्थित नहीं रहता है। यहां सामुदायिक साप्ताहिक सफाई का कई महीनों से पालन किया जा रहा।

आपको गांव का एक भ्रमण ही बता देगा कि वहां के लोग स्वच्छता के प्रति कितने सजग हैं। यह कूड़ा और तरल गंदगी मुक्त एक गांव है। इस गांव के सड़क के किनारे कचरे के डिब्बे देखे जा सकते हैं। गांव की साप्ताहिक सफाई अभियान का मुख्य आकषर्ण यह है कि इसमें बच्चे खासतौर पर अत्यंत ही उत्साह और सजगता से भाग लेते हैं और जमीन पर पड़ा कचरा उठाकर अपने घर की कम्पोस्ट बिन में डाल देते हैं। सफाई अभियान के आयोजन और निगरानी का उत्तरदायित्व स्थानीय महिला संगठनों ने उठाया है। निरूसंदेह, उमथली गांव और वहां के निवासी सही मायने में सारे देश और देशवासियों के लिए एक उदाहरण और प्रेरणा हैं। (संवाद)