मोदी सरकार के गठन के बाद छोटी बड़ी अनेक दुर्घटनाएं हुईं हैं। वैसे दुर्घटनाओं का दौर पिछले कुछ दशकों से कभी नहीं थमा है, लेकिन मोदी सरकार के आने के बाद दुर्घटनाओं की संख्या काफी बढ़ गई है और उनकी विभीषिका भी बढ़ गई है। खतौली में की बड़ी दुर्घटना के पहले 5 अन्य बड़ी बड़ी दुर्घटनाएं मोदी सरकार के कार्यकाल में हो चुकी हैं। उनमें से एक तो कानपुर में पिछले साल हुई थी, जिसमें 150 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे।
आखिर इन दुर्घटनाओं का दौर कब थमेगा? या थमेगा भी नहीं? खतौली में जो दुर्घटना हुई, उसके तुरंत बाद मीडिया में यह खबर आने लगी कि यह आतंकवादियों की करतूत हो सकती है, लेकिन जल्द ही जिला प्रशासन की ओर से यह स्पष्टीकरण आ गया कि उसका कारण रेलकर्मियों की लापरवाही थी। रेल पटरी पर मरम्मत का काम चल रहा था, लेकिन उसकी जानकारी आसपास के स्टेशनों को नहीं दी गई थी। जब मरम्मत हो रही होती है, तो दो सावधानियां बरती जाती हैं। या तो पिछले स्टेशन से गाड़ी को आगे बढ़ने ही नहीं दिया जाता या रेल चालक को सूचित कर दिया जाता है कि वे गाड़ी की गति को कम रखें, क्योंकि आगे मरम्मत का काम चल रहा है।
पर खतौली में ऐसा नहीं किया गया। उसके कारण रेल चालक को टूटी पटरी देखते हुए इमरजेंसी ब्रेक लगाना पड़ा। फिर क्या था, डब्बे एक दूसरे पर चढ़ते गए। यदि ब्रेक नहीं लगाया जाता, तो सैंकड़ो लोग मारे जा सकते थे और पता नही ंतब ट्रेन कितने घरों में घुस जाती। मरम्मत कर रहे रेलकर्मियों ने जब ट्रेन को आते देखा, तो वे पटरियों को वहीं छोड़ भाग खड़े हुए।
आखिर निकट के स्टेशन को मरम्मत की सूचना क्यों नहीं दी गई? इसका कारण बताते हुए एक आॅडियो क्लिप सामने आया है, जिसमें खतौली का एक प्रत्यक्षदर्शी रेलकर्मी पंजाब के पठानकोट के अपने दोस्त रेलकर्मी को आंखों देखा हाल फोन पर सुना रहा है। उसके अनुसार एक नया जूनियर इंजीनियर आया था, जिसे उसके तहत काम करने वालीे रेलकर्मी पसंद नहीं करते। पसंद नहीं करने के कारण वे उसको सहयोग भी नहीं करते और अधिकांश लोग तो काम ही नहीं करते। जब ऐसा माहौल रहेगा तो फिर मरम्मत का काम किस तरह का होगा, इसका सहज अंदाज लगाया जा सकता है। यदि सभी लोग काम नहीं करेंगे, तो 5 मिनट के काम को पूरा करने में आधे घंटे या एक घंटे भी लग सकते हैं। इस तरह के माहौल में तरह तरह के तनाव पैदा हो जाते हैं, जिसके कारण अनेक बातों से ध्यान ही हट जाता है। जाहिर है कि इसी तनाव के माहौल मे पास के स्टेशन को पटरी मरम्मत की सूचना नहीं दी गई।
सूचना देने के अलावा मरम्मत कर रहे रेलकर्मी मरम्मत स्थल से कुछ दूर लाल झंडी भी पटरी पर लगा देते हैं, ताकि दूर से ही ड्राइवर को पता चल जाए कि उन्हें गाड़ी रोकने के लिए कहा जा रहा है। राम के समय अंधेरा होता है, इसलिए लाल झंडी हो सकता है ड्राइवर को न दिखे, इसलिए पटरियों पर पटाखे भी रख दिए जाते हैं, ताकि इंजन का पहिया उस पर पड़ते ही पटाखा फटे और ड्राइवर को संदेश मिल जाय कि उसे गाड़ी रोकने को कहा जा रहा है। लेकिन मरम्मत करते समय इन सावधानियों को नहीं अपनाया गया। इसके कारण भारी रेल दुर्घटना हुई।
तो यह है हमारे देश के रेल में कार्य की यह संस्कृति। इस कार्यसंस्कृति के कारण न केवल एक के बाद एक ट्रेन हादसे हो रहे हैं, बल्कि उसकी पूरी व्यवस्था चरमराई हुई है। टिकट कटाने से लेकर सफर तक में अराजकता का माहौल है। कन्फर्म टिकट पाना एक बहुत बड़ी चुनौती है। बिहार, उत्तर प्रदेश और व अन्य पूर्वी और पूर्वाेत्तर राज्यों के लिए तो यह बहुत ही कठिन काम है। टिकट बुकिंग पर माफिया का कब्जा हो चुका है। तरह तरह के उपाय रेलवे द्वारा अपनाए जा रहे हैं, लेकिन वे कोई काम नहीं आते। माफिया तत्व उनसे बहुत आगे हैं और कहा तो यहां तक जा रहा है कि रेल के लोग भी उसमें शामिल हैं।
टिकट लेने के बाद ट्रेन की यात्रा करना भी एक दुखदायी अनुभव है, क्योंकि टेªने लेट से आती हैं और लगातार लेट चलती हैं। एक दो ट्रेने अपवाद हैं, लेकिन लेट लतीफी अधिकांश गाड़ियों की नियति है। खराब मौसम या किसी आंदोलन के कारण ट्रेनें कैंसिल भी होती रहती है और टिकटधारकों को झक मारकर अपनी यात्रा स्थगित करती पड़ती है। टेªेन के अंदर भी बुरा हाल है। भारी भीड़ होती है। आरक्षित डब्बे में भी बिना आरक्षण वाले पैसेंजर घुसे रहते हैं। बामरूम का बुरा हाल है। पानी तक पीने को नहीं मिलता। प्यास से एक यात्री के मरने की खबर भी अखबारों में कुछ पहले छप चुकी है।
इस तरह की कार्यसंस्कृति हमारे ट्रेन में है। क्या इसी के भरोसे हम बुलेट ट्रेन चलाएंगे? (संवाद)
खतौली रेल दुर्घटना: क्या हम बुलेट ट्रेन चलाने के लिए तैयार हैं?
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-08-24 03:02
उत्तर प्रदेश की खतौली में एक भयंकर रेल दुर्घटना हुई, जिसमें कम से कम 23 लोग मारे गए हैं और करीब 100 लोग घायल हुए हैं। घायलों में दर्जनों लोग जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं। इस दुर्घटना में ट्रेन एक घर और एक स्कूल में घुस गई। इस दुर्घटना के दो दिन के बाद ही उत्तर प्रदेश के ही ओरैया में एक और ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हुई, जिसमें दर्जनों लोग घायल हुए हैं और घायलों में चार की हालत गंभीर है।